प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे से पहले कांग्रेस ने पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि जाति जनगणना विभाजनकारी है और क्या वह अनुसूचित जातियों, जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर मनमानी 50% की सीमा को हटाने के लिए निर्णायक कदम उठाएंगे.
एन. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का हिस्सा है, जो जातिगत जनगणना के विरोध में रही है. अब नायडू ने कहा है कि जातिगत जनगणना से लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं और देश में आर्थिक असमानता को कम करने के लिए उस भावना का सम्मान किया जाना चाहिए.
आरएसएस के मुख्य प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने कहा है कि सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए अगर सरकार को संख्या की ज़रूरत है, तो जाति जनगणना की जा सकती है लेकिन इसका इस्तेमाल चुनाव प्रचार में राजनीतिक औजार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.
अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण पर संसदीय समिति की पहली बैठक में जनता दल यूनाइटेड ने विपक्ष की इस मांग का समर्थन किया कि जातिगत जनगणना पर चर्चा की जाए. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में जदयू भाजपा का एक प्रमुख सहयोगी दल है.
ओबीसी के वर्गीकरण पर सरकार द्वारा गठित रोहिणी आयोग के सदस्य जेके बजाज ने एससी/एसटी कोटा वर्गीकरण का समर्थन करते हुए कहा कि व्यक्तिगत रूप से वे जाति जनगणना के पक्ष में हैं. उन्होंने जोड़ा कि चूंकि 50% दाखिले और नियुक्तियां जाति के आधार हो रहे हैं, इसलिए डेटा न होना ख़ुद को अंधेरे में रखने जैसा है.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के गठन को बमुश्किल दो महीने ही बीते हैं, लेकिन इतने कम समय में ही उसे अपनी विभिन्न नीतियों पर सहयोगी दलों की असहमति से दो-चार होना पड़ रहा है. लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान इस मामले में लगातार मुखरता दिखा रहे हैं.
इलाहाबाद में हुए एक कार्यक्रम में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी को जनता की बात सुनकर जातिगत जनगणना करवानी ही होगी, अगर वह नहीं करेंगे तो अगले प्रधानमंत्री को कराते हुए देखेंगे.
जातिगत जनगणना की मांग हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों के दौरान 'इंडिया' गठबंधन द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दों में से एक थी. अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने जातिगत जनगणना से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से सामान्य जनगणना के साथ-साथ देशव्यापी जातिगत जनगणना कराने की भी मांग की है.
बिहार सरकार द्वारा पिछले साल जाति जनगणना के बाद संशोधित आरक्षण अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण सीमा 50%से बढ़ाकर 65% की गई थी. अदालत ने इसे संविधान में दिए समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया है.
यदि जाति का ब्योरा जुटाने से देश की एकता और अखंडता को कोई ख़तरा है तो भाजपा ने यह ब्योरा क्यों इकट्ठा किया? चूंकि मोदी सरकार ने 20वीं पशुगणना के तहत गाय, भैंस आदि की संख्या को सार्वजनिक कर दिया लेकिन जातियों के आंकड़े को सार्वजनिक नहीं किया.
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