‘हम अब तक समझ नहीं पाए कि हमें किस जुर्म में ​गोरखपुर पुलिस ने गिरफ़्तार किया था’

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में बीते 20 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने सीतापुर को दो फेरीवाले राशिद अली और मोहम्मद यासीन को गिरफ़्तार कर लिया था. 12 दिन जेल में रखने के बाद उन्हें ज़मानत दी गई.

नागरिकता क़ानून: ज़मानत मिलने के बावजूद गोरखपुर जेल में बंद हैं सीतापुर के दो फेरीवाले

ग्राउंड रिपोर्ट: गोरखपुर में 20 दिसंबर को नागरिकता क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शन के बाद पुलिस ने कई लोगों को गिरफ़्तार किया था. इनमें से कई के परिजनों का कहना है कि गिरफ़्तार किए लोग प्रदर्शन में मौजूद नहीं थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया और बेरहमी से मारपीट की गई.

नागरिकता क़ानून: योगी बोले- जो नहीं सुधरेंगे उन्हें जहां की यात्रा करनी है, वहां की करा दी जाएगी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई युद्धस्तर पर कराने की बात कही.

ऑक्सीजन कांड: क्या डॉ. कफ़ील को घेरने के चक्कर में योगी सरकार ख़ुद घिरती जा रही है?

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपी डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ की जा रही जांच की रिपोर्ट बीते अप्रैल में मिलने के बाद सरकार अब तक कोई निर्णय नहीं ले सकी है. इसके अलावा बहराइच मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ जांच के लिए इसी महीने अधिकारी नामित किया गया है. यह दिखाता है कि डॉ. कफ़ील पर लगे आरोपों की तेज़ी से जांच कराने में ख़ुद सरकार को कोई रुचि नहीं है.

क्या गोरखपुर ऑक्सीजन कांड में डॉ. कफ़ील ख़ान को बलि का बकरा बनाया गया?

साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपी डॉ. कफ़ील ख़ान से संबंधित जांच रिपोर्ट आ गई है. रिपोर्ट के अनुसार, उन पर ऑक्सीजन की कमी की सूचना अधिकारियों को न देने और कर्तव्यों का पालन न करने के आरोप साबित नहीं हो पाए हैं.

जब प्रेमचंद ने महात्मा गांधी का भाषण सुनकर सरकारी नौकरी छोड़ दी थी…

वह असहयोग आंदोलन का ज़माना था, प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे. बेहद तंगी थी, बावजूद इसके गांधी जी के भाषण के प्रभाव में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था.

चमकी बुखार: अगर नीतीश सरकार ने समय रहते तैयारी की होती, तो बच्चों की जानें बच सकती थीं

ग्राउंड रिपोर्ट: मुज़फ़्फ़रपुर और आस-पास के जिलों में चमकी बुखार का प्रकोप अप्रैल से शुरू होता है और जून के महीने तक मानसून आने तक बना रहता है. इस लिहाज़ से लोगों को जागरूक करने के लिए और अन्य आवश्यक तैयारियां जनवरी माह से शुरू हो जानी चाहिए थीं लेकिन गांवों में जाने पर जागरूकता अभियान के कोई चिह्न दिखाई नहीं देते.

साल दर साल काल के गाल में समाते बच्चे और गाल बजाते नेता

सोमवार को मुज़फ़्फ़रपुर दौरे पर पहुंचे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कई योजनाओं की घोषणा की, तो उन्हें 2014 में की गई घोषणाओं के बारे में ध्यान दिलाया गया, जिस पर वह असहज हो गए. दरअसल वे पांच साल पूर्व की गई अपनी ही घोषणाएं फिर से दोहरा रहे थे जो अब तक या तो अमल में ही नहीं आ सकी हैं या आधी-अधूरी हैं.

उत्तर प्रदेश: पूर्वांचल के गन्ना किसानों की सुध क्यों नहीं ले रही है सरकार?

उत्तर प्रदेश में अब भी गन्ना किसानों का 10,626 करोड़ रुपये बकाया है और जून के महीने में भी गन्ने की फसल खेतों में खड़ी है. उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में गन्ना किसानों की समस्याओं को भाजपा ने प्रमुखता से उठाया था, लेकिन केंद्र और प्रदेश में सरकार बनने के बाद भी उनकी समस्याएं हल नहीं हो सकी हैं.

गाय का नाम जपने वाली योगी सरकार में गायों का हाल बुरा क्यों है?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह ज़िले गोरखपुर के बांसगांव और पड़ोसी ज़िले महराजगंज के मधवलिया गोसदन में बड़ी संख्या में गोवंशीय पशुओं की मौत हुई है.

ओम प्रकाश राजभर की राजनीति क्या है?

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री थे. बीते दिनों उन्हें पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया.

भोजपुरी सिनेमा की दुनिया और सितारों की राजनीति

गोरखपुर से भाजपा प्रत्याशी और भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार रवि किशन ने कहा है कि वह गोरखपुर में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री बनाएंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि भोजपुरी फिल्में ठहराव के दौर से गुज़र रही हैं. भोजपुरी फिल्म उद्योग लगातार मंदा पड़ता जा रहा है और उसके अच्छे दिन चले गए हैं.

उत्तर प्रदेश: पीस पार्टी क्यों अलग-थलग पड़ गई है

गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा को साथ लाने का दावा करने वाली पीस पार्टी शिवपाल यादव की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. पार्टी ने 17 लोकसभा सीटों अपने प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन किसी भी सीट पर सफलता तो दूर वह ठीक-ठाक प्रदर्शन करने के प्रति भी आश्वस्त नहीं है.

नेताओं और कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद भाजपा ने गोरखपुर से रवि किशन को टिकट क्यों दिया?

विशेष रिपोर्ट: गोरखपुर में भाजपा आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही है. प्रत्याशी चयन में एक महीना लगना और इस दौरान दर्जन भर नेताओं का नाम आना व ख़ारिज होना इसका उदाहरण है. आखिर में ऐसे प्रत्याशी को ‘आयात’ करना पड़ा, जिसे लेकर पार्टी और समर्थकों में उत्साह नहीं दिख रहा है.

क्या योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट से ‘योग्य उम्मीदवार’ नहीं ढूंढ पा रही है भाजपा?

विशेष रिपोर्ट: पिछले उपचुनाव में गोरखपुर से मिली हार के चलते पूरे देश में भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट अब पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे अधिक चिंता की सीट बन गई है.