असम के वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने शनिवार को जारी हुई एनआरसी पर सवाल उठाते हुए कहा कि 1971 से पहले आए कई लोगों के नाम इसमें नहीं जुड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट को सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20 प्रतिशत और शेष असम में 10 प्रतिशत रीवेरिफिकेशन की अनुमति देनी चाहिए.
गुवाहाटी/नई दिल्ली: असम में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शनिवार को कहा कि वह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अपडेट हुई सूची पर भरोसा नहीं करती हैं. पार्टी ने केंद्र और राज्य सरकारों से राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी तैयार किये जाने का अनुरोध किया.
भाजपा असम के अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि एनआरसी की अंतिम सूची में आधिकारिक तौर पर पहले बताये गये आंकड़ों की तुलना में बाहर किये गये लोगों की बहुत छोटी संख्या बताई गई है.
उन्होंने कहा, ‘हम इस एनआरसी पर भरोसा नहीं करते हैं. हम बहुत नाखुश हैं… हम केंद्र और राज्य सरकारों से राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी तैयार किये जाने की अपील करेंगे.’
दास ने कहा कि पार्टी बाहर किये गये लोगों द्वारा विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में अपील किये जाने की प्रक्रिया और मामलों के फैसलों पर करीबी नजर रखेगी.
उन्होंने कहा, ‘यदि एफटी वास्तविक भारतीयों के खिलाफ प्रतिकूल आदेश देते हैं तो हम पूरे 19 लाख मामलों के निस्तारण की प्रतीक्षा नहीं करेंगे. हम कानून लायेंगे और उन्हें सुरक्षित बनाने के लिए काम करेंगे.’
इससे पहले असम के वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने शनिवार को कहा कि एनआरसी की अंतिम सूची में कई ऐसे लोगों के नाम शामिल नहीं हैं जो 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आए थे.
शर्मा ने ट्वीट किया, ‘एनआरसी में कई ऐसे भारतीय नागरिकों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं जो 1971 से पहले शरणार्थियों के रूप में बांग्लादेश से आए थे क्योंकि प्राधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र स्वीकार करने इनकार कर दिया. आरोप है कि कई नाम इसलिए जुड़े हैं क्योंकि उन्होंने लेगेसी से जुड़े डेटा में छेड़छाड़ की है.’
Names of many Indian citizens who migrated from Bangladesh as refugees prior to 1971 have not been included in the NRC because authorities refused to accept refugee certificates. Many names got included because of manipulation of legacy data as alleged by many 1/2
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 31, 2019
उन्होंने कहा कि राज्य एवं केंद्र सरकारों के पहले किए अनुरोध के अनुसार उच्चतम न्यायालय को सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20 प्रतिशत और शेष असम में 10 प्रतिशत पुन: सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘मैं दोहराता हूं कि केंद्र एवं राज्य सरकारों के अनुरोध पर शीर्ष अदालत को सटीक एवं निष्पक्ष एनआरसी के लिए (सीमावर्ती जिलों में) कम से कम 20 प्रतिशत और (शेष जिलों में) 10 प्रतिशत पुन: सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए.’
I reiterate that as requested by Central and State governments at least 20% reverification (bordering districts) and 10% re-verification(remaining districts) should be allowed by Honble Apex court for a correct and fair NRC. 2/2
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) August 31, 2019
मालूम हो कि दोनों सरकारों ने, खासकर बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में एनआरसी में गलत तरीके से शामिल नाम और बाहर किए गए नाम का पता लगाने के लिए नमूनों के पुन: सत्यापन को लेकर न्यायालय से दो बार अपील की थी.
न्यायालय ने इस माह की शुरुआत में कड़े शब्दों में कहा था कि निश्चित पैमानों के आधार पर एनआरसी की पूरी प्रक्रिया पुन: शुरू नहीं की जा सकती.
गौरतलब है कि असम समझौते के आधार पर एनआरसी तैयार को अपडेट किया जाना था. इसके अनुसार राज्य का कोई भी निवासी अगर यह साबित नहीं कर सका कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले यहां आकर नहीं बसे थे, उसे विदेशी घोषित कर दिया जाएगा.
बहुप्रतीक्षित एनआरसी की अंतिम सूची शनिवार को जारी कर दी गई. एनआरसी में शामिल होने के लिए 3,30,27,661 लोगों ने आवेदन दिया था. इनमें से 3,11,21,004 लोगों को शामिल किया गया है और 19,06,657 लोगों को बाहर कर दिया गया है.
शर्मा अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जो एनआरसी की अंतिम सूची से खुश नहीं हैं. भाजपा विधायक शिलादित्य देव ने कहा कि एनआरसी ‘हिंदुओं को बाहर करने और मुस्लिमों की मदद करने’ की साजिश है.
कांग्रेस नेताओं ने भी एनआरसी की अंतिम लिस्ट को लेकर चिंता जाहिर की है. साथ ही, असम गण परिषद, ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और एनआरसी अपडेट को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने वाले संगठन असम पब्लिक वर्क्स ने भी कहा है कि वे अंतिम नागरिकता सूची से असंतुष्ट हैं.
असम गण परिषद ने एनआरसी की अंतिम सूची पर असंतोष जताया
असम में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल असम गण परिषद (अगप) ने एनआरसी की अंतिम सूची पर असंतोष जताते हुए शनिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय में इसकी समीक्षा की गुंजाइश है, जो पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर रहा है.
अगप के अध्यक्ष और राज्य सरकार में कृषि मंत्री अतुल बोरा ने कहा कि एनआरसी से बाहर किए गए नाम ‘हास्यास्पद तरीके से बहुत कम’ है.
बोरा ने कहा, ‘हम (अगप) इससे (बाहर रह गए नामों से) बिल्कुल खुश नहीं हैं. 19,06,657 लोगों को अंतिम एनआरसी से बाहर करने का आंकड़ा बहुत कम है और इसे हम ऐसे स्वीकार नहीं कर सकते… उच्चतम न्यायालय में इसकी समीक्षा की गुंजाइश है.’
अगप अध्यक्ष ने कहा, ‘असम के लोगों को स्वतंत्र और पारदर्शी एनआरसी की उम्मीद थी लेकिन लगता है कि असमी लोगों के अस्तित्व पर संकट और गहरा गया है.’
उन्होंने कहा,‘कई केंद्रीय और राज्य नेताओं ने कई बार संसद और विभिन्न विधान सभाओं में असम में बड़ी संख्या में विदेशियों के होने की बात कही है. उस पृष्ठभूमि में अंतिम एनआरसी के आंकड़ों को स्वीकार करना मुश्किल है.’
बोरा ने कहा, ‘हम इस प्रक्रिया से शुरू से जुड़े हुए हैं. असम समझौता पर हस्ताक्षर 855 लोगों की शहादत के बाद संभव हुआ.’
गौरतलब है कि अगप का गठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने किया, जिसने 1979 में लगातार छह साल तक राज्य से विदेशियों को निकालने के लिए आंदोलन किया.
सोमवार से 200 अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरण संचालित होंगे
सोमवार से असम में करीब 200 अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरण काम करेंगे, जहां वे नागरिक अपना पक्ष रख सकते हैं जिनके नाम एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं आए हैं. असम सरकार केंद्र की सहायता से इन विदेशी न्यायाधिकरणों (एफटी) का गठन कर रही है.
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘फिलहाल 100 विदेशी न्यायाधिकरण काम कर रहे हैं. एक सितंबर से कुल 200 अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरण पूरे असम में काम करना शुरू कर देंगे.’
शनिवार को असम के नागरिकों की एनआरसी की सूची प्रकाशित होने के बाद न्यायाधिकरणों की जरूरत होगी. जिन लोगों के नाम अंतिम एनआरसी में शामिल नहीं होंगे वे अपना नाम शामिल कराने के लिए इनमें से किसी न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकते हैं.
केंद्र सरकार एफटी में अपील के लिए समयावधि 60 दिन से बढ़ाकर 120 दिन कर चुकी है.
अंतिम एनआरसी में प्रवेश पाने वालों को ही मिलेगा आधार
जिन लोगों के नाम एनआरसी ड्राफ्ट में शामिल नहीं थे, लेकिन शनिवार को प्रकाशित होने वाली अंतिम एनआरसी सूची में उन्हें जगह मिल गयी है तो उनके आधार कार्ड जारी किये जाएंगे. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
एनआरसी अधिकारियों ने 30 जुलाई 2018 को प्रकाशित मसौदा एनआरसी में जगह नहीं बना पाए ऐसे 36 लाख लोगों का बायोमीट्रिक डाटा लिया है जिन्होंने भारतीय नागरिकता का दावा किया था. इस बायोमीट्रिक डाटा की वजह से आधार कार्ड बनाना संभव हो सकेगा.
एनआरसी में अंतिम रूप से अपना नाम नहीं जुड़वा पाने वाले लोग अगर कानूनी प्रक्रिया के पालन के बाद भी अपनी भारतीय नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाते हैं तो वे देश में कहीं से भी अपना आधार कार्ड नहीं बनवा सकेंगे क्योंकि उनके बायोमीट्रिक्स के आगे निशान बना होगा.
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, एनआरसी दावों की प्रक्रिया के दौरान लिये गए बायोमीट्रिक डाटा यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन लोगों ने अंतिम एनआरसी में जगह बना ली है वे आधार पाएं और जो अपनी भारतीय नागरिकता सिद्ध नहीं कर सके वे देश में कहीं इसे न बनवा पाएं.
जब मसौदा एनआरसी प्रकाशित हुई थी तब 40.7 लाख लोगों को इसमें जगह नहीं मिलने पर काफी विवाद हुआ था. इस मसौदे में कुल 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.9 करोड़ के नाम शामिल थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)