अहमदाबाद में हुए एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है जो क़ानून के शासन का उल्लंघन है.
भारत जैसे समृद्ध देश में जहां सभी धर्मों के लोग सम्मान से रहते हैं और आपके द्वारा प्रेरित हमारा संविधान सबको बराबरी का हक़ देता हैं. यहां धर्म के आधार पर शरणार्थियों में विभेद हो रहा है और नागरिकता प्रदान करने में संकीर्ण दायरे से धार्मिक आधार को देखा जाने लगा है बापू! इस नए क़ानून के बाद आपके सहयात्रियों द्वारा गढ़ी गई संविधान की प्रस्तावना बेगानी सी लग रही है.
देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन की याद में आयोजित व्याख्यान के दौरान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र समय की कसौटी पर हर बार खरा उतरा है.
अपनी हालिया फिल्म तानाजी को लेकर अभिनेता सैफ़ अली ख़ान ने कहा कि एक अभिनेता के रूप में फिल्म में उनका किरदार बहुत अच्छा है, लेकिन फिल्म में जो दिखाया गया है, वो इतिहास नहीं है. अंग्रेज़ों के आने से पहले ‘इंडिया’ का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था.
जो लोग ‘हम देखेंगे’ को हिंदू विरोधी कह रहे हैं, वो ईश्वर की पूजा करने वाले 'बुत-परस्त' नहीं, सियासत को पूजने वाले ‘बुत-परस्त’ हैं.
मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय ने कहा कि विवाद के मौजूदा माहौल में दो बातों को कभी नहीं भूलना चाहिए. पहली, देश को कभी धर्म के नाम पर विभाजित किया गया था. दूसरी, लोकतंत्र अनिवार्य रूप से विभाजनकारी है. अगर आप इसे नहीं चाहते तो उत्तर कोरिया चले जाइए.
मोदी सरकार लोकतंत्र के जिन प्रतीकों को संजोने का दावा करती है, वह उन्हें ख़त्म कर चुकी है.
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले के डिप्टी कमिश्नर शशिकांत सेंथिल ने कहा कि ऐसे समय में जब अभूतपूर्व तरीके से लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे से समझौता किया जा रहा है, ऐसे में उनका प्रशासनिक कर्मचारी के बतौर सरकार में बने रहना अनैतिक होगा.
हॉन्ग कॉन्ग और कश्मीर दोनों ही इस समय इतिहास के एक जैसे दौर से गुजर रहे हैं; दोनों की स्वायत्तता के नाम पर की गई संधि खतरे में है और उनसे संधि करने वाले देशों की सरकार इन संधियों से मुकर रही हैं.
एक सोची-समझी साज़िश के तहत जनता को एक बिना सोच-समझ वाली भीड़ में बदल दिया गया है. अब ऐसी भीड़ देश के हर क़स्बे -गांव में घूम रही है, जो एक इशारे पर किसी को भी पीट-पीटकर मार डालने को तैयार है.
विश्व आदिवासी दिवस: आदिवासियों की अपनी बोलचाल की भाषा और आम चर्चा में लोकतंत्र या आज़ादी शब्द का कोई स्थान नहीं है. किसी आदिवासी से इन शब्दों के बारे में पूछें तो वो शायद चुप रहे, लेकिन इसके असली मायने का एहसास उन्हें स्वाभाविक रूप से है.
आपातकाल के 44 साल बाद इन सेंसर-आदेशों को पढ़ने पर उस डरावने माहौल का अंदाज़ा लगता है जिसमें पत्रकारों को काम करना पड़ा था, अख़बारों पर कैसा अंकुश था और कैसी-कैसी ख़बरें रोकी जाती थीं.
जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा में तीन साल की बच्ची से बलात्कार के बाद विरोध प्रदर्शन समेत दिनभर की महत्वपूर्ण ख़बरों का अपडेट.
वीडियो: ये लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं, बता रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन.
असम में कथित तौर पर गोमांस बेचने के शक़ में भीड़ द्वारा एक मुस्लिम बुजुर्ग के साथ मारपीट किए जाने की घटना पर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नज़रिया.