जातिवार जनगणना किसे नागवार है?

जातिवार जनगणना के विरोधियों का आग्रह है कि यह विभाजक पहल है क्योंकि यह जातिगत अस्मिताओं को बढ़ावा देगी, समाज में द्वेष पैदा करेगी. यह तर्क सदियों पुराना है और स्वतंत्रता संग्राम के समय से सत्ता-समीप हलको ने इसका सहारा लिया है. यह कथित ‘उच्च’ जातियों का नज़रिया है, भले ही इस पर प्रगतिशीलता की चादर डाली जाए.

देश में दलितों के ख़िलाफ़ क्यों बढ़ रहे हैं अत्याचार?

वीडियो: बीते कुछ महीनों में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से दलित समुदाय के लोगों पर अत्याचार के दिल दहलाने वाले मामले सामने आए हैं. हालांकि, इन मामलों को लेकर हुई कार्रवाई घटनाओं की बढ़ती संख्या की तुलना में कहीं पीछे है. इस बारे में वंचित बहुजन अघाड़ी से जुड़े प्रियदर्शी तेलांग से बातचीत.

राजस्थान: दलित छात्र की आत्महत्या मामले में स्कूल के दो शिक्षकों के ख़िलाफ़ हत्या का केस दर्ज

राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ ज़िले के जवाहर नवोदय विद्यालय का मामला. ​दलित छात्र ने अपनी मौत से पहले परिजनों को बताया था कि स्कूल के दो शिक्षक पिछले कई दिनों से उसे जातिसूचक गालियां देने के साथ उसके सहपाठियों के सामने उसे अपमानित कर रहे थे. केस दर्ज करने के बाद दोनों शिक्षकों को स्कूल से निलंबित कर दिया गया है.

गुजरात: अच्छे कपड़े पहनने और चश्मा लगाने पर दलित व्यक्ति को पीटा, 7 के ख़िलाफ़ केस दर्ज

गुजरात के बनासकांठा ज़िले के गढ़ पुलिस थानाक्षेत्र का मामला. 21 वर्षीय दलित युवक पर कथित तौर पर उच्च जाति के राजपूत समुदाय के सदस्यों द्वारा हमला किया गया था.

पिछले पांच वर्षों में आईआईटी के 33 छात्रों ने आत्महत्या की

सरकार ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा है कि आईआईटी, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) में 2018-2023 की अवधि के दौरान आत्महत्या के कुल 61 मामले दर्ज किए गए. आत्महत्या के आधे से अधिक मामले आईआईटी में सामने आए हैं. इसके बाद एनआईटी और आईआईएम का नंबर आता है.

अमेरिका में भेदभाव विरोधी क़ानून में जाति को जोड़ने पर सिर्फ़ हिंदू ख़फ़ा क्यों हैं?

भले ही शास्त्रीय मान्यता न हो, व्यवहार में जातिगत भेद भारत के हर धार्मिक समुदाय की सच्चाई है. अमेरिका जाने वाले सिर्फ़ हिंदू नहीं, अन्य धर्मों के लोग भी हैं. अमेरिका के सिएटल में लागू जातिगत भेदभाव संबंधी क़ानून सब पर लागू होगा, सिर्फ़ हिंदुओं पर नहीं. फिर हिंदू ही क्यों क्षुब्ध हैं?

क्या आरएसएस किसी दलित स्वयंसेवक को सरसंघचालक बनाएगा?

आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बीते दिनों कहा था कि ईश्वर की दृष्टि में हर कोई समान है और उसके सामने कोई जाति या संप्रदाय नहीं है. यह सब पंडितों ने बनाया, जो ग़लत है.

जोशीमठ: दलित समुदाय ने राहत कार्य में भेदभाव का आरोप लगाया, जांच शुरू

जोशीमठ शहर में भूमि धंसाव से प्रभावित लोगों के लिए चल रहे राहत कार्य के बीच अनुसूचित जाति के कुछ रहवासियों ने जाति के कारण उपेक्षा किए जाने की शिकायत की है. उत्तराखंड राज्य अनुसूचित जाति आयोग का कहना है कि वे इसकी जांच करेंगे और आरोप सही पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी.

तमिलनाडु: कथित सवर्णों द्वारा दलितों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने के बाद मंदिर सील किया गया

घटना सलेम के विरुदासमपट्टी में शक्ति मरियम्मन मंदिर में हुई, जहां कथित उच्च जाति की महिलाओं ने मंदिर में आयोजित एक पूजा में दलित श्रद्धालुओं को प्रवेश से रोक दिया. अधिकारियों के समझाने के बाद भी जब वे लोग दलितों को मंदिर में आने देने के लिए सहमत नहीं हुए तो राजस्व अधिकारियों ने मंदिर सील कर दिया.

तमिलनाडु: प्रिंसिपल ने दलित छात्रों से स्कूल के शौचालय साफ करवाए

घटना इरोड ज़िले की है, जहां एक छात्र के अभिभावकों की शिकायत पर पुलिस ने किशोर न्याय अधिनियम और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है. पुलिस ने बताया कि आरोपी प्रधानाध्यापिका फ़रार हैं.

तमिलनाडु: हाईकोर्ट ने जाति आधारित क़ब्रिस्तान और श्मशान की रवायत ख़त्म करने को कहा

एक निचली अदालत द्वारा एक शव को 'एससी/एसटी के लिए तय ज़मीन' पर न दफनाए जाने पर उसे बाहर निकालने के आदेश दिए गए थे. उसे रद्द करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि कम से कम किसी इंसान के अंतिम समय में तो समानता बरती जानी चाहिए.

ईडब्ल्यूएस आरक्षण: जिन लोगों को ‘वो’ साथ बैठाना नहीं चाहते, उनसे दाख़िलों, नौकरी में बराबरी क्यों

प्रतिभा के कारण अवसर मिलते हैं. यह वाक्य ग़लत है. यह कहना सही है कि अवसर मिलने से प्रतिभा उभरती है. सदियों से जिन्होंने सारे अवसर अपने लिए सुरक्षित रखे, अपनी प्रतिभा को नैसर्गिक मानने लगे हैं. वे नई-नई तिकड़में ईजाद करते हैं कि जनतंत्र के चलते जो उनसे कुछ अवसर ले लिए गए, वापस उनके पास चले जाएं.

ईडब्ल्यूएस आरक्षण निर्णय बराबरी के सिद्धांत पर वार है और भेदभाव को संवैधानिक मान्यता देता है

संविधान की मूल संरचना का आधार समानता है. आज तक जितने संवैधानिक संशोधन किए गए हैं, वे समाज में किसी न किसी कारण से व्याप्त असमानता और विभेद को दूर करने वाले हैं. पहली बार ऐसा संशोधन लाया गया है जो पहले से असमानता के शिकार लोगों को किसी राजकीय योजना से बाहर रखता है.