अगर आचार्य रामदास की मुहिम चलती रहती तो हिंदी में विज्ञान लेखन की इतनी दुर्गति न होती

पुण्यतिथि विशेष: 12 सितंबर, 1937 को अंतिम सांस लेने वाले आचार्य रामदास गौड़ द्वारा पैदा की गई वैज्ञानिक चेतना का ही परिणाम था कि उन दिनों विज्ञान लेखकों की गणना भी साहित्यकारों में की जाती थी.

‘दलित’ के बजाय ‘अनुसूचित जाति’ का इस्तेमाल: ऐसे बेहिस तर्कों का हासिल क्या है?

आज की तारीख़ में ज़्यादातर दलितों को ख़ुद को ‘दलित’ कहलाने में किसी भी तरह के अपमान का बोध नहीं होता. इसके उलट यह शब्द उनकी एकता का प्रेरक बन गया है, लेकिन सरकार को वह उनके प्रति बेहद अपमानजनक लग रहा है.

दुलारे लाल भार्गव: जिन्हें निराला ‘साहित्य का देवता’ कहा करते थे

पुण्यतिथि विशेष: अपने समय की दो बेहद महत्वपूर्ण पत्रिकाओं ‘माधुरी’ और ‘सुधा’ को शिखर पर पहुंचाने में दुलारे लाल भार्गव के अप्रतिम योगदान को लेकर बहुत से लोग उन्हें लखनऊ की हिंदी पत्रकारिता का पितामह मानते हैं.

रवीन्द्रनाथ त्यागी: ‘जिसने देखा नहीं मेरा कवि, उसने देखी नहीं मेरी सच्ची छवि’

पुण्यतिथि विशेष: बहुत कम ही लोग जानते हैं कि त्यागी जितने अच्छे व्यंग्यकार थे, उतने ही बड़े कवि भी थे. एक आलोचक की मानें तो उनके साहित्यिक जीवन की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यही थी कि उनके व्यंग्यकार की लोकप्रियता ने एक बार उनके कवि की गरदन दबोची, तो फिर जीवन भर नहीं छोड़ी.

नोटबंदी: न ख़ुदा ही मिला न विसाल ए सनम

सरकार का कहना था कि बंद किए गए नोटों में से लगभग 3 लाख करोड़ मूल्य के नोट बैंकों में वापस नहीं आएंगे और यह काले धन पर कड़ा प्रहार होगा, लेकिन रिज़र्व बैंक मुताबिक अब नोटबंदी के बाद जमा हुए नोटों का प्रतिशत 99 के पार पहुंच गया है. यानी या तो इन नोटों में कोई काला धन था ही नहीं या उसके होने के बावजूद सरकार उसे निकालने में विफल रही.

आम आदमी पार्टी के इस अंजाम से भाजपा और कांग्रेस के लिए भी कई सबक हैं

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सबक यह है कि उसका पुनर्जीवन राहुल के करिश्मे की प्रतीक्षा में नहीं, नीतियों के पुनर्निर्धारण व अमल में है, जबकि भाजपा के लिए यह कि नीतिविहीनता के उसके वर्तमान हालात में नरेंद्र मोदी का खत्म होने को आ रहा करिश्मा कभी भी उसके सपनों के महल की सारी ईंटें भरभराकर गिरा देगा.

गुरुमूर्ति जी! केरल की बाढ़ के पीछे महिलाएं नहीं, सत्ताओं की नीतिगत विफलताएं और इंसानी लोभ हैं

नीति-निर्माण में भागीदार होने के बावजूद गुरुमूर्ति सच्चाइयों का सामना नहीं करना चाहते और शुतरमुर्ग की तरह रेत में सिर गड़ाकर इस अंधविश्वास की शरण लेना चाहते हैं कि सारा अनर्थ सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के कारण हुआ है.

अपने अवसान के दिन तक संभावनाओं से भरे हुए थे राजीव गांधी

जयंती विशेष: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सातवें और अब तक के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ अपने आत्मीय रिश्ते को याद करते हुए एक बार बताया था कि कैसे राजीव ने उनकी जान बचाई थी.

इस ‘श्रद्धांजलि’ से वह तिलांजलि नहीं छिपेगी, जो संघ ने अटल को जीते जी दे दी थी

स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं के बाद अटल​ बिहारी वाजपेयी जब दीन-दुनिया से बेख़बर रहने लगे, तो क्या संघ परिवार के उन नेताओं में से ज़्यादातर ने, जो आज उनके लिए मोटे-मोटे आंसू बहा रहे हैं, कभी उनका हालचाल जानने की ज़हमत भी उठायी?

प्रधानमंत्री जी! कभी ‘मन की बात’ में ‘आकाशवाणी’ की बात भी कीजिए

जिस आकाशवाणी को प्रधानमंत्री अपने मन की बात देशवासियों तक पहुंचाने का सबसे उपयुक्त माध्यम मानते हैं उसमें काम करने वाले अपने ख़राब हाल के चलते लंबे समय से आंदोलित हैं.

अयोध्या में अब कोई ‘पागलदास’ नहीं रहता

जयंती विशेष: अंतरराष्ट्रीय ख्याति के मृदंगाचार्य रामशंकरदास उर्फ स्वामी पागलदास को खोकर अयोध्या आज भी उतनी ही उदास है जितनी वह मध्यकाल में वैरागियों द्वारा निर्गुण संत कवि पलटूदास को ज़िंदा जलाए जाने के वक़्त हुई होगी.

स्वतंत्रता के सात दशक बाद मिली भीख मांगकर भूख मिटाने की ‘आज़ादी’ का ज़िम्मेदार कौन?

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए सरकार से पूछा था कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है.

जब बंगाल में ऐसी धोतियां फैशन में थीं जिनके किनारों पर ‘खुदीराम बोस’ लिखा रहता था

शहादत दिवस पर विशेष: सामान्य युवा इतना भले ही जानते हैं कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने देश को सरदार भगत सिंह जैसा शहीद-ए-आज़म दिया, लेकिन सबसे कम उम्र के शहीद के बारे में कम ही लोग जानते हैं.

प्रधानमंत्री ने जनता से 60 महीने मांगे थे, 50 हवाबाज़ी में बिता दिए!

‘चतुर’ प्रधानमंत्री ने चुनाव के लिए निर्धारित समय से पहले ही ख़ुद को अपनी पार्टी के प्रचारक में बदल लिया है. सरकारी तंत्र व समर्थक मीडिया की जुगलबंदी के ज़रिये जनता को यह यकीन करने पर मजबूर किया जा रहा है कि उनकी सरकार खूब काम कर रही है.

सदन में दिखा कि राहुल और जो भी हों, ‘पप्पू’ तो नहीं हैं

कांग्रेस ने यह संकेत दिया है कि राहुल की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए वह भाजपा के ख़िलाफ़ प्रस्तावित विपक्षी महागठबंधन को ख़तरे में नहीं डालने वाली.

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