एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में केवल कार्यपालिका अकेली प्रतिभागी नहीं हो सकती, क्योंकि इससे सत्तारूढ़ दल को अपने प्रति निष्ठावान किसी अधिकारी को चुनने का विशेषाधिकार मिल जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 25 उच्च न्यायालयों में 57.51 लाख से अधिक लंबित मामलों में 54 प्रतिशत मामले पांच उच्च न्यायालयों- इलाहाबाद, पंजाब एवं हरियाणा, मद्रास, बॉम्बे और राजस्थान में हैं. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के डेटा के अनुसार, 56.4 प्रतिशत लंबित मामले पिछले पांच वर्षों के दौरान मामले दायर किए गए हैं, जबकि 40 प्रतिशत लंबित मामले 5 से 20 साल पहले दर्ज किए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने के लिए समयसीमा पर ज़ोर देते हुए ऐसे उच्च न्यायालयों को लेकर चिंता व्यक्त की, जहां न्यायाधीशों के 40-50 प्रतिशत पद रिक्त हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर कॉलेजियम अपनी सिफ़ारिशों को सर्वसम्मति से दोहराता है तो केंद्र को तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति कर देनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वे एक तर्कसंगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वे शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफ़ारिशों पर कार्रवाई कर सकता है. कोर्ट ने यह भी पूछा कि उसके कॉलेजियम द्वारा भेजे गए दस नाम, जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं, को कब तक मंज़ूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है.
भारत में अक्सर न्यायिक आज़ादी के रास्ते में कार्यपालिका और कभी-कभी विधायिका द्वारा बाधा डालने की संभावनाएं देखी जाती हैं, लेकिन जब न्यायपालिका के भीतर के लोग ही अन्य शाखाओं के सामने झुक जाते हैं, तो स्थिति बिल्कुल अलग हो जाती है.
जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा प्रार्थनास्थलों पर सरकार की नीति, अश्लीलता और लैंगिक न्याय को लेकर दिए गए फ़ैसले क़ानूनी पहलुओं से ज़्यादा उनके निजी मूल्यों पर आधारित नज़र आते हैं.
भारत के राजनीतिक तौर पर सर्वाधिक संवेदनशील मामलों को अनिवार्य रूप से जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ को ही भेजा जाता था और देश के सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम जज इसकी वजह जानने के लिए इतिहास में पहली बार मीडिया के सामने आए थे.
बीते पांच सितंबर को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपने फैसले में संशोधन करते हुए जस्टिस एके कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की जगह त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी.
बीते सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपने फैसले में संशोधन करते हुए जस्टिस एके कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की जगह त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी.
क़ानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक उच्च न्यायालयों में 420 न्यायाधीशों की कमी है, जो इस वर्ष अब तक सर्वाधिक है. एक अक्टूबर तक उच्च न्यायालयों में 659 न्यायाधीश थे, जबकि कुल मंज़ूर पद 1079 हैं.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने जस्टिस अकील कुरैशी की पदोन्नति के मामले में कॉलेजियम की सिफ़ारिश लागू करने का केंद्र को निर्देश देने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
इससे पहले इस साल मई महीने में कोलेजियम ने जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाए जाने की सिफारिश की थी.
उच्च न्यायालयों में कुल 1,079 न्यायाधीश होने चाहिए. क़ानून मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एक सितंबर को हाईकोर्ट में जजों के 414 पद खाली थे, जो इस साल की अब तक की सर्वाधिक रिक्तियां हैं.
केंद्र सरकार ने 22 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एए क़ुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम की सिफ़ारिश पर निर्णय लेने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा था. केंद्र सरकार ने अब और दस दिन का समय मांगा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों के जजों की नियुक्ति लॉबिंग और पक्षपात के आधार पर होती है. जस्टिस पांडेय 4 जुलाई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.