वीडियो: बीते कुछ दिनों में देश में कोविड-19 मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है, जिससे लोगों की चिंता बढ़ी है. हालांकि, वैज्ञानिक इस वृद्धि को 'मामूली' बताते हुए कह रहे हैं कि ऐसे उतार-चढ़ाव उम्मीद के अनुरूप हैं. लेकिन क्या कोई नया सब-वैरिएंट इसकी वजह है? क्या दुनिया के अन्य हिस्सों में भी ऐसा हुआ है?
बीते 13 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक में दावा किया कि उनके शासनकाल में एम्स जैसी संस्थाओं की संख्या पहले के मुकाबले तीन गुना बढ़ी है. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय के डेटा के अनुसार, 2014 में उनकी सरकार आने के बाद से विभिन्न राज्यों में शुरू हुए एम्स में से एक भी पूरी तरह काम नहीं कर रहा है.
अक्टूबर 2022 में डब्ल्यूएचओ ने बताया था कि हरियाणा की मेडन फार्मास्युटिकल्स द्वारा बनाई गईं खांसी की चार दवाओं में डायथिलिन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल नामक पदार्थ पाए गए हैं, जो मनुष्यों के लिए ज़हरीले माने जाते हैं और इससे गांबिया में 66 बच्चों की मौत हुई है. हालांकि, भारत ने अपनी जांच में दवा निर्माता कंपनी को क्लीनचिट दे दी थी.
वीडियो: सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल तक कोविड की 'नई' लहर और लॉकडाउन की चिंताओं के बारे में बता रहे हैं. क्या कोविड-19 का बीएफ.7 स्वरूप अभी भारत में मिला है? केंद्र के अनुसार, 90% से अधिक आबादी को वैक्सीन की दो ख़ुराकें मिल चुकी हैं, तो फिर डर की वजह क्या है? बता रही हैं बनजोत कौर.
वीडियो: बीते अक्टूबर में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अफ्रीकी देश गांबिया में 66 बच्चों की मौत का संभावित कारण हरियाणा की मेडन फार्मास्युटिकल्स कंपनी की दवाओं को बताया गया था. अब गांबिया की संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस दावे की पुष्टि की है. मामले पर विस्तार में बता रही हैं द वायर की बनजोत कौर.
दिल्ली के एक एनजीओ की 'रैप्ड इन सीक्रेसी' नाम की यह रिपोर्ट भारतीय बाजार में व्यापक तौर पर बिकने वाले दस तरह के सैनिटरी पैड पर किए गए टेस्ट पर आधारित है.
मेडिकल और स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करने वाली अमेरिकी वेबसाइट स्टैट की रिपोर्ट के अनुसार, कोवैक्सीन की निर्माता भारत बायोटेक के एक निदेशक ने स्वीकार किया है कि टीकों को विकसित करने की प्रक्रिया में कुछ 'अनिवार्य' क़दम छोड़े गए थे.
वीडियो: डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, गांबिया में 66 बच्चों की मौत संभवतः भारत की दवा कंपनी द्वारा बनाए हुए कफ सीरप के दूषित होने के चलते हुई. भारत ने इसकी जांच की बात कही है लेकिन ऐसे पर्याप्त सबूत मौजूद हैं जो बताते हैं कि औषधीय एजेंसियों ने कंपनी के बारे में कई पूर्व चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया था.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई में दिए गए जवाब में कहा है कि फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को रिश्वत देने से रोकने के लिए स्वैच्छिक तौर पर लागू यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस ही पर्याप्त है. हालांकि, पूर्व में सरकार अनिवार्य क़ानून की ज़रूरत पर जोर देती रही है.
वीडियो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते साल 25 दिसंबर को टीवी पर घोषणा की थी कि भारत 10 जनवरी 2022 से कोविड वैक्सीन की तीसरी ख़ुराक यानी बूस्टर डोज़ की शुरुआत करेगा. इससे एक दिन पहले 24 दिसंबर को आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोविड प्रबंधन करने वाले शीर्ष नेतृत्व ने तीसरी ख़ुराक के सवाल से स्पष्ट रूप से कन्नी काट ली थी. सवाल ये है कि भारत के किस वैज्ञानिक संस्थान ने इसकी रातोंरात मंज़ूरी दे दी है? इस संबंध
वीडियो: पिछले हफ़्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा था कि साल 2020 और 2021 में लगभग 1.5 करोड़ लोगों ने या तो कोरोना वायरस से या स्वास्थ्य प्रणालियों पर पड़े इसके प्रभाव के कारण जान गंवाई है. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण से 47 लाख लोगों की मौत हुई. भारत के अलावा किसी भी बड़े देश ने अभी तक इन आंकड़ों पर सवाल नहीं उठाया है.
लांसेट जर्नल के एक नए विश्लेषण के मुताबिक़, साल 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में अनुमानित रूप से 40.7 लाख लोगों की मौत हुई. यह संख्या आधिकारिक तौर पर भारत में कोविड-19 से हुई मौतों से आठ गुना अधिक है. हालांकि इस रिपोर्ट को सरकार ने ख़ारिज कर दिया है.
इस साल स्वास्थ्य बजट आवंटन में बीते वर्ष की तुलना में सात फीसदी की कटौती की गई है. स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे क़रीब सौ छोटे-बड़े सिविल सोसाइटी समूहों के नेटवर्क जन स्वास्थ्य अभियान ने संसद से अपील की है कि वह इस कटौती को ख़ारिज कर आवंटन में बढ़ोतरी करे.
देश भर के डॉक्टरों की मांग है कि नीट-पीजी पास किए 50,000 एमबीबीएस डॉक्टरों की तत्काल काउंसलिंग कराई जाए, ताकि नए डॉक्टरों की भर्ती से उन पर मरीज़ों का बोझ घटे और कोरोना वायरस महामारी की आगामी आशांका को लेकर वे ख़ुद को उचित रूप से तैयार कर सकें.
मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले का मामला. जिले में 22 नवंबर को आयोजित एक मेडिकल कैंप में मोतियाबिंद के शिकार 65 लोगों की आंखों का ऑपरेशन किया गया था. सर्जरी के बाद कई मरीज़ों ने आंखों में दर्द की शिकायत की, जिसके बाद डॉक्टर की सलाह पर कई लोगों को अपनी आंखें निकलवानी पड़ी.