महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक स्थानीय दैनिक अख़बार में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले भू-एजेंट पंढरीनाथ आंबेरकर से संबंधित ख़बर लिखने वाले पत्रकार शशिकांत वारिशे को बीते छह फरवरी को एक एसयूवी ने टक्कर मार दी थी और अगले दिन अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई थी. आरोप है कि उक्त एसयूवी को आंबेरकर चला रहा था.
वीडियो: अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद कश्मीर में पत्रकारों की क्या स्थिति है, वे किन हालात में काम कर रहे हैं, क्या वे सुरक्षित महसूस करते हैं? इन विषयों को लेकर कश्मीर के कुछ पत्रकारों से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
2002 के गुजरात दंगों से संबंधित विवादित डॉक्यूमेंट्री के मद्देनज़र भारत में समाचार वेबसाइट बीबीसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने संबंधी याचिका में कहा गया था कि डॉक्यूमेंट्री भारत और इसके प्रधानमंत्री के वैश्विक उदय के ख़िलाफ़ गहरी साज़िश का परिणाम है.
महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक स्थानीय दैनिक अख़बार में कथित आपराधिक पृष्ठभूमि वाले भू-एजेंट पंढरीनाथ आंबेरकर से संबंधित ख़बर छपने के बाद इसे लिखने वाले पत्रकार शशिकांत वारिशे को कथित तौर पर कार से कुचलकर मार दिया गया था. यह कार कथित तौर पर आरोपी ही चला रहा था. पुलिस से उसे गिरफ़्तार कर लिया है.
टीवी एंकर दीपक चौरसिया उनके ख़िलाफ़ दर्ज पॉक्सो मामले की सुनवाई से छूट की अर्ज़ी देते हुए कहा था कि उन्हें उसी दिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इंटरव्यू लेना है. कोर्ट ने इसे नामंज़ूर करते हुए कहा कि इसके साथ कोई 'हलफ़नामा या ठोस दस्तावेज़ी प्रमाण' नहीं दिया गया है. अदालत ने उनके ख़िलाफ़ ग़ैर-ज़मानती वॉरंट जारी किया है.
महाराष्ट्र के रत्नागिरी से निकलने वाले एक स्थानीय अख़बार में एक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले स्थानीय भूमि एजेंट के बारे में ख़बर लिखने के कुछ ही घंटों के बाद शशिकांत वारिशे नाम के पत्रकार को इस एजेंट ने कार से कुचल दिया था, जिसके बाद गंभीर रूप से घायल पत्रकार की अस्पताल में मौत हो गई.
केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन और तीन अन्य को अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था, जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक बलात्कार मामले की रिपोर्ट करने के लिए जा रहे थे. यूपी पुलिस ने कप्पन पर जाति आधारित दंगा भड़काने का इरादा रखने और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का मामला दर्ज किया था. इसके बाद उन पर देशद्रोह और यूएपीए के तहत भी मामले जोड़े गए थे.
अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब द्वारा जारी बयान में भारत सरकार से बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ से प्रतिबंध हटाने का आग्रह करते हुए कहा गया है कि अगर भारत 'प्रेस की स्वतंत्रता को नष्ट करना जारी रखता' रहा, तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में यह अपनी पहचान को बनाए नहीं रख सकता.
चेन्नई की क़ाइद-ए-मिल्लत एजुकेशनल एंड सोशल ट्रस्ट ने पुरस्कार देते हुए कहा कि हम मूल्य आधारित और निडर पत्रकारिता में द वायर के उत्कृष्ट योगदान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अनवरत संघर्ष को स्वीकार करते हैं.
केरल सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता का कमज़ोर होना लोकतंत्र के पतन को दर्शाता है.
बीते साल नवंबर में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निजी टीवी चैनलों को राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर रोज़ 30 मिनट की सामग्री प्रसारित करने को कहा था. अब मंत्रालय ने एक परामर्श में कहा है कि सामग्री का प्रसारण लगातार 30 मिनट का नहीं होना चाहिए, इसे कुछ मिनटों के अलग-अलग ‘स्लॉट’ में तैयार किया जा सकता है.
गुजरात दंगों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर भारत में चल रहे विवाद के बीच जर्मनी के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा है कि भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को स्थापित करता है. इसमें प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता भी शामिल हैं. जर्मनी पूरी दुनिया में इन मूल्यों के लिए खड़ा है.
अमेरिका के वाइस न्यूज़ के पत्रकार अंगद सिंह को अगस्त 2022 में दिल्ली में उतरने के तीन घंटे के अंदर वापस भेज दिया गया था और ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्डधारक होने के बावजूद उनके भारत आने पर पाबंदी लगा दी गई थी, जिसके ख़िलाफ़ उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख़ किया था.
नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन जैसे संगठनों की ओर से कहा गया है कि पीआईबी की भूमिका मीडिया को सरकारी समाचार प्रदान करने की बनी रहनी चाहिए. इसे मीडिया की निगरानी, सेंसर करने और सरकार के लिए असुविधाजनक किसी भी जानकारी को फ़र्ज़ी समाचार के रूप में पहचानने का काम नहीं सौंपा जा सकता है.
सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के विश्लेषण से पता चला है कि केंद्र सरकार द्वारा 2021 में कुल 6,096 और 2022 में 6,775 यूआरएल ब्लॉक किए गए, जिसमें सभी तरह के यूआरएल जैसे वेबपेज, वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विशिष्ट पेज आदि शामिल हैं.