नज़ीर अकबराबादी: होली की बहारों का बेनज़ीर शायर

फिराक़ गोरखपुरी लिखते हैं कि नज़ीर दुनिया के रंग में रंगे हुए महाकवि थे. वे दुनिया में और दुनिया उनमें रहती थी, जो उनकी कविताओं में हंसती-बोलती, जीती-जागती त्योहार मनाती नज़र आती है.

सब कुछ बदलने का वादा करके आए मोदी ने भ्रष्ट आर्थिक नीतियों को ही आगे बढ़ाया

आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब ​नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.

क्यों कश्मीर में सेना और नागरिकों को आमने-सामने खड़ा किया जा रहा है?

कश्मीर के हालात अब न सैनिकों के लिए अच्छे रह गए हैं, न वहां की जनता के लिए. दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति संदेह का पहाड़ खड़ाकर कर दिया गया है जो रास्ता छोड़ने को तैयार नहीं.

आम बजट: बड़े-बड़े बदलावों के वादे अंततः वादे ही क्यों रह गए?

प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि यह किसानों, गरीबों व वंचितों का बजट है तो उन्हें याद दिलाना होगा कि उन्होंने पिछले बजट को ‘सबके सपनों का बजट’ बताया था.

अब तो अटल बिहारी जैसा कोई प्रधानमंत्री भी नहीं है, जो योगी को राजधर्म की याद दिलाए

कासगंज में जिन अल्पसंख्यकों ने तिरंगा फहराने के लिए सड़क पर कुर्सियां बिछा रखी थीं, वे अचानक वंदे मातरम् का विरोध और पाकिस्तान का समर्थन क्यों करने लगेंगे?

बापू ने अयोध्या में कहा था, हिंसा कायरता का लक्षण और तलवारें कमज़ोरों का हथियार हैं

साल 1921 में गांधीजी ने फ़ैज़ाबाद में निकले जुलूस में देखा कि ख़िलाफ़त आंदोलन के अनुयायी हाथों में नंगी तलवारें लिए उनके स्वागत में खड़े हैं. जिसकी उन्होंने सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी.

‘कहानी लेखन में गिरावट का दौर है, अच्छा साहित्य आंदोलनों से निकलकर सामने आता है’

शुक्रवार 12 जनवरी को हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार दूधनाथ सिंह का निधन हो गया. जीवन और साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर उनसे हुई एक पुरानी बातचीत.

जीएसटी व नोटबंदी के दुष्प्रभावों को नकारना नुकसानदेह साबित होगा

उत्तराखंड सरकार के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के ‘जनता दरबार’ मेें नोटबंदी व जीएसटी के कहर से पीड़ित एक ट्रांसपोर्ट व्यवसायी ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली.

उत्तर प्रदेश: कंबल गरीब को और मुंह कैमरे की ओर!

उत्तर प्रदेश में विधायक सरकारी खजाने से गरीबों को कंबलों के साथ सरकारी स्कूलों के छात्रों को जूते-मोजे और स्वेटर भी बांट रहे हैं. मगर इस अदा से जैसे उनकी बड़ी अनुकंपा कि जनवरी में बांट दे रहे हैं वरना मार्च-अप्रैल में बांटते तो कोई क्या कर लेता?

सवाल पाक की बदसलूकी का ही नहीं, आपकी रहबरी का भी है

क्या कारण है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नहीं बता पा रहीं कि वे और उनका मंत्रालय जाधव की मां व पत्नी को पाकिस्तान के मानवीय मुलाकात के झांसे से बचाने में क्यों विफल रहे?

पांडेय बेचन शर्मा: वह ‘युग’ भले ही प्रेमचंद का था, लेकिन लोक में ‘उग्र’ की ही धाक थी

जन्मदिन विशेष: जब कलावादी आलोचकों ने ‘उग्र’ की कहानियों को अश्लील, घासलेटी और कलाविहीन कहा, तब उनका जवाब था कि अगर सत्य को ज्यों का त्यों चित्रित कर देने में कोई कला हो सकती है तो मेरी इन कहानियों में भी कला है

बनारसीदास चतुर्वेदी, जिन्हें हिंदी के लोगों ने भुला दिया

जयंती विशेष: हिंदी के लोग अब आम तौर पर लेखक और पत्रकार पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी को न याद करते हैं, न ही उनकी पत्रिका ‘विशाल भारत’ को. यहां तक कि उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर भी उन्हें याद नहीं किया जाता.