छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले में बुरकापाल गांव के क़रीब 24 अप्रैल 2017 को नक्सलियों ने केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के एक दल पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें 25 जवानों की मौत हो गई थी. आदिवासियों की वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने सवाल उठाया कि उन्होंने जो अपराध नहीं किया, उसके लिए उन्हें इतने साल जेल में क्यों बिताने पड़े. इसकी भरपाई कौन करेगा.
मार्च 2011 में सुकमा ज़िले के तीन गांवों में आदिवासियों के घरों में आग लगाई गई थी. पांच महिलाओं से बलात्कार हुआ और तीन ग्रामीणों की हत्या हुई थी. इसका आरोप पुलिस पर लगा था. सीबीआई की एक रिपोर्ट में भी विवादित पुलिस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी और पुलिस को ज़िम्मेदार बताया गया था, लेकिन हाल ही में विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट बताती है कि मामले में पुलिस को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.
बस्तर संभाग के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव में सीआरपीएफ के कैंप के विरोध में खड़े हुए जनांदोलन को दबाने और माओवादी बताने की कोशिशें लगातार हो रही हैं, लेकिन इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन के इतनी आसानी से ख़त्म हो जाने के आसार नज़र नहीं आते.
बस्तर संभाग के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव में 20 दिनों से हज़ारों ग्रामीण आंदोलनरत हैं. उनका कहना है कि उन्हें जानकारी दिए बिना उनकी ज़मीन पर राज्य सरकार ने सुरक्षाबल के कैंप लगा दिए हैं. ग्रामीणों को हटाने के लिए हुई पुलिस की गोलीबारी में तीन ग्रामीणों की मौत हुई है, जिसके बाद से आदिवासियों में काफ़ी आक्रोश है.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने एफआईआर में सोनी सोरी और बेला भाटिया को चुनाव आचार संहिता लागू होने के दौरान अवैध रूप से रैली निकालने और प्रशासन के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी करने का आरोपी बनाया है. बेला भाटिया ने पुलिस पर बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाया है.