केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी द्वारा लोकसभा में बताए गए आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में 1.7 ट्रिलियन रुपये के कर्ज बट्टे खाते में डाले गए हैं.
बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य केंद्र सरकार द्वारा कम निवेश, केंद्र-प्रायोजित परियोजनाओं की कमी और अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के कारण आर्थिक वृद्धि में काफी पीछे रह गए हैं.
पुस्तक समीक्षा: अर्थशास्त्री परकाला प्रभाकर की 'नए भारत की दीमक लगी शहतीरें: संकटग्रस्त गणराज्य पर आलेख' न केवल भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य का विश्लेषण करती है, बल्कि बताती है कि देश के लोकतांत्रिक भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कौन से क़दम ज़रूरी हैं.
मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल- जून) के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में 7.8 थी, जो 2024-25 की पहली तिमाही में घटकर 6.7 प्रतिशत रह गई. पिछला न्यूनतम स्तर वित्त वर्ष 2023 की जनवरी-मार्च तिमाही में देखा गया था.
किसी भी देश में बहुसंख्यकवाद हो, उसका प्रभाव दूसरे देश की प्रगति को बाधित करेगा. दोनों देशों की छवियां भी इससे प्रभावित होंगी. यदि भारत और बांग्लादेश में से एक में भी धर्मनिरपेक्षता ख़त्म होती है तो ऊपर से चाहे जितने भी समझौते कर लिए जाएं, कभी अमन क़ायम नहीं हो सकता.
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के बारे में विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके सभी अंग विकसित हो रहे हैं, हालांकि बढ़ती हुई असमानता आज भी चिंता का विषय है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में चीन से आयात बढ़ाने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने पर जोर दिया गया है. हालांकि, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है.
फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव शैलेश कुमार पाठक ने भारतीय उद्योग जगत की सरकार से अपेक्षाओं के संबंध में चर्चा करते हुए कहा है जून में सत्ता में आने वाली केंद्र सरकार को कारोबार करने की लागत को कम करने के साथ-साथ व्यवसाय करने को आसान बनाने और रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना चाहिए.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अगर हम मनुष्य हैं, भारतीय लोकतंत्र के नागरिक हैं और अपने राष्ट्रीय आप्तवाक्य ‘सत्यमेव जयते’ पर विश्वास करते हैं, अगर अब लग रहा है कि संविधान और उसके बुनियादी मूल्यों स्वतंत्रता-समता-न्याय-बंधुता को बचाना है तो हम चुपचाप नहीं रहें.
वित्तीय सेवा फर्म मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि शुद्ध वित्तीय बचत जीडीपी के 5% के निचले स्तर तक गिर गई है.
तेरहवें वित्त आयोग के अध्यक्ष विजय केलकर ने देश की अगली सरकार से आह्वान करते हुए कहा है कि वह अनावश्यक रूप से जटिल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में तत्काल सुधार करे और जीएसटी की एक ही दर 12% रखे.
वर्ल्ड इनक्वॉलिटी डेटाबेस में बताया गया है कि 1922 में भारत के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की कुल आय में हिस्सेदारी 13% थी, जो 1940 में बढ़कर 20% हो गई. 2022-23 आते-आते शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों के पास भारत की कुल आय का 22.6 प्रतिशत हिस्सा और कुल संपत्ति का 40.01 प्रतिशत हिस्सा है.
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के नवीनतम आंकड़े आपस में मेल नहीं खाते हैं. उन्होंने घटते प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर सवाल उठाया कि अगर भारत निवेश के लिए इतना आकर्षक देश बन गया है तो अधिक निवेश क्यों नहीं आ रहा है?
वीडियो: हाल ही में केंद्र सरकार ने घरेलू व्यय सर्वे रिपोर्ट जारी करते हुए ने यह दावा किया कि भारत में महज 5% से कम ग़रीबी रह गई है. जानकारों ने इस दावे के साथ सर्वे की मेथाडोलॉजी पर भी सवाल तो उठाए हैं. क्या इस सर्वे के आंकड़े विश्वसनीय हैं? इस बारे में वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार वी. श्रीधर से अजय कुमार की बातचीत.
अर्थव्यवस्था पर केंद्र द्वारा लाए गए श्वेत-पत्र पर राज्यसभा में अल्पकालिक चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार ने इसका इस्तेमाल ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किया है. इसमें नोटबंदी, बेरोज़गारी, मुद्रास्फीति, किसानों की दिक्कत और अर्थव्यवस्था की स्थिति के मुद्दों को छोड़ दिया गया है.