एनआरसी की अंतिम सूची में छूटे लोगों के लिए अपील करने की व्यवस्था करेगी सरकार: गृह मंत्रालय

गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में कहा गया कि अगर किसी का नाम सूची में नहीं है तो वह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में 120 दिन के अंदर अपील दायर कर सकते हैं. यह समय सीमा पहले 60 दिन की थी.

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गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में कहा गया कि अगर किसी का नाम सूची में नहीं है तो वह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में 120 दिन के अंदर अपील दायर कर सकते हैं. यह समय सीमा पहले 60 दिन की थी.

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गृहमंत्री अमित शाह (फोटो: nrcassam.nic.in/पीटीआई)

नई दिल्ली/गुवाहाटी: राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची के प्रकाशन से पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि असम के जिन लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं होंगे, उनके लिए सरकार अपील करने की पूरी व्यवस्था करेगी.

एनआरसी की अंतिम सूची इस माह के अंत में जारी होनी है. मंत्रालय ने यह भी कहा कि जिन लोगों के नाम एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं होंगे, उनमें से प्रत्येक व्यक्ति विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) में अपना मामला ले जा सकता है.

यह निर्णय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में सोमवार को आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में किया गया. इस बैठक में असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी हिस्सा लिया.

गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया,‘यह निर्णय लिया गया कि एनआरसी से छूटे लोगों को सहायता मुहैया कराने के वास्ते राज्य सरकार पर्याप्त व्यवस्था करेगी ताकि सूची में शामिल नहीं किए जाने के खिलाफ अपील करने का उन्हें पूरा मौका मिल सके. प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं होगा, वह अपना मामला अपीलीय प्राधिकार यानी फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के समक्ष रख सकता है.’

दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार सरकार लोगों का डर दूर करने के लिए ये स्पष्ट किया कि अगर किसी व्यक्ति का नाम फाइनल एनआरसी सूची में नहीं आता है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि उसे विदेशी घोषित कर दिया गया.

फॉरेनर्स एक्ट 1946 और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ऑर्डर 1964 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को विदेशी घोषित करने का अधिकार केवल फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के पास ही है. ऐसे में अगर किसी का नाम सूची में नहीं है तो वह ट्रिब्यूनल में 120 दिन के अंदर अपील दायर कर सकते हैं. यह समय सीमा पहले 60 दिन की थी.

मंत्रालय ने यह भी कहा कि सूची में नाम न आने वाले लोगों को अपील करने में कोई असुविधा न हो, इसके लिए पर्याप्त संख्या में ऐसे ट्रिब्यूनल बनाए जाएंगे.

यह भी पढ़ें: गृह मंत्रालय द्वारा 1964 के विदेशी न्यायाधिकरण आदेश में किए गए बदलावों का अर्थ क्या है?

गौरतलब है कि असम में एनआरसी तैयार करने का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है. इस संबंध में एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर 2017 और एक जनवरी 2018 की दरम्यानी रात में प्रकाशित हुआ था.

इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से सिर्फ 1.9 करोड़ लोगों के नाम ही शामिल किए गए थे. इसके बाद जुलाई 2018 में प्रकाशित एनआरसी के फाइनल मसौदे में कुल 3.29 करोड़ आवेदनों में से 2.9 करोड़ लोगों का नाम शामिल हुए थे, जबकि 40 लाख लोगों को इस सूची से बाहर कर दिया गया था.

इसके बाद बीते जून महीने में एनआरसी मसौदे की नई निष्कासन (एक्सक्लूज़न) सूची जारी हुई, जिसमें 1,02,462 लोगों को बाहर किया गया. इस सूची में जिन लोगों के नाम हैं ये वह लोग हैं जिनके नाम पिछले साल 30 जुलाई को जारी एनआरसी के मसौदे में शामिल थे लेकिन बाद में वे इसके लिए योग्य नहीं पाए गए.

असम इकलौता राज्य है जहां एनआरसी है, जिसे सबसे पहले 1951 में तैयार किया गया था. मालूम हो कि 20वीं सदी की शुरुआत में बांग्लादेश से असम में बड़ी संख्या में लोग आए. 1951 में तैयार एनआरसी को अपडेट करने के लिए यह कवायद की जा रही है. एनआरसी में उन सभी भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया जाएगा जो 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं.

दस्तावेजों की जांच में अनियमितताओं के लिए अधिकारियों पर कार्रवाई पर विचार कर रहा है एनआरसी

एनआरसी प्राधिकरण असम सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ चमरिया और कामरूप जिले के आसपास के कुछ क्षेत्रों के लोगों के दस्तावेजों की जांच में कथित अनियमितता के लिए कड़ी कार्रवाई की सिफारिश पर विचार कर रहा है.

इस बारे में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि उसके बाद दस्तावेजों का पुन: सत्यापन करना पड़ा. कामरूप के उपायुक्त कमल कुमार वैश्य ने अपने जिले में चमरिया के पूर्व अनुमंडल अधिकारी द्वारा कथित अनियमितता के बारे में एक रिपोर्ट एनआरसी के राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला को करीब दो महीने पहले भेजी थी.

कथित अनियमितता के बारे में पता 2018 में चला था. सूत्रों ने बताया कि रिपोर्ट में इसका उल्लेख है कि किस तरह से तत्कालीन अनुमंडल अधिकारी ने केवल अपने काम का बोझ कम करने के लिए सभी प्रभावित लोगों को मूल निवासी बना दिया.

उन्होंने कहा कि उसने सत्यापन सूची में हिंदुओं और मुस्लिमों सभी लोगों के लिए मूल निवासी खाने में निशान लगा दिया. इससे दस्तावेजों की जांच करने और आवेदनकर्ताओं के परिवार का वंशवृक्ष पता करने के कठिन काम का बोझ भी कम हो गया.

एक सूत्र ने कहा, ‘यह कोई भ्रष्टाचार संबंधी मामला नहीं है. उपायुक्त की जांच में यह पता चला है कि अधिकारी की सत्यापन की गुणवत्ता बहुत खराब थी और वह अपनी ड्यूटी को लेकर ईमानदार नहीं था.’

सूत्रों ने पीटीआई को बताया कि अनियमितताओं का पता प्रारंभिक तौर पर सितम्बर 2018 के आसपास चला था जिसके बाद कामरूप जिला प्रशासन सक्रिय हुआ और पता चला कि इससे पूरा चमरिया राजस्व क्षेत्र प्रभावित हो रहा था.

इसके बाद एनआरसी प्राधिकरण को सूचित किया और घटनाक्रमों के बारे बताया गया तथा काफी विचार विमर्श के बाद इन क्षेत्रों में सत्यापन प्रक्रिया रोकने का निर्णय किया गया.

सूत्रों ने बताया कि एनआरसी प्राधिकरण ने रिपोर्ट को बहुत गंभीरता से लिया है और उक्त नौकरशाह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की सिफारिश करने की उम्मीद है जो कि असम सिविल सेवा का अधिकारी है.

एनआरसी के किसी भी अधिकारी की टिप्पणी नहीं प्राप्त हो सकी क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने उनके मीडिया से बात करने से रोक लगायी है. एनआरसी अंतिम सूची प्रकाशित करने की समयसीमा 31 अगस्त है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)