हिंसा पूरे भारत में है, लेकिन बंगाल का राजनीतिक स्वभाव ही हिंसक है

पश्चिम बंगाल में पहले वाम हिंसा का बोलबाला था, वही संस्कृति तृणमूल ने अपनाई. तृणमूल ने वाम हिंसा का सामना किया था, पर उसकी जगह अब उसने तृणमूल हिंसा स्थापित कर दी. दल भले बदल गए, लेकिन हिंसा बनी हुई है.

‘द कश्मीर फाइल्स’ के सरकारी प्रमोशन के क्या मायने हैं

कश्मीरी पंडितों का विस्थापन भारत की गंगा-जमुनी सभ्यता के माथे पर बदनुमा दाग़ है और उसे मिटाने के लिए तथ्यों के धार्मिक सांप्रदायिक नज़रिये वाले फिल्मी सरलीकरण की नहीं बल्कि व्यापक और सर्वसमावेशी नज़रिये की ज़रूरत है. दुर्भाग्य से यह ज़रूरत अब तक नहीं पूरी हो पाई है और पंडितों को राजनीतिक लाभ के लिए ही भुनाया जाता रहा है.

हिजाब बैन: स्कूल यूनिफॉर्म की सरकारी समझ छात्राओं के शिक्षा के अधिकार के ऊपर नहीं है

स्कूल की वर्दी या यूनिफॉर्म के पीछे का तर्क छात्रों में बराबरी की भावना स्थापित करना है. वह वर्दी विविधता को पूरी तरह समाप्त कर एकरूपता थोपने के लिए नहीं है. उस विविधता को पगड़ी, हिजाब, टीके, बिंदी व्यक्त करते हैं. क्या किसी की पगड़ी से किसी अन्य में असमानता की भावना या हीनभावना पैदा होती है? अगर नहीं तो किसी के हिजाब से क्यों होनी चाहिए?

विधानसभा चुनाव परिणाम: आशा और आशंका के बीच जनतंत्र कहां है

जनादेश जब इस क़िस्म का हो कि मतदाताओं का एक तबका उसमें ख़ुद को किसी तरह शामिल न कर पाए, तो उसके मायने यही होंगे कि जनता खंडित हो चुकी है.

क्या चुनावी संबोधनों में छुटभैये नेताओं और प्रधानमंत्री का स्तर समान हो गया है

बात सत्ता हासिल करने की हो, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी में बदल जाते हैं. हाल ही में किया गया उनका हमला समाजवादी पार्टी या साइकिलों पर नहीं, ख़ुद उनके पद की गरिमा पर है.

हिंदू और हिजाब

हिंदुओं में अभी उदारता का ज्वार उमड़ पड़ा है, प्रगतिशीलता का भी. वे औरतों को हर परदे, हर बंधन से आज़ाद देखना चाहते हैं. वे कट्टरता के ख़िलाफ़ लड़ना चाहते हैं. लेकिन यह सब वे मुसलमान औरतों के लिए करना चाहते हैं. क्योंकि हिंदू औरतों को तो न कट्टरता और न धर्म के किसी बंधन का कभी शिकार होना होता है!

रूस-यूक्रेन संकट से कुछ कठोर सबक सीखे जा सकते हैं

रूस के क़दम भू-राजनीतिक संतुलन को बुरी तरह से बिगाड़ने वाले हैं, लेकिन क्या इन्हें अप्रत्याशित कहा जा सकता है? जवाब है, नहीं. कौन-सा शक्तिशाली देश अपने पड़ोस में निरंतर किए जा रहे रणनीतिक अतिक्रमणों को स्वीकार करेगा? अतीत में अपनी कमज़ोरी की क़ीमत चुकाने के बाद रूस को लगता है कि अब मज़बूत जवाबी कार्रवाई करने का वक़्त आ गया है.

हिजाब विवाद: क्या मसला असल में धर्मनिरपेक्षता का है या महज़ उपद्रव की साज़िश

कर्नाटक में जो भगवाधारी युवकों-युवतियों की हिंसक और नफ़रतबुझी भीड़ दिख रही है, उसे क्षणिक मानकर निश्चिंत हो जाना ख़तरनाक है. जो इन्हें इकट्ठा कर रहे हैं, वे इन्हें बस एक मौक़े के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगे.

अगर सरस्वती पूजा महज़ धर्म नहीं संस्कृति है, तो हिजाब केवल धार्मिक प्रतीक क्यों

सरस्वती को विद्या की देवी कहकर हिंदुओं तक सीमित न रखने की अपील की जाती है. धर्म को संस्कृति का चोला ओढ़ाकर दूसरे धर्मावलंबियों को उसे मानने को बाध्य किया जाता है. ऐसे ही आशय से प्रेमचंद ने लिखा था कि सांप्रदायिकता को अपने असली रूप में निकलने में शर्म आती है, इसलिए वह संस्कृति की खाल ओढ़कर बाहर निकलती है.

हिंदुत्व के पैरोकार महान अशोक से इतने ख़फ़ा क्यों रहते हैं

अशोक ने जिस भारत का तसव्वुर किया था, जिस तरह सब निवासियों के मिल-जुलकर रहने, प्रगति करने की बात की थी, उससे केंद्र में सत्तासीन हिंदुत्व वर्चस्ववादी हुकूमत और उनके समर्थकों को गहरी तकलीफ़ होती है.

क्या अपर्णा यादव के भाजपा में शामिल होने से सपा को वाकई कोई नुकसान हुआ है

अखिलेश यादव की सरकार के दो सालों में ही अपर्णा यादव को लगने लगा था कि सपा में उनका भविष्य बहुत उज्जवल नहीं हो सकता. 2014 में उनके नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करने से शुरू हुआ सिलसिला अब जाकर उनके भाजपा में शामिल होने पर अंजाम पर पहुंचा है.

उत्तर प्रदेश चुनाव: योगी आदित्यनाथ की अयोध्या से हिजरत के मायने क्या हैं

उत्तर प्रदेश भाजपा में विधानसभा चुनाव के सिलसिले में जो कुछ भी ‘अघटनीय’ घट रहा है, वह दरअसल उसके दो नायकों द्वारा प्रायोजित हिंदुत्व के दो अलग-अलग दिखने वाले रूपों का ही संघर्ष है. योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से दूर किए जाने से साफ है कि अभी तक प्रदेश में योगी की आक्रामकता से मात खाता आ रहा मोदी प्रायोजित हिंदुत्व अब खुलकर खेलने की तैयारी कर रहा है.

कोरोना काल में चुनाव: बड़े होते जा रहे निष्पक्षता से जुड़े सवाल

चुनाव आयोग से न सिर्फ स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी अपेक्षा की जाती है कि केंद्र व प्रदेशों में सत्तारूढ़ दलों को सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर अपनी स्थिति मजबूत करने के अनैतिक व अवांछनीय मौके न मिलें. हालांकि कोरोना के दौर में हुए चुनावों में लगातार इस पहलू पर सवाल ही उठे हैं.

सोशल मीडिया मैनीपुलेशन केवल प्रोपेगैंडा नहीं बल्कि नरसंहार को उकसाने का टूल है

आईटी सेल की रहस्यमयी दुनिया में राष्ट्र निर्माण के नाम पर कितने नौजवानों को अपराधी बनाया जा रहा है, इससे सतर्क होने की ज़रूरत है. इससे बहुसंख्यक समाज ने ख़ुद को नहीं बचाया तो घर-घर में हत्यारे पैदा हो जाएंगे.

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