सरकारी निरंकुशता को नया हथियार बना रही हैं भाजपा सरकारें: मायावती

बसपा सुप्रीमो ने कहा भाजपा सरकार ने दूरदर्शन और आकाशवाणी को बना दिया 'मोदी वॉयस', निजी मीडिया पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण, लेखकों और पत्रकारों को बनाया जा रहा निशाना.

दीनदयाल उपाध्याय: जो मुसलमानों को समस्या और धर्मनिरपेक्षता को देश की आत्मा पर हमला मानते थे

अंत्योदय का नारा देने वाले दीनदयाल उपाध्याय का कहना था कि अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिंदू संस्कृति है.

विदेशी राजनयिकों के सामने मोहन भागवत बोले, संघ ट्रोलिंग का समर्थन नहीं करता

संघ प्रमुख ने कहा, उनका संगठन ट्रोलिंग और इंटरनेट पर आक्रामक आचरण का समर्थन नहीं करता क्योंकि यह गरिमा के अनुकूल नहीं होते हैं.

हत्यारों की भीड़ इस देश की नुमाइंदगी नहीं करती

अंग्रेज़ी प्रभावशाली भाषा है, मगर इसकी पहुंच सीमित है. क्षेत्रीय भाषाओं के पत्रकार असली असर पैदा कर सकते हैं. छोटे शहरों के ऐसे कई साहसी पत्रकार हैं, जिन्होंने अपने साहस की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई है.

गौरी लंकेश मामले पर बोले एआर रहमान: यह मेरा भारत नहीं है

वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के चार दिन बाद भी नहीं मिला कोई सुराग, कांग्रेस-भाजपा में छिड़ी तकरार, राज्य ने केंद्र को रिपोर्ट भेजी.

भाजपा ने देश में सांप्रदायिकता और नफ़रत का जिन्न छोड़ दिया है

आम आदमी पार्टी से जुड़े आशीष खेतान का कहना है, यूपीए सरकार भले ही अयोग्य रही हो, वह इन समूहों की विचारधारा से इत्तेफ़ाक नहीं रखती थी, लेकिन वर्तमान सत्ता को इन्हीं समूहों से समर्थन मिलता है.

वह चुनाव अभियान जिसने सांप्रदायिक राजनीति को बदल दिया

वर्ष 2002 में नरेंद्र मोदी के पहले राजनीतिक चुनाव प्रचार ने सबकुछ बदल दिया. पहली बार किसी पार्टी के नेता और उसके मुख्य चुनाव प्रचारक ने मुस्लिमों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरा प्रचार अभियान चलाया.

‘यह स्थापित करने का प्रयास हो रहा है कि श्रमिक एवं श्रम कानून विकास में बाधा हैं’

भारतीय मजदूर संघ ने नीति आयोग के उन निष्कर्षों को आधारहीन बताया है कि श्रम कानूनों में संशोधन के बिना विकास और रोज़गार संभव नहीं है.

भाजपा के लोग गोरक्षा के नाम पर हत्या करने को धर्म की सेवा समझते हैं: मायावती

बसपा प्रमुख मायावती ने सवाल किया, भाजपा शासित राज्यों में गायों की भूख से तड़पकर मौत हो रही है, संघ जवाब क्यों नहीं मांगता?

जब सांप्रदायिक एजेंडा ‘सुशासन’ का मुखौटा पहनता है, तब गोरखपुर त्रासदी नियति बन जाती है

एक जीवंत लोकतंत्र में 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत किसी राजनेता का करिअर ख़त्म कर सकता था, लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता.

क्या संघ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के ख़िलाफ़ था?

भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने खुशी व्यक्त करते हुए लिखा कि संघ ने पूरी ईमानदारी से ख़ुद को क़ानून के दायरे में रखा, ख़ासतौर पर अगस्त, 1942 में भड़की अशांति में वो शामिल नहीं हुआ.