पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी समिति के कोई निर्णायक निष्कर्ष न देने के बाद अदालत के पास सच्चाई जानने के दो आसान तरीके हैं. एक, केंद्रीय गृह मंत्री, एनएसए समेत महत्वपूर्ण अधिकारियों से व्यक्तिगत हलफ़नामे मांगना और दूसरा, समिति के निष्कर्षों की प्रतिष्ठित संगठनों से समीक्षा करवाना.
जस्टिस यूयू ललित दूसरे ऐसे सीजेआई हैं जो बार से पदोन्नत होकर सीधे शीर्ष अदालत पहुंचे हैं. हालांकि उनका कार्यकाल तीन माह से कम का होगा. वे आठ नवंबर को 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होंगे.
पेगासस स्पायवेयर के ज़रिये देश के नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी के आरोपों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी समिति ने कहा है कि वे निर्णायक तौर पर नहीं कह सकते कि डिवाइस में मिला मैलवेयर पेगासस है या नहीं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में जासूसी के आरोपों पर सुनवाई जारी रहेगी.
पंजाब के फिरोज़पुर में पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का काफिला प्रदर्शनकारियों द्वारा मार्ग अवरुद्ध करने के कारण फ्लाईओवर पर फंस गया था, जिसके बाद वह एक रैली सहित किसी भी कार्यक्रम में शामिल हुए बिना लौट गए थे. इस सुरक्षा चूक की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति का गठन किया था.
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अस्पताल कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं, जहां मुनाफ़ा कमाना समाज की सेवा से अधिक महत्वपूर्ण है. इसके कारण डॉक्टर और अस्पताल समान रूप से मरीजों की दुर्दशा के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं.
जस्टिस उदय उमेश ललित 27 अगस्त को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे. उनका कार्यकाल तीन माह से कम का होगा. वह आठ नवंबर को 65 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होंगे.
भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना 26 अगस्त को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उन्होंने 24 अप्रैल 2021 को देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपना पदभार संभाला था.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते वर्ष अक्टूबर में सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में पेगासस स्पायवेयर के कथित दुरुपयोग की जांच के लिए एक समिति का गठन किया था. पत्रकारों, राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी के लिए स्पायवेयर के कथित इस्तेमाल की जांच के लिए इसका गठन किया गया था.
भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जब किसी मीडिया संस्थान के अन्य व्यावसायिक हित होते हैं तो वह बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है. अक्सर व्यावसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता की भावना पर हावी हो जाते हैं. नतीजतन, लोकतंत्र से समझौता होता है.
देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि न्याय देने से जुड़े मुद्दों पर ग़लत जानकारी और एजेंडा-संचालित बहसें लोकतंत्र के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं. प्रिंट मीडिया अब भी कुछ हद तक जवाबदेह है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं है, यह जो दिखाता है वो हवाहवाई है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना राजस्थान के जयपुर में शनिवार को विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने भारतीय जेलों में बढ़ती विचाराधीन क़ैदियों की संख्या पर भी राय व्यक्त करते हुए कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सज़ा है, भेदभावपूर्ण गिरफ़्तारी से लेकर ज़मानत पाने तक और विचाराधीन क़ैदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है.
कर्नाटक हाईकोर्ट के जज एचपी संदेश ने बीते दिनों एक ज़मानत याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के प्रमुख सीमांत कुमार सिंह के ख़िलाफ़ टिप्पणियां की थीं, साथ ही कथित तौर पर कहा था कि उन्हें तबादले की धमकी मिल रही है. उनकी इन टिप्पणियों के ख़िलाफ़ सीमांत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था.
श्रीनगर में हुए एक समारोह में सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह ज़रूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकारों और सम्मान को मान्यता दी गई है और उन्हें संरक्षित किया गया है. उन्होंने जोड़ा कि हम अपनी अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे हैं. अगर इस पर तत्काल ध्यान नहीं देते हैं, तो न्याय तक पहुंच का संवैधानिक आदर्श विफल हो जाएगा.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना में एक कार्यक्रम में कहा कि यह एक अच्छी तरह से स्वीकार किया गया तथ्य है कि सरकारें सबसे बड़ी मुक़दमेबाज़ हैं, जो लगभग 50 प्रतिशत मामलों के लिए ज़िम्मेदार हैं. सीजेआई ने यह भी कहा कि अदालतों में स्थानीय भाषा का उपयोग करने जैसे सुधारों को एक दिन में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि कई तरह की अड़चनों के कारण ऐसी चीज़ों के कार्यान्वयन में समय लगता है.
दिल्ली के हिंसा प्रभावित जहांगीरपुरी इलाके में उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत आरोपियों के कथित अवैध निर्माणों को तोड़ा जा रहा था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के बाद भी कार्रवाई नहीं रोकी गई. बाद में, जब याचिकाकर्ता के वकील ने वापस शीर्ष अदालत पहुंचे, तब तोड़-फोड़ की कार्रवाई रुकी.