इंसान की आज़ादी सबसे ऊपर है. जो ज़मानत एक टीवी कार्यक्रम करने वाले का अधिकार है, वह अधिकार गौतम नवलखा या फादर स्टेन का क्यों नहीं, यह समझ के बाहर है. अदालत कहेगी हम क्या करें, आरोप यूएपीए क़ानून के तहत हैं. ज़मानत कैसे दें! लेकिन ख़ुद पर यह बंदिश भी खुद सर्वोच्च अदालत ने ही लगाई है.
एनआईए ने पिछले साल अक्टूबर में भीमा कोरेगांव हिंसा-एल्गार परिषद मामले में 84 वर्षीय स्टेन स्वामी को गिरफ़्तार किया था. मामले की पिछली सुनवाई में स्वामी ने सरकारी अस्पताल में भर्ती होने की अदालत की सलाह से इनकार करते हुए कहा था कि वह भर्ती नहीं होना चाहते, उसकी जगह कष्ट सहना पसंद करेंगे और संभवत: स्थितियां जैसी हैं, वैसी रहीं तो जल्द ही मर जाएंगे.
एनआईए ने पिछले साल अक्टूबर में भीमा कोरेगांव हिंसा-एल्गार परिषद मामले में 84 वर्षीय स्टेन स्वामी को गिरफ़्तार किया था.स्वामी ने सरकारी अस्पताल में भर्ती होने की सलाह से इनकार करते हुए कहा कि वह भर्ती नहीं होना चाहते, उसकी जगह कष्ट सहना पसंद करेंगे और संभवत: स्थितियां जैसी हैं, वैसी रहीं तो जल्द ही मर जाएंगे. उन्होंने कहा कि जो दवाइयां वे दे रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा मजबूत मेरी गिरती हालत है.
भीमा कोरेगांव हिंसा-एल्गार परिषद मामले में 84 वर्षीय कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के ख़िलाफ़ आईपीसी की विभिन्न धाराओं समेत कठोर यूएपीए क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया है. पिछले साल एनआईए ने उन्हें गिरफ़्तार किया था. पार्किंसन जैसी बीमारी से जूझने के बावजूद उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी गई थी.
भीमा-कोरेगांव हिंसा और एल्गार परिषद सम्मेलन के संबंध में साल 2018 से अब तक 15 अधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया गया है. इनके परिजनों ने कोविड-19 की दूसरी लहर को देखते हुए इनकी रिहाई की मांग करते हुए कहा है कि ये सभी लोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं और उनमें से एक कार्यकर्ता को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया है.
गौतम नवलखा ने मांग की थी कि चार्जशीट दायर करने की समयमीमा में साल 2018 में उनकी 34 दिनों की ग़ैर क़ानूनी हिरासत को भी शामिल किया जाना चाहिए. हालांकि कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया.
केरल के चार सांसदों और दो विधायकों समेत अकादमिक जगत के लोगों तथा कार्यकर्ताओं की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू को कोरोना वायरस से बचाने के लिए ये क़दम उठाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि भीमा कोरेगांव मामले में उन्हें ग़लत तरीके से फंसाया गया है.
भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर से मिले पत्रों के आधार पर विल्सन समेत पंद्रह कार्यकर्ताओं पर विभिन्न गंभीर आरोप लगाए गए थे. इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणों की जांच करने वाले अमेरिकी फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग का कहना है कि इन्हें एक साइबर हमले में विल्सन के लैपटॉप में डाला गया था.
एल्गार परिषद मामले में अक्टूबर 2020 में हिरासत में लिए गए 84 वर्षीय स्टेन स्वामी पार्किंसन समेत कई बीमारियों से पीड़ित हैं. मेडिकल आधार पर उनकी ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के विरोध में जारी बयान में कहा गया है कि वे उन हज़ारों विचाराधीन क़ैदियों के प्रतीक हैं जो सालों से यूएपीए के फ़र्ज़ी आरोपों में जेल में हैं.
एनआईए जज ने मेडिकल आधार पर भी 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी, जबकि वे पार्किंसन समेत कई अन्य बीमारियों से जूझ रहे हैं.
वीडियो: भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में आरोपियों के वकील ने दावा किया है कि आरोपियों में से एक रोना विल्सन के लैपटॉप से बरामद कथित साजिश के मेल खुद उन्होंने नहीं लिखे थे बल्कि इन्हें प्लांट करवाया गया था. क्या है यह पूरा मामला, बता रहे हैं मुकुल सिंह चौहान.
एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार सामाजिक कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटर से मिले पत्रों के आधार पर विल्सन समेत पंद्रह कार्यकर्ताओं पर विभिन्न गंभीर आरोप लगाए गए थे. अब मामले के इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणों की जांच करने वाले अमेरिकी फर्म का कहना है कि इन्हें एक साइबर हमले में विल्सन के लैपटॉप में डाला गया था.
एनआईए अदालत ने जुलाई 2020 में एलगार परिषद मामले में आरोपी गौतम नवलखा की डिफॉल्ट ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी थी, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में आपराधिक अपील दायर की थी.
विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त 83 वर्ष के फादर स्टेन स्वामी को एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार किया गया था. उनकी ज़मानत का विरोध करते हुए जिस पीसीयूएल को 'माओवादी' बताया गया, उसकी स्थापना समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने की थी और भाजपा के रविशंकर प्रसाद और अरुण जेटली इससे जुड़े रहे हैं.
यह कार्यक्रम शुरुआत में 31 दिसंबर 2020 को होना था, लेकिन पुलिस द्वारा मंजूरी नहीं दिए जाने के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था. 2017 में भीमा-कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने के मौके पर एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन 31 दिसंबर को पुणे के शनिवारवाड़ा में किया गया था. इसके अगले दिन यहां हिंसा भड़क उठी थी.