राष्ट्रीय चेतना के पर्याय थे स्वामी अभयानंद

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कई विचारधाराओं के लोगों ने अपने-अपने तरीकों से मोर्चा लिया था. इनमें कई गुमनाम बने रहे, पर जिनके बारे में कुछ जानकारियां भीं थीं, उन पर भी बहुत कुछ नहीं लिखा जा सका. स्वामी अभयानंद भी उन्हीं में से एक थे.

झारखंड: ज़िला स्तर की सरकारी नौकरियों की परीक्षा में भोजपुरी-मगही को शामिल किए जाने का विरोध

यह प्रदर्शन उस समय शुरू हुए, जब झारखंड सरकार ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट उत्तीर्ण उम्मीदवारों के चयन के लिए दो ज़िलों- बोकारो और धनबाद में क्षेत्रीय भाषाओं के रूप में मगही और भोजपुरी को शामिल किए जाने के लिए अधिसूचना जारी की थी. ये आंदोलन बड़े पैमाने पर इन्हीं ज़िलों में हो रहे हैं, जहां प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यहां बहुत ही छोटी आबादी भोजपुरी और मगही बोलती है.

किसी भी हालत में झारखंड का बिहारीकरण नहीं होने देंगेः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक साक्षात्कार में कहा कि भोजपुरी और मगही बिहार की भाषा है, झारखंड की नहीं. झारखंड का बिहारीकरण क्‍यों किया जाए? आदिवासियों ने झारखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई क्षेत्रीय भाषाओं के दम पर लड़ी थी, भोजपुरी और मगही भाषा की बदौलत नहीं.

‘बोलियों को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग बिल्कुल जायज़ है’

भोजपुरी और हिंदी के प्रमुख भाषा वैज्ञानिक एवं आलोचक डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह बता रहे हैं कि क्यों बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए.

बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विरोध क्यों हो रहा है?

कलकत्ता विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर अमरनाथ बता रहे हैं कि हिंदी की बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए.

38 भाषाओं को संवैधानिक दर्जा देने की मांग पर निश्चित मानदंड तैयार नहीं हुआ

लोकसभा में किरण रिजिजू ने बताया कि भाषा का विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक विकासों द्वारा प्रभावित होता है, भाषा संबंधी कोई मानदंड निश्चित करना कठिन है.

भोजपुरी फिल्म फेस्टिवल : अपने ही जाल में उलझा भोजपुरी सिनेमा

बदलते दौर के भौतिक चमक-दमक को तो भोजपुरी सिनेमा खूब दिखाता है, पर सामाजिक -सांस्कृतिक मूल्यों की जड़ता से नहीं भिड़ता. वह एक बड़े विभ्रम का शिकार है.