गोरखपुर में एक अदद प्रेक्षागृह के लिए पिछले 24 वर्षों से अनूठे किस्म का रंग आंदोलन चलाया जा रहा था. 1258 नाटकों के बाद रंगाश्रम का यह रंग आंदोलन ख़त्म हो गया.
विशेष: उत्तर प्रदेश के बस्ती से सूरीनाम गए एक परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजमोहन ने अपने पुरखे गिरमिटिया मज़दूरों जीवन-गाथा को संगीत में ढाला है.
चुनाव में हार के बाद जब पीएम जवाहर लाल नेहरू से उनकी भेंट हुई तो नेहरू ने पूछा, सहाय साहब कैसे हैं? फ़िराक़ गोरखपुरी का जवाब था, ‘सहाय’ कहां, अब तो बस ‘हाय’ रह गया है.
सांप्रदायिकता और जातिवाद के ख़िलाफ़ शुरू होने वाले गोरखनाथ पीठ से कभी बड़ी संख्या में मुसलमान और अछूत मानी जाने वाली जातियां जुड़ी थीं.