लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के प्रचार अभियान में पार्टी के स्टार प्रचारक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिमों पर निशाना साध रहे है और कांग्रेस के घोषणा पत्र का नाम लेते हुए भ्रामक और फ़र्ज़ी दावे कर रहे हैं. क्या उनके चुनावी भाषणों का स्तर और नीचे गिरेगा, इस बारे में चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद.
नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान में दिए गए नफ़रती भाषण की व्यापक आलोचना के बाद निर्वाचन आयोग ने दो लगभग समान पत्र 25 अप्रैल को भाजपा और कांग्रेस के अध्यक्षों- जेपी नड्डा और मल्लिकार्जुन खरगे को भेजे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष को मिला पत्र भाजपा द्वारा राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दर्ज शिकायत पर आधारित है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके दल के नेताओं की हेट स्पीच पर चुनाव आयोग की ख़ामोशी से अंदाज़ मिलता है कि भाजपा नेताओं को माहौल सांप्रदायिक बनाने के लिए उसने पूरी छूट दी है.
राजस्थान के बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को हज़ारों नागरिकों ने ‘ख़तरनाक और भारत के मुसलमानों पर सीधा हमला’ बताते हुए चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की है. नागरिकों ने कहा है कि इस भाषण के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करने से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और स्वायत्तता कमज़ोर होगी.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक संदेश में कहा कि भाजपा विपक्ष शासित राज्यों में सरकारों को गिराने की कोशिश कर रही है, लेकिन लोकतंत्र को ख़त्म नहीं होने दिया जा सकता. कथित भूमि धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने 31 जनवरी को हेमंत सोरेन को गिरफ़्तार किया था.
आज जब लोकतंत्र का अस्तित्व संकट में है, तब भी छोटे राजनीतिक कद लेकिन विराट अहंकारी विपक्षी नेता आपसी सहमति और एकजुटता से चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लोकतंत्र अपने आप सीधी राह पर वापस नहीं आता या आ सकता. हम ऐसे मुक़ाम पर हैं जहां नागरिक के लोकतांत्रिक विवेक की परीक्षा है. उन्हें ही निर्णय करना है कि वे लोकतंत्र पर सीधी राह पर वापस लाने की कोशिश करना चाहते हैं या नहीं.
वीडियो: आगामी 19 अप्रैल को अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हालांकि, सीएम पेमा खांडू समेत भाजपा के दस प्रत्याशी ऐसे हैं जिनके निर्वाचन क्षेत्र में उनके ख़िलाफ़ कोई नामांकन ही नहीं हुआ है और वे मतदान से पहले ही 'जीते' हुए माने जा रहे हैं. क्या ऐसा होना लोकतंत्र में जनता के उसके प्रतिनिधि चुनने के अधिकार के लिए ख़तरा है? प्रदेश की राजनीति पर द वायर की वरिष्ठ पत्रकार संगीता बरुआ पिशारोती से
विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस द्वारा दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित 'लोकतंत्र बचाओ महारैली' में अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ़्तारी का प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराने के लिए मंच पर पहली पंक्ति में दो कुर्सियां खाली छोड़ी गई थीं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय नहीं कहने और करने का आशय है भारतीय सभ्यता, भारतीय परंपरा, भारतीय लोकतंत्र के अपनी प्रतिबद्धता का इसरार करना. जो इस समय नहीं कहने-करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा वह नैतिक चूक का चरित्र होगा.
चुनाव के साफ़ सुथरा और निष्पक्ष होने में विपक्ष के अलावा जनता को दिलचस्पी होनी चाहिए. आशा की जाती है कि जब शासक दल निरंकुश होने लगे तो राज्य की बाक़ी संस्थाएं मिलकर जनतांत्रिक प्रक्रियाओं की हिफ़ाज़त करेंगी. लेकिन जान पड़ता है राज्य की सभी संस्थाओं ने भाजपा में अपना विलय कर दिया है.
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन सहित अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविदों ने बड़ी संख्या में लेखकों, पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स को बिना मुक़दमे के लंबे समय तक क़ैद में रखने की आलोचना की और कहा कि ऐसे कारावास को भारतीय संसद द्वारा पारित ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम में संशोधन के माध्यम से विधायी समर्थन दिया गया है.
राजस्थान की शिक्षिका हेमलता बैरवा के निलंबन के बीच संविधान की बहसों की याद किया जाना चाहिए, जहां धार्मिक होने के बावजूद सदस्यों का बहुमत इस बात पर सहमत था कि स्कूलों को, जिनका मूल मक़सद बच्चों के दिमाग खोलना है, को किसी भी क़िस्म की धार्मिक शिक्षा के लिए खोला नहीं जाना चाहिए.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारे लोकतंत्र की एक विडंबना यह रही है कि उसके आरंभ में तो राजनीतिक नेतृत्व में बुद्धि ज्ञान और संस्कृति-बोध था जो धीरे-धीरे छीजता चला गया है. हम आज की इस दुरवस्था में पहुंच हैं कि राजनीति से नीति का लोप ही हो गया है.
मानव विकास पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, चीन और श्रीलंका उच्च मानव विकास श्रेणी में क्रमशः 75वें और 78वें स्थान पर हैं, जबकि मध्यम श्रेणी में रखा गया भारत, भूटान (125) और बांग्लादेश (129) से भी नीचे 134वें स्थान पर है.