‘रघुपति राघव राजाराम’ से चिढ़ने वाले ‘राम मोहम्मद सिंह’ से कुछ सीख सकेंगे?

बापू के नाम पर बने सभागार में उनका प्रिय भजन गाने से रोकने वालों को शायद भान नहीं कि 'ईश्वर अल्ला तेरो नाम-सबको सन्मति दे भगवान' की संस्कृति इस देश की परंपरा में रही है. 1940 के दशक में बस्ती में 'निजाई बोल आंदोलन' में सक्रिय किसान नेता राम मोहम्मद सिंह इसकी बानगी हैं.

बस्ती: जब किसानों ने जमींदारों को पानी पिलाया!

आज़ादी से पहले बस्ती जिले में जमींदारों ने किसानों व मजदूरों को 'सबक' सिखाने के लिए यह कहकर कुंओं व तालाबों से पानी लेने पर रोक लगा दी कि उनसे पानी लेने का उनका कोई हक नहीं बनता. लेकिन किसानों ने इस रोक के विरुद्ध अप्रत्याशित रूप से नई रणनीति अपनाकर उलटे ज़मींदारों को ही पानी पिला दिया था.

इस साल हिंदुत्व व पूंजी की सत्ताओं ने राजसत्ता के अतिक्रमण की हदें ही पार कर डालीं!

इस साल की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि हिंदुत्व की छतरी के नीचे पली-बढ़ी धर्म व पूंजी की सत्ताओं ने हमारे राष्ट्र-राज्य की सत्ता के अतिक्रमणों के नए कीर्तिमान बना डाले हैं और कहना मुश्किल है कि इससे पैदा हुए उलझावों को सुलझाने में देश को कब तक व कितना हलकान होना पड़ेगा.

हम सबको किसी न किसी दिन जेल में डालने के लिए क़तार में खड़ा कर दिया गया है: मेधा पाटकर

नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने अयोध्या स्थित फैजाबाद प्रेस क्लब में काकोरी ट्रेन एक्शन के शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंची थीं. उन्होंने कहा कि आज देश की मांग है कि उससे प्रेम करने वाले शहादत नहीं अन्याय, अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर अपना योगदान दें.

बिस्मिल, अशफ़ाक़ शहादत दिवस: क्रांतिकारियों को बराबरी के बिना आज़ादी झूठी लगती थी

19 दिसंबर क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़उल्लाह खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह की शहादत का दिन है. आज जब देश की आज़ादी और लोकतंत्र गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, ज़रूरी हैं कि देशवासी शहीदों की स्मृतियां खंगालकर उनके व्यक्तित्व से नई प्रेरणा, नया बल प्राप्त करें.

जयंती विशेष: राधामोहन गोकुल, जिनकी विलक्षण तार्किकता ने उन्हें हिंदी नवजागरण का अनन्य नायक बनाया

गोकुल भारतीय चिंतन परंपरा की प्रतिगामी धारा को पूरी तरह खारिज करते हुए भी उसकी प्रगतिशील धारा की विरासत को आत्मसात करने में हिचकिचाते नहीं थे. उनका कहना था कि इस विरासत को पाश्चात्य चिंतन के क्रांतिकारी, जनवादी, वैज्ञानिक और प्रगतिशील मूल्यों से जोड़कर भारतवासी अपने भविष्य का रास्ता हमवार कर सकते हैं.

वीरों की ‘बस्ती’ को उजाड़ क्यों बता गए भारतेंदु?

अयोध्या के उत्तर से बहने वाली सरयू के दूसरी तरफ स्थित बस्ती की 'महिमा' अयोध्या का पड़ोसी होने के बावजूद घटी ही है. इस कदर कि कई लोग उसे अयोध्या की छाया या पासंग भर भी नहीं मानते. वे चिंंतित हो उठे कि ‘नई सभ्यता अभी तक इधर नहीं आई है.’

इस घुप्प अंधेरे में नागरिकों के विवेक को संबोधित करने वाले लोग कहां हैं?

इस समय संविधान की सबसे बड़ी सेवा सत्ताधीशों के स्वार्थी मंसूबों की पूर्ति के उपकरण बनने से इनकार करना है. समझना है कि संविधान के मूल्यों को बचाने की लड़ाई सिर्फ न्यायालयों में या उनकी शक्ति से नहीं लड़ी जाती. नागरिकों के विवेक और उसकी शक्ति से भी लड़ी जाती है.

क्या मतदाता सरकारों से ‘संतुष्ट’ रहने लगे हैं?

हर बार चुनावों से पहले मीडिया के मैनेजमेंट से छनकर बढ़ती ग़रीबी, ग़ैर-बराबरी, बेरोज़गारी व महंगाई वगैरह के कारण सरकारों के प्रति आक्रोश व असंतोष की जो बातें सामने आ जाती हैं, क्या वे सही नहीं हैं? मतदाताओं की सरकारों से इस 'संतुष्टि' को कैसे देखा जाए?

जयंती विशेष : नेता जी के प्रतिद्वंद्वी भर नहीं थे पट्टाभि सीतारमैया

डॉ. भोगाराजू पट्टाभि सीतारमैया ने ‘द हिस्ट्री ऑफ कांग्रेस’ नाम से कांग्रेस का इतिहास लिखा, जो प्रामाणिकता में आज भी अपना सानी नहीं रखता. आज उनकी जन्मतिथि है.

उत्तर प्रदेश: उपचुनावों के नतीजों से बड़ा हो गया है उनकी विश्वसनीयता का सवाल

यूपी उपचुनाव के नतीजों के समय याद रखना चाहिए कि मतदान के दिन कई जगह पुलिसकर्मी नापसंद मतदाताओं को मतदान से वंचित करने के लिए उनके पहचान पत्र चेक करते, राह रोकते, उन पर रिवॉल्वर तक तानते दिखे थे. सत्ता तंत्र इस तरह चुनाव कराने लगेगा तो लोकतंत्र का भविष्य क्या होगा.

डॉ. रखमाबाई राउत: पितृसत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष की प्रणेता

जयंती विशेष: 19वीं सदी के उत्तरार्ध में महिला अधिकारों की स्थिति कहीं बदतर थी. ऐसे में ख़ुद बाल विवाह का शिकार हुईं बॉम्बे की रखमाबाई ने इस विवाह के विरुद्ध अपनी पूरी शक्ति से मुखर हुईं, तो पितृसत्ता व पुनरुत्थान के सारे पैरोकार तिलमिलाहट से भरकर उनके विरुद्ध हमलावर हो उठे थे.

जैसे फ़ैज़ाबाद अब फ़ैज़ाबाद नहीं रहा, वैसे ही उसमें कुंवर नारायण की स्मृतियां भी नहीं बचीं

पुण्यतिथि विशेष: कुंवर नारायण का जन्म अयोध्या के उस हिस्से में हुआ था, जिसे तब फ़ैज़ाबाद कहा जाता था. उनके बारे में कहा जाता है कि वे अनुपस्थित रहकर हमारे बीच ज्यादा उपस्थित रहेंगे, पर अपनी जन्मभूमि में उनकी किंचित भी ‘उपस्थिति’ नहीं दिखाई देती.

यूपी: बरेली में नेहरू की प्रतिमा का अपमान उनके प्रति कुत्सा भरे अभियान का नतीजा है

आठ महीने पहले यूपी के बरेली में नगर निगम व ज़िला प्रशासन द्वारा शहर को 'स्मार्ट' बनाने के लिए पुनर्स्थापित करने के वादे पर जवाहरलाल नेहरू की एक प्रतिमा को उसकी जगह से उखाड़ा गया, जो पिछले दिनों मिशन अस्पताल परिसर में कूड़े के ढेर में मिली.

अयोध्या विवाद: किन्हें, क्यों और कैसे याद आएंगे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

कई जानकारों का कहना है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल में (खासकर अंतिम दिनों में) जो कुछ भी कहा व किया, उससे इस बात को ख़ुद अपने ही हाथों निर्धारित कर डाला कि इतिहास उनके प्रति कैसा सलूक करे.

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