सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कृषि क़ानूनों पर रोक लगाते हुए किसानों से बात करने के लिए समिति बनाने के निर्णय पर किसान संगठनों ने कहा कि वे इस समिति को मान्यता नहीं देते. जब तक क़ानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि क़ानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच गतिरोध दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई समिति में भाकियू के भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं. इन चारों द्वारा नए कृषि क़ानूनों का समर्थन किया गया है.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कई याचिकाओं को सुनते हुए सीजेआई एसए बोबड़े ने कहा कि सरकार जिस तरह से मामले को संभाल रही है उससे वे बेहद निराश हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार कहे कि क़ानूनों को लागू करने पर रोक लगाएगी, तो अदालत इसके लिए समिति गठित करने को तैयार है.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले के बड़ौत में किसानों के धरने में पहुंचकर कहा कि 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में एक तरफ टैंक चलेंगे और दूसरी तरफ कृषि क़ानूनों की वापसी की मांग पर हमारे तिरंगा लगे हुए ट्रैक्टर.
तीन कृषि क़ानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच अब तक हुई आठ दौर की वार्ता में भी गतिरोध ख़त्म नहीं होने को अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की की व्यक्तिगत असफलता बताया है.
मृतक किसान की पहचान 39 वर्षीय किसान अमरिंदर सिंह के रूप में हुई. वह पंजाब में फतेहगढ़ साहिब के मचराई कलां गांव के रहने वाले थे. केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग पर किसान एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
इससे पहले किसानों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही थी. किसान जहां तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं, तो दूसरी ओर सरकार क़ानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करने पर अडिग नज़र आ रही है.
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर कई राज्यों के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं में एक महीने से अधिक समय से विरोध कर रहे हैं
केंद्र सरकार से शुक्रवार को होने वाली आठवें दौर की बातचीत से पहले हज़ारों किसानों ने दिल्ली और हरियाणा में ट्रैक्टर मार्च निकाला. किसानों का कहना है कि 26 जनवरी को हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से राष्ट्रीय राजधानी में आने वाले ट्रैक्टरों की प्रस्तावित परेड से पहले यह महज़ एक रिहर्सल है.
भाजपा के पूर्व मंत्री टिकशान सूद के बयान से नाराज प्रदर्शनकारी किसानों ने उनके घर के बाहर गोबर फेंक दिया था जिसके बाद उन पर हत्या के प्रयास सहित कई अन्य आरापों में मामला दर्ज कर लिया गया था. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हत्या के प्रयास का मामला दर्ज करने वाले एसएचओ के तबादले का भी आदेश दिया है और अब मामले की जांच एसआईटी कर रही है.
भारतीय किसान यूनियन के नेता युधवीर सिंह ने कहा, ‘मंत्री चाहते हैं कि हम क़ानून पर बिंदुवार चर्चा करें. हमने ऐसा करने से इनकार कर दिया और कहा कि क़ानूनों पर चर्चा करने का कोई मतलब नहीं बनता, क्योंकि हम चाहते हैं कि क़ानून पूरी तरह से वापस हों. सरकार हमें संशोधनों की ओर ले जाना चाहती है, लेकिन हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे.’
भाजपा नेता और राज्य के पूर्व गृहमंत्री संपत सिंह ने कहा कि इस समय किसी भी राजनीतिक दल में किसानों को उकसाने की ताक़त नहीं है. यह पूरी तरह से किसानों के अस्तित्व के लिए उनका संघर्ष है इसलिए आंदोलन के लिए विपक्षी दलों को ज़िम्मेदार ठहराना बेतुका है.
बताया जा रहा है कि प्रदर्शनकारियों ने भाजपा नेता और पंजाब के पूर्व मंत्री टिकशान सूद के घर में गोबर इसलिए फेंका, क्योंकि वे उनके उस बयान से नाराज थे, जिसमें उन्होंने कथित तौर कहा था कि सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे अधिकांश किसान कृषि क़ानूनों से परिचित नहीं हैं और वे वहां पिकनिक पर जा रहे हैं.
राजस्थान और हरियाणा के साथ कई अन्य स्थानों के किसानों का एक बड़ा समूह पिछले कई दिनों से केंद्र सरकार के तीन नए कृषि क़ानूनों का जयपुर-दिल्ली हाईवे पर विरोध कर रहा है. वहीं, दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर हज़ारों की संख्या में किसान जुटे हैं. उनका कहना है कि तीनों कृषि क़ानूनों के वापस होने तक वे वापस नहीं लौटेंगे.
दो किसानों की मौत टिकरी बॉर्डर, जबकि एक किसान की मौत सिंघू बॉर्डर पर हुई है. केंद्र के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर बीते एक महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.