पूर्व अटॉर्नी जनरल और न्यायविद् सोली सोराबजी का निधन

देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित मानवाधिकार अधिवक्ता सोराबजी तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के कार्यकाल में 1989 से 1990 तक और फिर अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 1998 से 2004 तक भारत के अटॉर्नी जनरल रहे थे.

राज्यसभा में सांसद रंजन गोगोई की ख़ामोशी का एक साल

बीते साल राज्यसभा सांसद के बतौर मनोनीत होने के बाद पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा था कि संसद में उनकी उपस्थिति विधायिका के सामने न्यायपालिका के विचारों को पेश करने का अवसर होगी, हालांकि रिकॉर्ड दिखाते हैं कि इस एक साल में वे उंगली पर गिनी जा सकने वाली बार ही सदन में नज़र आए हैं.

आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं, वंचितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का तरीका है

बढ़ती सामाजिक असमानता के दौर में देश की शीर्ष अदालत का आरक्षण पर सवाल उठाना निराशाजनक है और यह वंचित तबके का न्यायपालिका में भरोसा कम करता है.

‘नोटा’ को अधिक वोट पर चुनाव नतीजे अमान्य करने की मांग, केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं निर्वाचन आयोग से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें आयोग को किसी निर्वाचन क्षेत्र में ‘नोटा’ के लिए सर्वाधिक मत पड़ने पर वहां का चुनाव परिणाम अमान्य करार देकर फिर से चुनाव कराने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट में अब सिर्फ एक महिला जज का होना चिंतित करने वाला: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठतम जजों में से एक जस्टिस इंदु मल्होत्रा की सेवानिवृत्ति पर आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश की विविधता अदालतों में भी झलकनी चाहिए. वैविध्य भरी न्यायपालिका लोगों में अधिक विश्वास की भावना लाती है.

किसी को फ़र्ज़ी केस में फंसाकर उसकी ज़िंदगी ख़राब कर देना इतना आसान क्यों है

ग़लत तरीके से बिना गुनाह के एक लंबा समय जेल में गुज़ारने वाले लोगों द्वारा झेली गई पीड़ा की जवाबदेही किस पर है? क्या यह वक़्त नहीं है कि देश में पुलिस प्रणाली और अपराध न्याय प्रणाली को लेकर सवाल खड़े किए जाएं?

बलात्कार हर देश में होते हैं पर सिर्फ हमारे यहां पीड़िता को इसका दोष दिया जाता है: निर्मला बनर्जी

साक्षात्कार: महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ते अपराधों, सीमित किए जा रहे अधिकारों के बीच उनसे संबंधित मुद्दों पर बात करने की ज़रूरत और बढ़ गई है. देश में महिलाओं की वर्तमान परिस्थितियों को लेकर बीते पांच दशकों से महिला आंदोलनों का हिस्सा रहीं वरिष्ठ अर्थशास्त्री निर्मला बनर्जी से सृष्टि श्रीवास्तव की बातचीत.

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही की अनुमति देने से अटॉर्नी जनरल का इनकार

बीते दिनों के कार्यक्रम के दौरान राज्यसभा सदस्य और पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने न्यायपालिका के 'जर्जर हाल' में होने की बात कही थी. इसके लिए उनके ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही की अपील से इनकार करते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि उन्होंने ऐसा संस्थान की बेहतरी के लिए कहा.

मीडिया बोल: चुटकुला बनती सियासत और मीडिया

वीडियो: मौजूदा दौर में राजनीति और मीडिया के बड़े मंच ऐसे दयनीय हाल में हैं कि ख़ुद ही चुटकुला बन गए हैं. दूसरी तरफ गंभीर पत्रकारों या कॉमेडियंस की टिप्पणियों से कभी सरकार, तो कभी न्यायपालिका को आहत हो रहे हैं. इन्हीं मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन और टीवी एंकर मीनाक्षी श्योराण से चर्चा कर रहे हैं उर्मिलेश.

पूर्व सीजेआई गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद शुरू हुए ‘साज़िश’ के मामले की जांच बंद

2019 में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई पर सुप्रीम कोर्ट की एक कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, जिसके बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उन्हें फंसाने के किसी 'गहरे षड्यंत्र' की जांच शुरू की थी. अब इसे बंद करते हुए कोर्ट ने कहा कि दो साल बाद जांच के लिए इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मिलना मुश्किल है.

राज्यसभा नामांकन पर बोले जस्टिस गोगोई- अगर सौदा होता तो सिर्फ राज्यसभा सीट से बात न बनती

एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने देश की न्यायिक व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि न्यायपालिका एकदम ‘जर्जर’ स्थिति में पहुंच गई है और वे कोर्ट जाना पसंद नहीं करेंगे.

अदालत गोपनीय जानकारी साझा नहीं करती, सूत्रों वाली ख़बरों से सावधान रहें: सुप्रीम कोर्ट

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा उच्चतर न्यायपालिका के जज के ख़िलाफ़ शिकायत पर सीजेआई की संभावित कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के हवाले से प्रकाशित हुई ख़बरों के बाद शीर्ष अदालत ने कहा है कि इस तरह की प्रक्रियाएं आतंरिक होती हैं, जिनकी जानकारी जारी नहीं की जाती.

क्या नए कृषि क़ानूनों से सिर्फ़ किसान ही प्रभावित हो रहे हैं?

नए कृषि क़ानून के अलावा आम नागरिकों को क़ानूनी सहायता के अधिकार से वंचित करने की मिसाल आपातकाल, जब सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया था, को छोड़कर कहीं और नहीं मिलती.

देश में मौत की सज़ा पाए क़ैदियों के साथ क्या होता है

देशभर की विभिन्न जेलों में ऐसे हज़ारों क़ैदी बंद हैं, जिन्हें मृत्युदंड मिला है. हाल ही में आई डेथ पेनल्टी इंडिया नाम की रिपोर्ट से पता चलता है कि सज़ा-ए-मौत पाए बंदियों में से अधिकतर समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्गों से आते हैं.

लोकतंत्र बचा सकने वाली अकेली संस्था ही इसका गला घोंटने में मदद कर रही है

भारत में अक्सर न्यायिक आज़ादी के रास्ते में कार्यपालिका और कभी-कभी विधायिका द्वारा बाधा डालने की संभावनाएं देखी जाती हैं, लेकिन जब न्यायपालिका के भीतर के लोग ही अन्य शाखाओं के सामने झुक जाते हैं, तो स्थिति बिल्कुल अलग हो जाती है.

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