मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कोविड-19 के संबंध में प्रशासन को कोई निर्देश नहीं देने जा रहे, प्रशासन को जिसकी भी ज़रूरत हो, वे ले सकते हैं और कोई यह नहीं कह सकता कि वे काम करने के इच्छुक नहीं है.
गुजरात हाईकोर्ट ने दो दिसंबर को मास्क नहीं पहनने वालों को कोविड-19 केयर सेंटर पर अनिवार्य सामुदायिक सेवा का आदेश देते हुए इस संबंध में राज्य सरकार को एक अधिसूचना जारी करने के लिए निर्देश दिया था.
गुजराती समाचार पोर्टल फेस ऑफ द नेशन के संपादक धवल पटेल के ख़िलाफ़ राज्य में बढ़ते कोरोना वायरस मामलों की आलोचना के कारण गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन का सुझाव देने वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए 11 मई को राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.
गुजरात हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोरोना वायरस की ख़राब स्थिति को देखते हुए राज्य को अपनी पूरी मशीनरी को दुरुस्त करने की ज़रूरत है. साथ ही अदालत ने राज्य के सभी सिविल अस्पतालों से भी मौजूदा स्थिति को लेकर विस्तृत रिपोर्ट भी पेश करने को कहा है.
अहमदाबाद में पहले ही एक अधिसूचना जारी कर बक़रीद के मौक़े पर पशु वध को लेकर प्रतिबंध लगाया गया है. अब हाईकोर्ट ने कहा कि इसी तरह का आदेश पूरे राज्य में जारी किया जाया.
राज्य सरकार के इस क़दम से नाखुश गुजरात के लगभग 15,000 स्व-वित्तपोषित स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन ने ऑनलाइन कक्षाएं रोकने का फैसला किया है.
लॉकडाउन के दौरान बीते 17 मई को गुजरात के राजकोट में प्रवासी मज़दूरों का एक समूह पुलिस से भिड़ गया था. ये समूह अपने गृह राज्य जाने के लिए ट्रेनों में जगह देने की मांग कर रहा था. पुलिस ने मज़दूरों के ख़िलाफ़ हत्या के प्रयास, डकैती समेत अन्य आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज की थी.
गुजरात सरकार द्वारा हाईकोर्ट में दिए हलफ़नामे में कहा गया है कि कोविड टेस्टिंग को मोटे तौर पर संविधान में बताए गए बुनियादी अधिकारों में रखा जा सकता है, लेकिन इस पर वाज़िब प्रतिबंध हो सकते हैं. इसके विरोध में न्यायमित्र बृजेश त्रिवेदी का कहना है कि सरकार के पास किसी को टेस्ट कराने से रोकने का अधिकार नहीं है.
अहमदाबाद नगर निगम संचालित एसवीपी अस्पताल द्वारा अनुबंध पर रखी गईं नर्सों और अन्य कर्मचारियों के वेतन में 10 से 20 प्रतिशत की कटौती की सूचना उनकी ठेकेदार कंपनी द्वारा दी गई थी.
इससे पहले कोरोना वायरस को लेकर हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि सरकार द्वारा संचालित अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत दयनीय और कालकोठरी से भी बदतर है. बदलाव के बाद पीठ ने नाराज़गी ज़ाहिर की कि महामारी से निपटने को लेकर सरकार के बारे में की गईं अदालत की हालिया टिप्पणियों का ग़लत मंशा से दुरुपयोग किया गया.
अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन ने गुजरात सरकार के उस आदेश के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय का रुख़ किया है, जिसके तहत निजी डॉक्टरों और अस्पतालों को नामित स्वास्थ्य अधिकारियों की मंज़ूरी के बिना कोविड-19 की जांच की अनुमति नहीं थी.
कोरोना महामारी को लेकर अस्पतालों की दयनीय हालत और राज्य की स्वास्थ्य अव्यस्थताओं पर गुजरात सरकार को फटकार लगाने वाली हाईकोर्ट की पीठ में अचानक बदलाव किए जाने से एक बार फिर 'मास्टर ऑफ रोस्टर' की भूमिका सवालों के घेरे में है.
गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पर्दीवाला और इलेश जे. वोरा की पीठ ने बीते दिनों कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार को सही ढंग और जिम्मेदार होकर कार्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे.
राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसे में अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में ढेरों कोविड संभावित मरीज़ भर्ती होने के कई दिन बाद भी टेस्ट के लिए इंतज़ार करने को मजबूर हैं.
पिछले दो सप्ताह से सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही एक विस्तृत 22 सूत्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि अहमदाबाद के अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी है.