राजस्थान का रूप कंवर सती कांड, जिसने देश को हिलाकर रख दिया था

विशेष रिपोर्ट: राजस्थान के सीकर ज़िले के दिवराला गांव में चार सितंबर 1987 को बीमारी से पति के निधन के बाद उनकी चिता पर जलकर 18 वर्षीय रूप कंवर की भी मौत हो गई थी.

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(फोटो: माधव शर्मा)

विशेष रिपोर्ट: राजस्थान के सीकर ज़िले के दिवराला गांव में चार सितंबर 1987 को बीमारी से पति के निधन के बाद उनकी चिता पर जलकर 18 वर्षीय रूप कंवर की भी मौत हो गई थी.

जयपुर में हुई रूप कंवर की शादी की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा)
जयपुर में हुई रूप कंवर की शादी की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा)

राजस्थान में 32 साल पहले हुआ रूप कंवर सती कांड एक बार फिर से सुर्खियों में है. चार सितंबर 1987 को सीकर जिले के दिवराला गांव में अपने पति की मौत के बाद उसकी चिता पर जलकर 18 साल की रूप कंवर ‘सती’ हो गई थी.

दिसंबर 1829 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इस प्रथा को प्रतिबंधित किए जाने के 158 साल बाद पूरी दुनिया का ध्यान सती होने की इस घटना ने खींचा था. 4 सितंबर 1987 को हुई इस घटना में 32 लोगों को गिरफ्तार किया था जो सीकर कोर्ट से अक्टूबर 1996 में बरी हो गए.

इसके बाद 16 सितंबर 1987 को राजपूत समाज ने रूप कंवर की तेरहवीं (13 दिन की शोक परंपरा) के मौके पर चुनरी महोत्सव का आयोजन किया था. इस महोत्सव में दिवराला गांव में लाखों लोग जमा हो गए थे.

चुनरी महोत्सव का आयोजन हाईकोर्ट की रोक के बावजूद भी किया गया. हालांकि इस मामले में कोई केस नहीं बना. इसीलिए यह मामला आगे नहीं बढ़ा.

अभी चर्चा क्यों?

इसके बाद रूप कंवर की पहली बरसी के मौके पर 22 सितंबर 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जूलूस निकाला, लेकिन बारिश के कारण जुलूस ज्यादा आगे नहीं जा सका.

इसके बाद रात 8 बजे एक ट्रक में 45 लोगों ने अजीतगढ़ के लिए जुलूस निकाला. इसमें उपयोग किए ट्रक पर ‘जय श्री रूप कंवर की जय’ का बैनर लगा था. देश के कई हिस्सों से आए राजपूत समाज के लोगों ने नंगी तलवारें लहराईं और सती प्रथा को जायज ठहराने की कोशिश की.

पुलिस ने इस मामले में सती प्रथा के महिमा मंडन के आरोप में सभी 45 लोगों को गिरफ्तार किया था.

गिरफ्तारी के चार दिन बाद ही 26 सितंबर 1988 को आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया गया. कई दशक तक चली सुनवाई के बाद 2004 में अदालत ने 45 में से 25 आरोपियों को बरी कर दिया. सुनवाई के दौरान 6 आरोपियों की मौत हो गई और 6 आरोपी फरार घोषित किए गए.

इस तरह बाकी बचे आठ आरोपियों के खिलाफ सुनवाई अंतिम दौर में है, लेकिन हाल ही में एक और आरोपी लक्ष्मण सिंह ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया है. इसीलिए अब सती प्रथा के महिमा मंडन के आरोप में 9 लोगों के खिलाफ सुनवाई होनी है.

ये सुनवाई सती निवारण कोर्ट में अपने अंतिम दौर में है और इस मामले में कभी भी फैसला सुनाया जा सकता है. इसीलिए 1987 में हुआ सती कांड एक बार फिर चर्चा में आ गया है.

2004 में बरी किए गए 25 लोगों में से फिलहाल राजस्थान की कांग्रेस सरकार में परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, पिछली भाजपा सरकार में स्वास्थ्य और पंचायती राज मंत्री रहे राजेंद्र सिंह राठौड़, रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ और एक चचेरा भाई सहित कई बड़े नाम भी शामिल थे.

सरकारी वकील नरपत सिंह ने इसी साल अगस्त में पत्र लिखकर आरोपियों की फिर से गवाही की अनुमति कोर्ट से मांगी थी, लेकिन बचाव पक्ष के वकील सुरेंद्र सिंह नारुका ने फिर से गवाही कराने के कोई ठोस कारण न होने की बात कही है.

जयपुर में रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ के ऑफिस में सती के रूप में रूप कंवर की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा)
जयपुर में रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ के ऑफिस में सती के रूप में रूप कंवर की तस्वीर. (फोटो: माधव शर्मा)

अब मामले की अगली सुनवाई चार अक्टूबर को होनी है. इसमें कोर्ट तय करेगा कि अदालत में फिर से गवाही की जाए या नहीं? इसके अलावा बचाव पक्ष सरकारी वकील द्वारा लिखे गए पत्र का जवाब भी कोर्ट में पेश करेगा.

आरोपी पक्ष के वकील सुरेंद्र सिंह ने बताया कि श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह और दशरथ सिंह के खिलाफ अभी ट्रायल चल रहा है. कोर्ट बाद में इनका फैसला सुनाएगी.

वहीं, सरकारी वकील नरपत सिंह का कहना है कि कोर्ट की अगली सुनवाई में हाल ही में सरेंडर हुए आरोपी लक्ष्मण सिंह पर आरोप तय होंगे और फिर से गवाही कराने को लेकर लिखे पत्र का आरोपी पक्ष के वकील कोर्ट में अपना जवाब पेश करेंगे.

रूप कंवर सती कांड, जिसने मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली

घटना साल 1987 के चार सितंबर की है. सीकर जिले के दिवराला गांव में राजपूत समाज के माल सिंह (24) के पेट में तीन सितंबर की शाम को अचानक दर्द उठा. उन्हें इलाज के लिए सीकर लाया गया और चार सितंबर की सुबह उनकी मौत हो गई.

जयपुर के ट्रांसपोर्ट व्यवसायी बाल सिंह राठौड़ के छह बच्चों में सबसे छोटी 18 साल रूप कंवर की माल सिंह से महज आठ महीने पहले ही जनवरी में शादी हुई थी. माल सिंह की मौत के बाद उसकी चिता पर रूप कंवर भी जलकर सती हो गई थीं.

हालांकि राजपूत समाज और ग्रामीणों ने कहा कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई है लेकिन पुलिस तफ्तीश में यह बात सही नहीं निकली कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई है. बताया जाता है उस वक्त रूप कंवर पर सती होने के लिए दबाव बनाया गया था.

स्थानीय और राजपूत समाज के लोगों ने रूप कंवर को सती माता का रूप दे दिया और उसकी याद में छोटे से मंदिर का निर्माण भी कर दिया.

इसके बाद राजपूत समाज ने 16 सितंबर को दिवराला गांव में चितास्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी. जयपुर में कई महिला संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम इस समारोह को रोकने के लिए चिट्ठी लिखी और वर्मा ने इस चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी.

हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमा मंडन माना और सरकार को आदेश दिया कि ये समारोह किसी भी स्थिति में न हो.

चीफ जस्टिस के नाम चिट्ठी लिखने वालों में से एक राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लाड कुमारी जैन उस घटना को याद करते हुए कहती हैं, ‘चार सितंबर की घटना के बाद 14 सितंबर को हम मुख्यमंत्री से मिलने सचिवालय गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी हमसे नहीं मिले. शुरुआत में पूरी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रथा का समर्थन कर रही थी.’

उन्होंने कहा, ‘इस ‘हत्या’ के खिलाफ हमने 14 सितंबर को सैकड़ों महिलाओं के साथ जयपुर में एक बड़ी रैली निकाली और इसी दिन हमने महिला वकील सुनीता सत्यार्थी के साथ मिलकर एक पन्ने पर मुख्य न्यायाधीश के नाम चिट्ठी लिखी. 15 सितंबर को कोर्ट में सुनवाई हुई. सती प्रथा के पक्ष में काफी वकील कोर्ट में थे, इसके खिलाफ गिनती के वकील ही खड़े हुए. शाम तक कोर्ट ने चुनरी महोत्सव पर रोक लगा दी थी.’

जैन आरोप लगाते हुए कहती हैं, ‘उस समय प्रशासन ने सीकर एसपी के जरिये दिवराला में सूचना भिजवा दी कि कोर्ट ने महोत्सव पर रोक लगा दी है इसीलिए इसे समय से पहले ही कर लिया जाए.’

लाड कुमारी आगे कहती हैं, ‘रोक के बावजूद 10 हजार की आबादी वाले दिवराला गांव में 15 सिंतबर की रात से ही लोग जमा होने लगे. अगले दिन सुबह तक गांव में एक लाख से ज्यादा लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हो गए. हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर पुलिस दिवराला से चार किमी दूर ही खड़ी रही. पुलिस मूकदर्शक बनी रही और लोगों ने तय समय 11 बजे से पहले ही सुबह 8 बजे चुनरी महोत्सव मना लिया.’

ट्रांसपोर्ट कारोबारी रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़. (फोटो: माधव शर्मा)
रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़. (फोटो: माधव शर्मा)

जैन आगे कहती हैं, ‘उस वक्त चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी सभी पार्टियां सिर्फ दिखने के लिए विरोध में थे. उनके एक्शन से जाहिर हो रहा था कि वे अप्रत्यक्ष रूप से सती प्रथा के समर्थन में हैं. न तो सत्ता पक्ष के किसी विधायक ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई और न ही विपक्षी दलों के किसी नेता ने. क्योंकि 1990 में विधानसभा के चुनाव होने थे इसीलिए नेता जनता की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते थे, खासकर पूरे राजपूत समाज की. चुनरी महोत्सव में दोनों पार्टियों के कई विधायक भी शामिल हुए थे.’

जयपुर के ट्रांसपोर्ट नगर इलाके में रह रहे रूप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ की राय लाड कुमारी से अलग है. वे अपनी बहन को देवी के समान मानते हैं.

ट्रांसपोर्ट कारोबारी गोपाल सिंह राठौड़ कहते हैं, ‘हमारे लिए रूप कंवर देवी मां के समान हैं और बेहद आदरणीय हैं. आज भी हर साल जल झूलनी एकादशी को दिवराला में सती का मेला लगता है. आस-पास के गांवों सहित गुजरात से भी सैकड़ों लोग वहां आते. पूरे दिन सती की जोत जलती है और भजन-कीर्तन होता है. इसी सितंबर की नौ तारीख को दिवराला में बड़ा मेला लगा. आसपास के लोगों में सती के प्रति आस्था है.’

चुनरी महोत्सव को याद करते हुए गोपाल बताते हैं, ‘उस दिन दिवराला में लाखों लोग जमा हो गए थे. हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव नहीं होने के आदेश दिए थे, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने सूझ-बूझ से काम लिया और पुलिस को गांव से चार किलोमीटर दूर ही रुकने के मौखिक आदेश दिए थे. क्योंकि अगर पुलिस का गांववालों से सामना होता तो हजारों लोगों की जान जाती.’

सती प्रथा गलत और सही के सवाल पर गोपाल कहते हैं, ‘मैं भी सती प्रथा के विरोध में हूं, लेकिन रूप कंवर प्रथा की बजाय अपनी मर्जी से सती हुई थीं. जो कि राजपूत संस्कृति के अनुसार सही है. प्रथा के तहत तो सभी विधवाओं को सती होना अनिवार्य था.’

उन्होंने कहा, ‘रूप कंवर का अपने पति के प्रति इतना प्रेम था कि वो उनके बिना जिंदा नहीं रहना चाहती थी. अगर सती होने के लिए किसी ने उन पर दबाव डाला होता तो हम सबसे पहले उन पर केस कर देते, लेकिन उस गांव में हमारी काफी रिश्तेदारियां हैं, बुआ-बहन पहले से ब्याही हुई हैं तो हमें यही पता चला कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई है.’

रूप कंवर सती कांड के बाद दिवराला और जयपुर में देशी-विदेशी मीडिया का जमघट लग गया. इस कांड ने पूरी दुनिया में भारत की महिलाओं के नजरिये से छवि खराब की. तब की केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मंत्री मारग्रेट अल्वा ने जुलाई 2016 में जयपुर में अपनी आत्मकथा ‘करेज एंड कमिटमेंट’ का विमोचन करते हुए दिवराला सती केस से जुड़ा एक किस्सा सुनाया था.

बकौल अल्वा, ‘दिवराला सती कांड के विरोध पर तब के कुछ राजपूत सांसद मुझसे आकर मिले थे. उन्होंने कहा कि आप क्रिश्चियन हैं, राजपूतों की परंपराओं के बारे में क्या जानती हैं? तब मैंने उन्हें जवाब दिया कि आपके घरों में जो मां-बहनें विधवा हैं, उन्हें सती क्यों नहीं किया गया?’

रूप कंवर और उनके पति माल सिंह. (फोटो: माधव शर्मा)
रूप कंवर और उनके पति माल सिंह. (फोटो: माधव शर्मा)

किताब के अनुसार, अल्वा ने इसी समारोह में कहा था कि दिवराला केस के बाद उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इस्तीफा नामंजूर कर दिया और कहा कि आप इस्तीफा क्यों देंगी जो लोग दोषी हैं उन्हें इस्तीफा देना चाहिए.

इसके बाद राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को कांग्रेस नेतृत्व ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने का निर्देश दे दिया. इस तरह रूप कंवर सती कांड ने मुख्यमंत्री की कुर्सी हरिदेव जोशी से छीन ली.

चौतरफा आलोचना के बाद राजस्थान सरकार अध्यादेश लाई

रूप कंवर सती कांड से राजस्थान की देशभर में आलोचना होने लगी. राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी बनी. राज्य सरकार एक अक्टूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमा मंडन को लेकर एक अध्यादेश लाई जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी.

अध्यादेश के तहत किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्रकैद की सजा देने और ऐसे मामलों में महिमा मंडित करने वालों को सात साल कैद और अधिकतम 30 हजार रुपये जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया.

मंत्रिमंडल द्वारा अध्यादेश पारित करने के बाद तत्कालीन राज्यपाल बसंत दादा पाटिल ने राजस्थान सती निरोधक अध्यादेश 1987 पर दस्तखत कर दिए. बाद में सती (निवारण ) अधिनियम को राजस्थान सरकार द्वारा 1987 में कानून बनाया. भारत सरकार ने इसे 1988 में संघीय कानून में शामिल किया.

रूंप कंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ इस कानून को गलत मानते हैं. वे कहते हैं, ‘हमारी धार्मिक मान्यताओं के बीच कानून नहीं आना चाहिए. इसीलिए हम इस कानून के खिलाफ हैं. अक्टूबर में अध्यादेश लाने के बाद भी राजपूत समाज ने जयपुर के रामलीला मैदान में कानून की खिलाफत की थी. मैं सती प्रथा निवारण कानून के विरोध में आज भी हूं.’

कानून के विरोध और सती में उनकी धार्मिक मान्यता की तस्दीक गोपाल सिंह के ऑफिस के कमरे के पूजा घर में रखी रूप कंवर की चिता पर बैठी तस्वीर कर रही है जिसे आसमान से देवता आशीर्वाद दे रहे हैं.

1987 के बाद राजस्थान में सती के 24 केस सामने आए

राजस्थान सती निरोधक कानून बनने के बाद इसके तहत राजस्थान में सती प्रथा के 24 केस दर्ज किए गए गए हैं. इनमें से 13 केस 1987 में, सात केस 1988, दो 1989 और एक-एक केस 1993 और साल 2000 में सामने आए हैं.

इन सभी मामलों में कुल 151 लोगों को आरोपी बनाया गया. इनमें से 129 को बरी किया जा चुका है. नौ आरोपियों पर अभी ट्रायल चल रहा है. बाकी बचे 13 आरोपियों में से कुछ की मौत हो गई और कुछ फरार चल रहे हैं.

हालांकि रूप कंवर का केस सती होने का आखिरी केस है, जिसमें किसी महिला की मौत हुई है. इसके बाद दर्ज हुए मामलों में महिलाओं ने सती होने की कोशिश की, लेकिन उन्हें बचा लिया गया.

वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र सिंह शेखावत कहते हैं, ‘राजपूतों की नजर में सती होना सही और पारंपरिक घटना थी लेकिन आधुनिक समाज में ऐसी घटनाओं का विरोध होना ही था. राजपूतों ने रूप कंवर के सती होने के समर्थन में जयपुर में काफी प्रदर्शन किया था, जिससे सरकार भी थोड़ी डर गई थी.

वे कहते हैं, ‘लेकिन जितना राजपूत इस घटना के समर्थन में थे, उतना ही प्रबल प्रदर्शन इस प्रथा के विरोध में भी देखने को मिला था. वामपंथी संगठनों से जुड़े लोगों ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था.’

आठ महीनों में पति के साथ सिर्फ 20 दिन रही थी रूप कंवरः फैक्ट फाइडिंग रिपोर्ट

रूप कंवर सती केस के बाद बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट ने महिला और मीडिया की एक टीम बनाई थी. तीन सदस्यों की इस टीम की 40 पेज की रिपोर्ट में रूप कंवर केस और उसकी मीडिया रिपोर्टिंग को बारीकी से सामने रखा है.

बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट की ओर से गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जिसमें बताया गया है कि रूप कंवर अपने पति के साथ तकरीबन 20 दिन ही रही थीं.
बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट की ओर से गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट जिसमें बताया गया है कि रूप कंवर अपने पति के साथ तकरीबन 20 दिन ही रही थीं.

रिपोर्ट के मुताबिक रूप कंवर 10वीं कक्षा तक पढ़ी थीं और उनके पति माल सिंह ग्रेजुएट थे माल सिंह के पिता सुमेर सिंह गांव के ही एक स्कूल में प्रिंसिपल थे.

दोनों की 17 जनवरी 1987 को शादी हुई. जनवरी से चार सितंबर 1987 तक शादी के इन 8 महीनों में रूप कंवर पति माल सिंह के साथ सिर्फ 20 दिन ही रही थी. इसमें ज्यादातर दिन शादी के बाद तो कुछ दिन रूप कंवर की मौत से पहले दोनों ने एक साथ गुजारे थे.

इस बारे में रूप कंवर के भाई कहते हैं, ‘मुझे इस बारे में ठीक से याद नहीं कि दोनों एक साथ कितने दिन रहे थे, लेकिन दोनों पति-पत्नी साथ में कम ही दिन रहे थे. शादी के बाद अधिकांश दिन रूप कंवर ने अपने मायके में ही बिताया था.’

रिपोर्ट कहती है कि रूप कंवर के सती होने और माल सिंह की मौत के बारे में उसके पिता बाल सिंह राठौड़ को अगले दिन अखबारों की खबरों से पता चला था. जबकि जयपुर से दिवराला की दूरी महज दो घंटे की ही थी.

गोपाल सिंह के अनुसार, उन्हें घटना के अगले दिन राजस्थान पत्रिका के संवाददाता विशन सिंह शेखावत (राजस्थान के पूर्व सीएम और उपराष्ट्रपति भैरोंसिह शेखावत के छोटे भाई) ने फोन कर बताया था.

रिपोर्ट के अनुसार, घटना के 11 दिन बाद काफी विरोध के चलते राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने टेलीविजन पर घटना की निंदा की. तत्कालीन गृहमंत्री गुलाब सिंह शक्तावत घटना के वक्त सूखा प्रभावित क्षेत्र के दौरे पर निकले थे. शक्तावत का दावा था कि उन्हें घटना के बारे में 7-8 सितंबर को जैसे ही पता चला उन्होंने इसकी जांच के आदेश दे दिए.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने रूप कंवर मामले में हिंदी, अंग्रेजी और तमाम मीडिया की रिपोर्टिंग उस केस के बारे में की गई विस्तृत खबरों के बारे में भी रिपोर्ट सौंपी थी.

सामाजिक कार्यकर्ता और विविधाः महिला आलेखन एवं संदर्भ केंद्र की सचिव ममता जैतली ने दिवराला सती केस पर एक किताब भी लिखी की है. ‘रूप कंवरः देह दहन से अदालतों तक’ घटना का विस्तृत ब्योरा देती है और अंत में महिला स्वतंत्रता के नजरिये से कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है.

इस मामले में प्रशासन का ढीला रवैया, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और न्यायालय के आदेशों की अवहेलना के कई किस्से बताए गए हैं.

किताब के अनुसार, ‘दिवराला की घटना को अध्यादेश के दायरे में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन अध्यादेश जारी होने के बाद सती के समर्थन में हो रही गतिविधियां इसके दायरे में आ रही थीं. मगर जातियों और तमाम समूहों से जुड़े लोगों ने इसकी खुलेआम धज्जियां उड़ाईं. राजपूत समाज के लोगों ने सती होने को अपनी परंपरा के रूप में जोड़ा.’

किताब के मुताबिक, ‘उस समय सती धर्म रक्षा समिति का गठन हुआ और कुछ लोगों ने इससे अपनी राजनीति शुरू की. किताब के मुताबिक उस समय सती के महिमामंडन की जयपुर और अलग-अलग स्थानों पर 22 से ज्यादा आयोजन हुए, लेकिन इसमें से कार्रवाई सिर्फ 1988 वाली घटना में ही हो सकी.’

ममता कहती हैं, ‘रूप कंवर के केस में धर्म, राजनीति और पितृसत्ता का जो गठजोड़ दिखाई दिया उससे यह तो तय हो गया कि राजसत्ता भी पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रसित है. इसीलिए उसका झुकाव इन्हीं ताकतों के प्रति है.’

बहरहाल रूप कंवर की मौत को जायज ठहराने के भी जो तर्क तब थे वे अब भी दिए जा रहे हैं और जो विरोध में थे वे 32 साल बाद भी डटे हुए हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)