भारत में तैनात विदेशी संवाददाताओं के एक समूह ने कहा कि भारतीय अधिकारियों ने चुनाव से ठीक पहले एबीसी की दक्षिण एशिया ब्यूरो प्रमुख अवनि डियाज़ को देश छोड़ने को मजबूर कर दिया, जबकि भारत सरकार इन चुनावों को दुनिया में सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया बताती है.
ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय प्रसारक एबीसी न्यूज़ के दक्षिण एशिया ब्यूरो की प्रमुख अवनि डियाज़ ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें इतना असहज महसूस कराया कि उन्हें भारत छोड़ने का फैसला लेना पड़ा. उनका कहना है कि भारत सरकार ने कहा कि उनकी 'रिपोर्टिंग हद पार कर चुकी है.'
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में दुनिया भर में मारे गए 99 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों में से तीन चौथाई से अधिक की मौत इज़रायल-गाजा युद्ध में हुई. इस संघर्ष ने तीन महीनों में इतने पत्रकारों की जान ली, जितनी किसी एक देश में पूरे साल में नहीं हुईं.
अपनी जनतांत्रिक छवि चमकाने के लिए ‘मदर आफ डेमोक्रेसी’ होने के दावों से शुरू हुई भारत सरकार की यात्रा फिलवक्त डेमोक्रेसी रेटिंग गढ़ने के मुक़ाम तक पहुंची है. अभी वह किन-किन मुकामों से गुजरेगी इसके बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सूचकांकों में भारत में लोकतंत्र की स्थिति को सवालों के घेरे में रखा गया है. अब एक मीडिया रिपोर्ट बताती है कि भारत सरकार ने कई अवसरों पर इसके साथ काम कर चुके देश के थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) से लोकतंत्र से संबंधित रेटिंग ढांचा तैयार करने को कहा है.
ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी क्वीन्सलैंड के कारमाइल कोयला खदान में खनन के लिए अडानी को जून में मंजूरी मिली थी. यहां खनन को लेकर विवाद है क्योंकि इस खदान के निकट ही ग्रेट बैरियर रीफ है, जहां दुनिया की सबसे बड़ी मूंगे की चट्टानें हैं.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के कार्यालय ने एक बयान जारी कर कहा था कि सभी मीडियाकर्मियों को मंत्रालय में प्रवेश से पहले अधिकारियों से अनुमति लेनी होगी वरना उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा.
बजट पेश होने से कुछ दिन पहले गोपनीयता बनाए रखने के लिए वित्त मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है, लेकिन बजट पारित होने के बाद ये पाबंदी हटा ली जाती है. हालांकि, इस बार ऐसा नहीं किया गया.
द वायर हिंदी के दो साल पूरे होने पर हुए कार्यक्रम में दिए गए कार्यकारी संपादक बृजेश सिंह के वक्तव्य का संपादित अंश.
मानहानि के एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस द्वारा कुछ अवसरों पर गड़बड़ियां हो सकती हैं लेकिन लोकतंत्र के व्यापक हित को देखते हुए इन्हें नज़रअंदाज़ करने की ज़रूरत होती है.