प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफ़नामे का अवलोकन करेगी.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वह काज़ियों को मशविरा जारी करेगा कि वे दूल्हों से कहें कि विवाह विच्छेद के मामले में तीन तलाक़ का रास्ता न अपनाएं.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल किए एक हलफ़नामे में कहा है कि अपनी वेबसाइट, प्रकाशनों और सोशल मीडिया के माध्यम से काज़ियों को यह मशविरा जारी करने का फैसला किया गया है कि वे निकाहनामे पर दस्तख़त करते वक़्त दूल्हों से कहें कि बीवी से मतभेद होने की स्थिति में एक ही बार में तीन तलाक़ कहने का तरीका न चुनें क्योंकि यह शरीयत में एक अवांछनीय परंपरा है.
हलफनामे के सचिव मोहम्मद फज़र्लुरहीम के अनुसार, निकाह कराते समय, निकाह कराने वाला व्यक्ति दूल्हे को सलाह देगा कि मतभेद के कारण तलाक़ की स्थिति उत्पन्न होने पर वह एक ही बार में तीन तलाक़ नहीं देगा क्योंकि शरीयत में यह अवांछनीय परंपरा है.
हलफनामे में कहा गया है, निकाह कराते वक्त, निकाह कराने वाला व्यक्ति दूल्हा-दुल्हन दोनों को निकाहनामे में यह शर्त शामिल करने की सलाह देगा कि उसके पति द्वारा एक ही बार में तीन तलाक़ देने की परंपरा को अलग रखा जाएगा.
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफनामे का अवलोकन करेगी. इस संविधान पीठ ने 18 मई को ही तीन तलाक़ के मुद्दे पर सुनवाई पूरी की है.
मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक़ की परपंरा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ ने केंद्र सरकार, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम विमेन पर्सनल लॉ बोर्ड तथा अन्य पक्षों की दलीलों को ग्रीष्मावकाश के दौरान छह दिन तक सुना था.