सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने राजधानी दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि जनजातियों को गै़र-अधिसूचित किए जाने के लगभग 73 वर्षों बाद भी आदिवासी उत्पीड़न और क्रूरता के शिकार होते हैं. भले ही एक भेदभावपूर्ण क़ानून को न्यायालय असंवैधानिक ठहरा दे या संसद निरस्त कर दे, लेकिन भेदभावपूर्ण व्यवहार फ़ौरन नहीं बदलता है.
राजस्थान पुलिस ने हाल ही में राज्य में दलित वर्ग के लोगों की बारात पर पथराव सहित कुछ घटनाएं सामने आने का बाद दिशानिर्देश जारी कर पुलिस अधिकारियों से कहा है कि वे इस प्रकार की घटनाओं को रोकने तथा ऐसी घटना के बाद क़ानूनी कार्रवाई करने के लिए विशेष सतर्कता बरतें.
लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि हम 21वीं सदी में रहते हैं, हमारे पास चमचमाती सड़कें हैं, लेकिन बहुत से लोग जो उन पर चलते हैं, आज भी जाति व्यवस्था से प्रभावित हैं. हमारा मस्तिष्क कब चमकेगा? हम कब अपनी जाति आधारित मानसिकता का त्याग करेंगे.
मामला जयपुर के कोटपूतली क़स्बे का है. पुलिस ने बताया कि कुछ लोगों ने दलित दूल्हे के घोड़ी चढ़ने पर आपत्ति जताई थी. परिवार ने विवाह को लेकर पहले ही पुलिस को सूचना दी थी और इस दौरान पुलिस तैनात भी थी. इसके बावजूद बारात पर पत्थर फेंके गए. घटना को लेकर तीन अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है.
ऑक्सफैम इंडिया ने भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान के साथ चुनौतियों पर अपने त्वरित सर्वेक्षण के परिणामों को जारी किया है, जिसमें दावा किया गया है कि कुल जवाब देने वालों में से 30 फ़ीसदी ने धर्म, जाति या बीमारी या स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर अस्पतालों में या स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की ओर से भेदभाव किए जाने की जानकारी दी है.
मामला हरियाणा के जींद ज़िले के उचाना विधानसभा क्षेत्र के छातर गांव का है. आरोप है कि एक दलित युवक की पिटाई करने वाले सवर्ण जाति के युवक की शिकायत पुलिस से करने पर 150 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार किया गया है. पुलिस ने इस संबंध में गांव के ही 23 लोगों के ख़िलाफ़ एससी/एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है.
सेव द चिल्ड्रन द्वारा ‘ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: संकट में लड़कियों के अधिकार’ में कहा गया है कि बाल विवाह के कारण गर्भधारण और बच्चे को जन्म देने की वजह से हर साल तक़रीबन 22,000 लड़कियों की मौत हो रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट के पिछले साल 18 सितंबर के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर शीर्ष अदालत सुनवाई कर रहा था, जिसमें निजी और सरकारी स्कूलों को कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग अथवा वंचित समूह श्रेणी के छात्रों को गैजेट और इंटरनेट उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम में कहा कि जेल में बंद महिलाओं को अक्सर गंभीर पूर्वाग्रह, लांछन और भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा पुरुष क़ैदियों की भांति इन महिला क़ैदियों का समाज में फिर से एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत का सेवाएं प्रदान करने का दायित्व बनता है.
पहचान की अवधारणा खालिस इंसानी ईजाद है. पहचान के लिए ख़ून की नदियां बह जाती हैं. पहचान का प्रश्न आर्थिक प्रश्नों के कहीं ऊपर है. उस पहचान को अगर कोई भूमिगत कर दे, तो उसकी मजबूरी समझी जा सकती है और इससे उसके समाज की स्थिति का अंदाज़ा भी मिलता है.
जातिगत अध्ययनों पर प्रख्यात शोधकर्ता 81 वर्षीय डॉ. गेल ओमवेट का लंबी बीमारी के बाद महाराष्ट्र के सांगली में निधन हो गया. पहली बार पीएचडी छात्रा के रूप में महाराष्ट्र में जाति व महात्मा फुले के आंदोलन का अध्ययन करने आईं अमेरिकी मूल की ओमवेट भारत में जाति और अस्पृश्यता व्यवस्था से व्यथित होकर उत्पीड़ित जातियों की मुक्ति पर काम करने के लिए यहां बस गई थीं.
मामला इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड की राजस्थान इकाई का है, जहां अनुबंध पर तैनात 25 कर्मचारी जातिगत भेदभाव का आरोप लगाते हुए बीते दो दिनों से हड़ताल पर है. अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले इन कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें शौचालय, कैंटीन और अन्य जगहों का इस्तेमाल नहीं करने दिया जाता.
मामला दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके का है. मणिपुर के पत्रकार रोनेंद्र सिंह सपम ने अपनी शिकायत में कहा है कि पूरी तरह तैयार हुए बिना और साज-सज्जा के बग़ैर फ्लैट देने पर बिल्डर के ख़िलाफ़ जब उन्होंने आवाज उठाने की कोशिश की, तब उनके पड़ोसियों ने उन्हें धमकी दी और उत्पीड़न किया.
जब हम उन लोगों के लिए और उनके साथ शोक मनाते हैं जो हमारे धर्म, भाषा और रंग के नहीं होते, तब हम उनकी कमज़ोरी और दुख के साथ ख़ुद को जोड़ते हैं. शोक संवेदना से सहभागिता का जन्म होता है. जब हम किसी के साथ शोक प्रकट करते हैं तो उनके जीवन की ज़िम्मेदारी लेते हैं. यह खोखला काम नहीं हो सकता.
वीडियो: कुछ ही समय पहले पत्रकार ग़ज़ाला वहाब की एक किताब आई है, ‘बॉर्न अ मुस्लिम- सम ट्रूथ्स अबाउट इस्लाम इन इंडिया’. इस सिलसिले में ग़ज़ाला से विशेष बातचीत.