बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' से भारत की प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान की भरपाई के लिए मुआवज़ा मांगने वाली गुजरात के एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई कर रहे दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने ख़ुद को मामले से अलग करने का कोई कारण नहीं बताया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 2002 के गुजरात दंगों में उनकी कथित संलिप्तता पर बीबीसी की प्रतिबंधित डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में कथित रूप से शामिल होने के लिए एक छात्र लोकेश चुघ पर सालभर के लिए प्रतिबंध लगा दिया था. उन्होंने इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की संलिप्तता का दावा करने वाली बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन बीते 27 जनवरी को सरकार के इस क़दम के ख़िलाफ़ दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने परिसर में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की थी.
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ पर भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को 500 से अधिक भारतीय वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने देश की संप्रभुता और अखंडता को कम करने वाला बताया है. उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाना भारतीय नागरिकों के अधिकार का उल्लंघन करता है.
अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब द्वारा जारी बयान में भारत सरकार से बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ से प्रतिबंध हटाने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि अगर भारत 'प्रेस की स्वतंत्रता को नष्ट करना जारी रखता' रहा, तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में यह अपनी पहचान को बनाए नहीं रख सकता.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश को अवैध, दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है.
नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन जैसे संगठनों की ओर से कहा गया है कि पीआईबी की भूमिका मीडिया को सरकारी समाचार प्रदान करने की बनी रहनी चाहिए. इसे मीडिया की निगरानी, सेंसर करने और सरकार के लिए असुविधाजनक किसी भी जानकारी को फ़र्ज़ी समाचार के रूप में पहचानने का काम नहीं सौंपा जा सकता है.
गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का भारत में प्रसारण रोकने के लिए केंद्र सरकार हर संभव प्रयास कर रही है, बावजूद इसके गुरुवार को देश में कम से कम तीन जगह- तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस और कोलकाता एवं हैदराबाद में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया ने इसकी स्क्रीनिंग आयोजित की.
दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के गेट पर दंगा रोधी पुलिस तैनात की गई है. जानकारी के अनुसार, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने 70 से अधिक ऐसे छात्रों को हिरासत में लिया है, जबकि पुलिस ने सिर्फ चार छात्रों को हिरासत में लेने की बात कही है. इससे पहले जेएनयू में कथित बिजली कटौती और पथराव के बीच गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री की भूमिका से संबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग हुई थी.
बीते सप्ताह सूचना और प्रसारण सचिव द्वारा आईटी नियम, 2021 के नियम 16 का उपयोग करते हुए गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका रेखांकित करने वाली बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के निर्देश जारी किए गए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय वहां के संसद भवन में गुजरात दंगों में उनकी भूमिका रेखांकित करने वाली बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई. इसके बाद हुई एक चर्चा में ऑस्ट्रेलियाई ग्रीन्स सीनेटर ने भारत में मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति पर वहां के प्रधानमंत्री द्वारा मोदी से बात न करने पर चिंता जताई.
दिल्ली हाईकोर्ट में गुजरात स्थित जस्टिस ऑन ट्रायल नामक एक एनजीओ द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया है कि बीबीसी की दो भाग की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ ने भारत की प्रतिष्ठा पर धब्बा लगाया है. बीबीसी के ख़िलाफ़ इस संबंध में मानहानि की एक अन्य याचिका एक भाजपा नेता द्वारा दायर की गई है.
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दिल्ली की एक अदालत ने बीबीसी, विकिपीडिया और इंटरनेट आर्काइव को भाजपा नेता बिनय कुमार सिंह द्वारा दायर एक मानहानि के मुक़दमे के संबंध में समन जारी किया है. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया गया है कि ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नामक बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में आरएसएस, विहिप और भाजपा जैसे संगठनों की मानहानि की गई है.
गुजरात विधानसभा में प्रस्ताव पेश करने के दौरान भाजपा विधायक विपुल पटेल ने कहा कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ शीर्षक वाली विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री विश्व स्तर पर भारत की छवि को ख़राब करने के दुर्भावनापूर्ण प्रयास के तहत 2002 की घटनाओं को ग़लत तरीके से प्रस्तुत करती है.