मानवाधिकार परिषद ने स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण तक पहुंच को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने स्वच्छ पर्यावरण प्रस्ताव को पारित किया. इसमें देशों से पर्यावरण में सुधार करने की अपनी क्षमताओं को भी बढ़ाने की मांग की गई है. इस प्रस्ताव के समर्थन में 43, जबकि विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा. वहीं चार सदस्य देश चीन, भारत, जापान और रूस अनुपस्थित रहे.

क्या वेरियर एल्विन के महात्मा गांधी से दूर जाने की वजह उनका आदिवासियों के क़रीब जाना था

ब्रिटिश मूल के एंथ्रोपोलॉजिस्ट वेरियर एल्विन ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई ख़त्म कर एक ईसाई मिशनरी के रूप में भारत आए थे. 1928 में वे पहली बार महात्मा गांधी को सुनकर उनसे काफी प्रभावित हुए और उनके निकट आ गए. गांधी उन्हें अपना पुत्र मानने लगे थे, लेकिन जैसे-जैसे एल्विन आदिवासियों के क़रीब आने लगे, उनके और गांधी के बीच दूरियां बढ़ गईं.

गुरदयाल सिंह की याद के साये में किसान आंदोलन…

पंजाबी कथाकार गुरदयाल सिंह की कहानियां राजधानियों से कहीं दूर घटती हैं, पर राजधानी में लिए गए निर्णयों का आम खेतिहर मज़दूरों की ज़िंदगी पर कैसा असर पड़ता है, ये उनके लिखे में दिखता है. आज दिल्ली की सीमाओं पर नौ महीनों से बैठे किसान सिंह के आधी सदी पहले लिखे शब्दों को जीते नज़र आते हैं.

नूरजहां: गाएगी दुनिया गीत मेरे…

मंटो नूरजहां को लेकर कहते थे, 'मैं उसकी शक्ल-सूरत, अदाकारी का नहीं, आवाज़ का शैदाई था. इतनी साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ आवाज़, मुर्कियां इतनी वाज़िह, खरज इतना हमवार, पंचम इतना नोकीला! मैंने सोचा अगर ये चाहे तो घंटों एक सुर पर खड़ी रह सकती है, वैसे ही जैसे बाज़ीगर तने रस्से पर बग़ैर किसी लग्ज़िश के खड़े रहते हैं.'

मुग़लों को निशाना बनाकर आदित्यनाथ अपने ही नाथ संप्रदाय के इतिहास को मिटा रहे हैं

पूरे मुग़ल शासन के दौरान गोरखपुर समेत विभिन्न नाथों को शासकों द्वारा तोहफे और अनुदान प्राप्त हुए हैं. आधिकारिक मंदिर साहित्य भी इस बात की पुष्टि करता है.

लद्दाख: हिमालयन भेड़िए के संरक्षण के लिए अनूठी कोशिश

एक समय तक लद्दाख में हिमालयन भेड़ियों से मवेशी बचाने के लिए शांगदोंग यानी एक तरह के पत्थरों के जाल बनाकर उन्हें फंसाया जाता था और इसकी मौत पर स्थानीय उत्सव मनाते थे. पर अब इसके अस्तित्व पर मंडराते ख़तरे को देखते हुए इसके संरक्षण के लिए इन शांगदोंगों को स्तूपों में बदला जा रहा है.

32 सांसदों ने राष्ट्रपति से भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर गठित समिति भंग करने की मांग की

केंद्र सरकार ने 12,000 साल पहले से भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति और विकास का अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की है. 32 सांसदों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि समिति के लगभग सभी सदस्य एक विशिष्ट सामाजिक समूह से हैं, जो देश के बहुलतावादी समाज को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं.

इतिहासकार विजया रामास्वामी को याद करते हुए…

इतिहासकार विजया रामास्वामी का बीते दिनों निधन हो गया. उनके विपुल लेखन को एक सूत्र जो जोड़ता है, वह है इतिहास में महिलाओं की उपस्थिति दर्ज करने का प्रयास. दक्षिण भारत की महिला संतों पर उन्होंने जो लिखा है, वह विचारोत्तेजक होने के साथ ही जेंडर संबंधी इतिहास, धर्म, समाज, संस्कृति और पितृसत्ता की जटिल संरचना की समझ को समृद्ध करता है.

द अदर साइड ऑफ द डिवाइड: पंजाब की साझी विरासत, संस्कृति और भाषा का आईना

पुस्तक समीक्षा: किसी यात्रा वृतांत को पढ़ने के बाद अगर उस जगह जाने की इच्छा न जगे, तो ऐसे वृतांत का बहुत अर्थ नहीं है. पत्रकार समीर अरशद खतलानी द्वारा अपनी एक लाहौर यात्रा पर लिखी गई किताब 'द अदर साइड ऑफ द डिवाइड' इस मायने पर खरी उतरती है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 24 संरक्षित स्मारक ग़ायब: केंद्रीय पर्यटन मंत्री

संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि 321 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों में अतिक्रमण की घटनाओं का पता चला है.

‘बिन जिया जीवन’ समकालीन चिंताओं और संवेदनाओं की पुरानी अभिव्यक्ति है

पुस्तक समीक्षा: कुलदीप कुमार की कविताएं पिछले तीन दशकों में हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में आती रही हैं, पत्रकार की हैसियत से वे साहित्य-संस्कृति की जानी-मानी शख्सियतों से बातचीत करते रहे हैं. ऐसे अदीब से यह उम्मीद रहती है कि अपनी मौलिक रचनाओं में वे नई अंतर्दृष्टि की तलाश करेंगे. हाल ही में प्रकाशित उनके संग्रह 'बिन जिया जीवन' में सादगी के साथ इस उम्मीद को पूरा करने की कोशिश है.

27 मंदिरों को ढहाकर बना कुतुब मीनार हमारी संस्कृति का उदाहरण है: केंद्रीय पर्यटन मंत्री

केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि कुतुब मीनार हमारी संस्कृति का सबसे बड़ा उदाहरण है. यह एक ऐसा स्मारक है, जो 27 मंदिरों को ढहाकर बना था और आजादी के बाद भी यह विश्व धरोहर है.

खुद से अलग लोगों के ख़िलाफ़ जहर उगलने का माध्यम बन गई है स्वतंत्रता: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विडंबना यह है कि एक वैश्विक रूप से जुड़े समाज ने हमें उन लोगों के प्रति असहिष्णु बना दिया है, जो हमारे अनुरूप नहीं हैं. स्वतंत्रता उन लोगों पर जहर उगलने का एक माध्यम बन गई है, जो अलग तरह से सोचते हैं, बोलते हैं, खाते हैं, कपड़े पहनते हैं और विश्वास करते हैं.

सावन का महीना डीजे वाले बाबू के साथ

धर्म का एक अभिप्राय है अपने अंदर झांककर बेहतर इंसान बनने की कोशिश करना और दूसरा स्वरूप आस्था के बाज़ारीकरण और व्यवसायीकरण में दिखता है. आस्था के इसी स्वरूप की विकृति कांवड़िया उत्पात को समझने में मदद करती है.