प्रोफेसर तुलसीराम: अपने समय के कबीर

प्रोफेसर तुलसीराम जाति व्यवस्था को परमाणु बम से भी ज़्यादा घातक मानते और कहते थे कि आप किसी शहर पर परमाणु बम गिरा दें तो वह उसकी एक-दो पीढ़ियों को ही नष्ट कर पाएगा. पर हमारे समाज पर थोपी गई जाति व्यवस्था पीढ़ी दर पीढ़ी संभावनाओं का संहार करती आ रही है.

अयोध्या में भाजपा की डैमेज कंट्रोल की कवायदें भी डैमेज हुई जा रही हैं!

राम मंदिर की ओर जाने वाले पथों के निर्माण व चौड़ीकरण के काम में दुकानों व प्रतिष्ठानों की तोड़-फोड़ से विस्थापित जिन व्यवसायियों के आक्रोश को लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का बड़ा कारण बताया जा रहा है, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चुनावी नतीजों के बाद अचानक सोते से जागकर उनकी सुध लेनी शुरू की तो उसे डैमेज कंट्रोल के उसके सबसे सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया था.

अयोध्या: हार से सबक लेने के वक़्त स्वयंभू हिंदुत्ववादी बौखलाए हुए क्यों हैं?

फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा की हार के बाद अयोध्यावासियों के आर्थिक बहिष्कार के आह्वान से लेकर वर्तमान सांसद की मृत्युकामना तक जिस तरह अभिव्यक्ति की सीमाएं लांघी जा रही हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ. शायद इसलिए कि हिंदुत्ववादियों के स्वार्थों को इतनी गहरी चोट लगी है कि समझ नहीं पा रहे कि करें तो क्या करें?

विपक्ष की भूमिका हथियाने का प्रयोग क्यों दोहरा रहा है आरएसएस?

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्वकाल में ताकतवर विपक्ष द्वारा उनके और उनकी सरकार के विरुद्ध किए जाने वाले विकट हमलों की धार कुंद करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वाजपेयी पर अपनी ओर से हमले प्रायोजित किए थे. आज नरेंद्र मोदी के सामने भी मजबूत विपक्ष है, और संघ प्रमुख मोहन भागवत फिर से वही प्रयोग करने का प्रयास कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश: अगर विपक्षी गठबंधन ‘मंडल-2’ है तो इसे ‘कमंडल-2’ से सचेत रहना होगा

सामाजिक अन्याय झेलते आ रहे कई वंचित तबके सपा-कांग्रेस एकता की बिना पर आए लोकसभा चुनाव के नतीजों को ‘मंडल-2’ की संज्ञा दे रहे और भविष्य को लेकर बहुत आशावान हैं. हालांकि, इस एकता की संभावनाओं और सीमाओं की गंभीर व वस्तुनिष्ठ पड़ताल की ज़रूरत है.

भाजपा के शुभचिंतक उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के निर्णय को स्वीकार क्यों नहीं पा रहे हैं

जहां भाजपा सपा (और कांग्रेस) द्वारा उत्तर प्रदेश में उसे दी गई गहरी चोट को ठीक से सहला तक नहीं पा रही, उसके शुभचिंतक बुद्धिजीवी और विश्लेषक ‘मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त’ की तर्ज पर इस चोट को साधारण क़रार देने के लिए एक के बाद एक कुतर्क गढ़ रहे हैं.

लोकसभा चुनाव: उत्तर प्रदेश ने भाजपा को क़रारा जवाब दिया है

फ़ैज़ाबाद लोकसभा सीट के मतदाताओं ने साफ कह दिया कि प्रधानमंत्री की पार्टी उनकी सरकारों द्वारा ‘भव्य’ और ‘दिव्य’ क़रार दी गई अयोध्या का प्रतिनिधित्व करने लायक नहीं बची है.

नौ प्रधानमंत्री, फिर भी उत्तर प्रदेश बेहाल

प्रधानमंत्रियों के निर्वाचन क्षेत्र के निवासी वीआईपी सीट के गुमान में भले जीते रहें, लेकिन इससे उनकी सामाजिक-राजनीतिक चेतना पर कोई फ़र्क पड़ता दिखाई नहीं देता. और न प्रधानमंत्री की उपस्थिति ऐसे क्षेत्रों की समस्याओं को सुलझा पाती है.

चुनावी इतिहास में ऐसी शिकस्तें भी रहीं, जो नेताओं के गले पड़कर भी उन्हें रोक नहीं पाईं

पहले ‘तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें ये दूंगा’ जैसी सौदेबाज़ी और नैतिकताओं व सरोकारों को तिलांजलि देने का रिवाज इतना आम नहीं था. ठीक है कि जिताने-हराने की अच्छी-बुरी कवायदें तब भी कुछ कम नहीं होती थीं, लेकिन हारने वाले नेताओं की आज जितनी खिल्ली नहीं ही उड़ाई जाती थी.

‘एनडीए अब गठबंधन नहीं भाजपा के वर्चस्व वाला जमावड़ा है, जिसमें अधिकतर घटक दल मजबूरी में हैं’

साक्षात्कार: डाॅ. रामबहादुर वर्मा जाने-माने राजनीति विज्ञानी, लेखक व स्तंभकार हैं, जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दो टूक विश्लेषण के लिए जाने जाते हैं. 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र उनसे बातचीत.

भगत सिंह चाहते थे कि जो क्रांतिकारी शहीद नहीं हुए, वे अपने जीवन को मिसाल बनाएं

नवंबर, 1930 में भगत सिंह ने मुल्तान जेल में बंद अपने साथी बटुकेश्वर दत्त को लिखा था कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुक़ाबला भी कर सकते हैं.

वाराणसी: जब कांग्रेस ने वामपंथी नेता रुस्तम सैटिन को ‘हिंदू-मुसलमान’ करके हराया!

1957 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वाराणसी दक्षिणी निर्वाचन क्षेत्र से एंटी-इंकंबेंसी झेल रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री डाॅ. संपूर्णानंद के सामने स्वतंत्रता सेनानी व वामपंथी नेता रुस्तम सैटिन खड़े हुए थे. हालांकि उनकी हिंदू-मुस्लिम एकता की पैरोकारी पर मुस्लिम सांप्रदायिकता की तोहमत लगाकर उन्हें हरा दिया गया.

‘बाबा साहेब किताबें इकट्ठा करते थे, लेकिन मैं लोगों को इकट्ठा करता हूं’

जन्मदिन विशेष: मान्यवर कांशीराम के निकट राजसत्ता की चाभी बहुजन हितकारी सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के बंद ताले खोलने का पूरी तरह अपरिहार्य साधन थी और वे मानते थे कि देश की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्थाओं में बहुजनों को अपरहैंड तभी मिल सकता है, जब यह चाभी उनके पास रहे. इसके इतर स्थिति में जिसके हाथ में यह चाभी रहेगी, उन्हें उसी की धुरी पर नाचते रहना होगा.

लोकसभा चुनाव: अयोध्या में तो मुक़ाबला शुरू भी नहीं हुआ और उसकी ‘गर्मी’ ख़त्म हो गई!

भाजपा ने उत्तर प्रदेश की फैजाबाद लोकसभा सीट (जिसके अंतर्गत अयोध्या आती है) पर अपने दो बार के सांसद लल्लू सिंह को ही तीसरी बार टिकट दिया है. ऐसे में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद चर्चा में आई अयोध्या में चुनावी मुक़ाबले में नएपन की उम्मीद कर रहे लोगों को ख़ासी नाउम्मीदी हुई है.

जब घबराहट में ‘घोड़े पै हौदा, हाथी पै जीन’ की हालत में भेष बदलकर भागा वारेन हेस्टिंग्स

1781 में बनारस के राजा चेत सिंह की सेना व प्रजा दोनों ने एकजुट होकर अत्याचारी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ ऐसी बगावत की थी, जिसमें उनके गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को मुंह छुपाकर भाग जाना पड़ा था. ‘बनारस विद्रोह’ के नाम से जानी जाने वाली उस क्रांति को इतिहास में जगह देने में इतिहासकारों ने बहुत कंजूसी की है.

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