उत्तराखंड: प्लेटफॉर्म पर रेलवे स्टेशनों के नाम उर्दू की जगह अब संस्कृत में लिखे जाएंगे

उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने कहा कि प्लेटफॉर्म के साइन बोर्ड में रेलवे स्टेशनों का नाम हिंदी और अंग्रेज़ी के बाद संबंधित राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा में लिखा होना चाहिए. उत्तराखंड की दूसरी आधिकारिक भाषा संस्कृत है.

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का ‘हम देखेंगे’ मज़हब का नहीं अवामी इंक़लाब का तराना है…

जो लोग ‘हम देखेंगे’ को हिंदू विरोधी कह रहे हैं, वो ईश्वर की पूजा करने वाले 'बुत-परस्त' नहीं, सियासत को पूजने वाले ‘बुत-परस्त’ हैं.

क्या उर्दू-फ़ारसी के निकलने से क़ानूनी भाषा आम लोगों के लिए आसान हो जाएगी?

हिंदी से फ़ारसी या अरबी के शब्दों को छांटकर बाहर निकाल देना असंभव है. एक हिंदी भाषी रोज़ाना अनजाने ही कितने फ़ारसी, अरबी या तुर्की के शब्द बोलता है, जिनके बिना किसी वाक्य की संरचना तक असंभव है.

उर्दू-फ़ारसी शब्दों का इस्तेमाल रोकने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस से मांगी एफआईआर की कॉपी

एफआईआर सरल भाषा में हो ताकि आम लोग आसानी से समझ सके, इसके लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक जन​हित याचिका दाख़िल की गई है. सरल शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है या नहीं, इसकी जांच लिए हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस के 10 थानों से एफआईआर की 10-10 कॉपी मंगाई है.

हिंदी में छुआछूत की वही बीमारी है जो हमारे समाज में है

हिंदी दिवस पर विशेष: जितना बोझ आप बच्चों पर लाद रहे हैं डेढ़ लाख शब्दों का स्त्रीलिंग पुल्लिंग याद करने का, उतना मेहनत में बच्चा रॉकेट बना देगा.

जब प्रेमचंद ने महात्मा गांधी का भाषण सुनकर सरकारी नौकरी छोड़ दी थी…

वह असहयोग आंदोलन का ज़माना था, प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे. बेहद तंगी थी, बावजूद इसके गांधी जी के भाषण के प्रभाव में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया था.

बजट 2019ः गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 50 करोड़ रुपये आवंटित

नई योजना के तहत ऐसे स्थानों पर उर्दू शिक्षकों की भी नियुक्ति की जाएगी, जहां की 25 फीसदी से अधिक आबादी उर्दू बोलती है. हालांकि, देश में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को मजबूत बनाने के लिए शुरू की गई योजना के लिए इस साल बजट आवंटित नहीं किया गया.

सत्ता के मन में उपजे हिंदी प्रेम के पीछे राजनीति है, न कि भाषा के प्रति लगाव

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पहले मसौदे में हिंदी थोपने की कथित कोशिश पर मचे हंगामे को देखते हुए एक बात साफ है कि इस हो-हल्ले का हिंदी से कोई वास्ता नहीं है. हिंदी थोपने या ख़ारिज करने की इच्छा का संबंध हिंदी राष्ट्रवाद, धर्म, जाति और अंग्रेज़ी से एक असहज जुड़ाव जैसी बातों से हो सकता है, मगर इसका संबंध उस भाषा से कतई नहीं है, जिसका नाम हिंदी है.

क्या मोदी सरकार वाकई उर्दू का भला चाहती है?

मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद ने उर्दू के प्रमोशन के लिए बॉलीवुड के कलाकारों से प्रचार करवाने की बात कही. हालांकि बजट से मालामाल परिषद पर अक्सर यह इल्ज़ाम लगता रहा है कि हाल के सालों में इसने उर्दू भाषा के विकास में कोई अहम रोल अदा नहीं किया.

क़ादिर ख़ान: जिन्हें लेकर अपनी-अपनी ग़लतफ़हमियां हैं

क़ादिर ख़ान हिंदी सिनेमा में उस पीढ़ी के आख़िरी लेखक थे, जिन्हें आम लोगों की भाषा और साहित्य की अहमियत का एहसास था. उनकी लिखी फिल्मों को देखते हुए दर्शकों को यह पता भी नहीं चलता था कि इस सहज संवाद में उन्होंने ग़ालिब जैसे शायर की मदद ली और स्क्रीनप्ले में यथार्थ के साथ शायरी वाली कल्पना का भी ख़याल रखा.

वीडियो: उर्दू साहित्य और समाज में समलैंगिकता का सवाल

विशेष: उर्दू साहित्य और समाज का समलैंगिकता को लेकर रवैया क्या हमेशा से ही तंग था? भारतीय समाज और इतिहास में समलैंगिकता को लेकर बनी वर्जनाओं (टैबू) के बारे में बता रही हैं यासमीन रशीदी.

‘ज़बान वो ख़त्म होती है जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी से न निकली हो’

वीडियो: उर्दू को अवाम तक पहुंचाने में देवनागरी और हिंदी की भूमिका, हिंदी में नुक़्ते के चलन और उर्दू के भविष्य पर विनोद दुआ से द वायर उर्दू के फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.

‘मुझ से बड़ा शायर ना होगा जामई, हिंद-ओ-पाकिस्तान में और ना क़ब्रिस्तान में’

वीडियो: किसी ज़माने में फ़ख़्र-ए-बिहार कहे जाने वाले हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध उर्दू शायर असरार जामई इन दिनों दयनीय स्थिति में ज़िंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं. रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया और सरकार ने अपने रिकॉर्ड में उन्हें मृत बताकर उनका पेंशन भी बंद कर दिया.