चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. लोजपा ने कहा कि पार्टी चाहती है कि भाजपा राज्य में भविष्य की सरकार का नेतृत्व करे और उसके विधायक इस उद्देश्य के लिए काम करेंगे.
गुजरात सरकार द्वारा 17 अप्रैल 2020 को जारी उस अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसके तहत मज़दूरों के कई अधिकारों को रद्द कर दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि महामारी का हवाला देकर मज़दूरों के सम्मान और उनके अधिकारों के लिए बने क़ानूनों को ख़त्म नहीं किया जा सकता.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल 29 नवंबर को ख़त्म हो रहा है. चुनाव के लिए तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 03 और 07 नवंबर को मतदान होगा. चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है.
मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए श्रम क़ानूनों में जहां एक ओर सामाजिक सुरक्षा के दायरे में ऐसे विभिन्न कामगारों को लाया गया है, जो अब तक इसमें नहीं थे, वहीं दूसरी ओर हड़ताल के नियम कड़े किए गए हैं. साथ ही नियोक्ता को बिना सरकारी मंज़ूरी के कामगारों को नौकरी देने और छंटनी के लिए अधिक छूट दी गई है.
यह सही है कि समय पर चुनाव करवाना चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी है, मगर जिस राज्य में महामारी का आलम ये हो कि मुख्यमंत्री ही तीन महीने बाहर न निकलें, वहां सात करोड़ मतदाताओं के साथ एक माह तक चुनाव प्रक्रिया चलाना बीमारी के जोखिम को और बढ़ा सकता है.
विपक्षी दलों ने सत्तारूढ भाजपा-जदयू गठबंधन द्वारा ज़ोर-शोर से की जा रहीं वर्चुअल रैलियों के ख़िलाफ़ चुनाव आयोग से गुहार लगाते हुए कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव पूरी तरह से डिजिटल माध्यम से नहीं हो सकता है. डिजिटल अभियान पर किए जाने वाले ख़र्च की सीमा तय की जानी चाहिए.
देश के आम नागरिक, गैर-दलीय राजनीतिक कार्यकर्ता, कांग्रेस सहित सामाजिक न्याय के पक्षधर क्षेत्रीय दल और वाम दल सभी चाहते हैं कि मिलकर संघर्ष किया जाए. वे इस बात के लिए तैयार हैं कि भाजपा की विखंडनकारी और तानाशाही प्रवृतियों के ख़िलाफ़ यह लड़ाई चुनावी मोर्चे के साथ राष्ट्र-निर्माण के लिए भी हो.
देश के 10 केंद्रीय मजदूर संगठनों ने आईएलओ को पत्र लिखकर गुजारिश की थी कि वे विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में हो रहे बदलावों को लेकर हस्तक्षेप करें और श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.
समिति के अध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने कहा कि श्रमिकों के अधिकारों की कीमत पर उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा है कि भारत में श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा कि सरकार, श्रमिक और नियोक्ता संगठनों से जुड़े लोगों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता के बाद ही श्रम कानूनों में किसी भी तरह का संशोधन किया जाना चाहिए.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्य कोरोना महामारी के नाम पर गोपनीय तरीके से कुछ सालों के लिये कई श्रम क़ानूनों को हल्का कर रहे हैं या रोक लगा रहे हैं. राज्यों की दलील है कि इससे निवेश बढ़ेगा, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि निवेश श्रम क़ानूनों को ख़त्म करने से नहीं बल्कि बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और स्किल्ड लेबर से होता है.
प्रवासी मज़दूरों के घर लौटने के प्रयासों के बीच बिहार और उत्तर प्रदेश के 1.09 लाख प्रवासियों ने अपने गृह राज्यों से वापस लौटने के लिए हरियाणा सरकार के वेब पोर्टल पर आवेदन किया है.
पत्र के अनुसार, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन के बिना काम की अवधि को आठ घंटे प्रतिदिन से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है. इससे मजदूरों के मौलिक अधिकार को लेकर गंभीर ख़तरा पैदा हो रहा है.
धरना देने वाली भाकपा की विधायक गीता गोपी ने कहा कि अनुसूचित जाति की एक महिला के विधायक बनने के बाद ये लोग जाति के आधार पर मेरा अपमान कर रहे हैं. इसके साथ ही यह केरल का भी अपमान है, जिसे अक्सर पूरी तरह से शिक्षित राज्य कहा जाता है.
मुख्यमंत्री बनर्जी ने विपक्षी दलों को आश्वासन दिया कि पंचायत चुनाव में गड़बड़ी और पार्टी कार्यालयों पर कब्जे के बारे में उनकी शिकायतों को सुना जाएगा.