मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि देशभर से ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि कोरोना से होने वाली सभी मौतों के आंकड़ों को ठीक से दर्ज नहीं किया जा रहा है. अदालत ने कहा कि यह वास्तव में महामारी के पैमाने को समझने के प्रयास को बाधित कर सकता है और परिवारों को उस राहत की मांग करने से भी वंचित सकता है, जिसके वे हक़दार हैं.
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि कोरोना महामारी के दौरान हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति उजागर हो गई. ग़रीब, वंचित और आम आदमी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाएं, इसके लिए स्वास्थ्य तंत्र को मज़बूत बनाना होगा. इसी नाते सरकार से मांग की है कि स्वास्थ्य को संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया जाए. यह समय की ज़रूरत है.
हाल ही में आरटीआई आवेदन के जवाब में रेलवे ने बताया था कि साल 2020 में रेल की पटरियों पर 8,733 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर प्रवासी मज़दूर थे. रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सुनीत शर्मा ने कहा है कि ये मौतें अतिक्रमण के कारण हुई हैं न कि रेल हादसों की वजह से. इनका रेलवे से कुछ लेना-देना नहीं है.
साल 2020 में 8,000 से अधिक लोगों की रेल पटरियों पर जान गई, इनमें ज़्यादातर प्रवासी मज़दूर थे: आरटीआई
आरटीआई आवेदन के जवाब में दी गई जानकारी में अधिकारियों ने बताया कि मृतकों में अधिकतर प्रवासी मज़दूर थे, जिन्होंने पटरियों पर चलकर घर पहुंचने का विकल्प चुना था, क्योंकि इससे वे लॉकडाउन नियमों के उल्लंघन के लिए पुलिस से बच सकते थे और उनका यह भी मानना था कि वे रास्ता नहीं भटकेंगे.
अति प्रतिकूल मौसम संबंधी घटनाओं पर एक अध्ययन में कहा गया है कि उष्ण कटिबंधीय तूफ़ानों की वजह से मौतों में इस सदी के पहले दशक (2000-09) की तुलना में बाद वाले दशक (2010-19) में करीब 88 फीसद गिरावट आई है. यह शोध-पत्र इस साल के प्रारंभ में प्रकाशित हुआ, जिसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और अन्य वैज्ञानिकों ने तैयार किया है.
मध्य प्रदेश भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने अपने शिकायती ज्ञापन में कहा है कि कमलनाथ ने 22 मई को कहा था कि दुनिया में जो कोरोना फैला हुआ है, अब उसे ‘इंडियन वैरिएंट’ कोरोना के नाम से जाना जा रहा है. वह जनता को भ्रमित और देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम कर रहे हैं. उन्होंने झूठा आरोप लगाया कि सरकार लाखों लोगों की मौत का आंकड़ा छिपा रही है. यह बयान जनता में भय उत्पन्न करने वाला है.
इस 11 दिन के ख़ूनी संघर्ष में ग़ाज़ा पट्टी में बड़े पैमाने पर बर्बादी हुई, इज़रायल के अधिकांश हिस्सों में जीवन थम गया था और दोनों तरफ के 200 से अधिक लोगों की जानें गईं. 19 मई तक इस संघर्ष में 208 फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें क़रीब 60 बच्चे शामिल हैं. वहीं इज़रायल में भी दो बच्चों सहित 12 लोगों की जान गई है.
रविवार को इजरायल ने गाजा में पिछले एक हफ़्ते में सबसे घातक हमला किया, जिसमें आठ बच्चों सहित 26 फ़लस्तीनी नागरिकों की मौत हो गई. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने शनिवार शाम को कहा कि जब तक ज़रूरत पड़ेगी तब तक यह अभियान जारी रहेगा.
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में एकजुट और सकारात्मक बने रहने की अपील करते हुए कहा कि हम इस परिस्थिति का सामना कर रहे हैं क्योंकि सरकार, प्रशासन और जनता, सभी कोविड की पहली लहर के बाद ग़फ़लत में आ गए, जबकि डॉक्टरों द्वारा संकेत दिए जा रहे थे.
इज़राइल और उग्रवादी संगठन हमास के बीच जारी लड़ाई के दौरान वेस्ट बैंक में भी फ़लस्तीनियों ने व्यापक पैमाने पर प्रदर्शन किया और सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने कई शहरों में इज़राइली सेना के साथ झड़प की. इस दौरान इज़राइली सेना की कार्रवाई में कम से कम 11 लोग मारे गए हैं.
यरुशलम के यहूदी और मुस्लिम लोगों के पवित्र स्थल अल-अक्सा मस्जिद परिसर में इज़राइली सुरक्षा बलों और फ़लस्तीनी नागरिकों के बीच टकराव और फ़लस्तीनी तथा इज़राइली सुरक्षा बलों के संघर्ष के बाद ये घटनाक्रम हुआ है. हिंसा का कारण यरुशलम पर फ़लस्तीन और इज़राइल दोनों द्वारा दावा जताना है.
केंद्रीय जांच एजेंसी ने कहा, 24 में से 16 लोगों की मौत आरोपी बनाए जाने से पहले ही हो गई थी, बाक़ी मौतें प्राकृतिक कारणों से हुईं.
स्वाइन फ्लू से पिछले साल के मुक़ाबले चार गुना मौतें, महाराष्ट्र और गुजरात टॉप पर, दिल्ली में हुईं 47 मौतें लेकिन सरकार फ़िलहाल सिर्फ़ पांच मौतें बता रही है.