पुण्यतिथि विशेष: कुंवर नारायण का जन्म अयोध्या के उस हिस्से में हुआ था, जिसे तब फ़ैज़ाबाद कहा जाता था. उनके बारे में कहा जाता है कि वे अनुपस्थित रहकर हमारे बीच ज्यादा उपस्थित रहेंगे, पर अपनी जन्मभूमि में उनकी किंचित भी ‘उपस्थिति’ नहीं दिखाई देती.
अयोध्या में 30 अक्टूबर को आयोजित आठवें सरकारी दीपोत्सव में फ़ैज़ाबाद सांसद अवधेश प्रसाद अनुपस्थित थे, जिनका कहना है कि उन्हें आमंत्रण ही नहीं मिला. स्थानीय भाजपा नेताओं ने कहा कि वे झूठ बोल रहे हैं. हालांकि अवधेश प्रसाद को कोई निमंत्रण भेजा गया, इसका प्रमाण इन नेताओं ने नहीं दिया.
सरकारी वेबसाइटों पर फ़ैज़ाबाद में स्थित बहू बेगम के मक़बरे को ग़ैर-मुग़ल मुस्लिम स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बताया गया है, हालांकि अब इसके परिसर में स्थापत्य की नहीं, अतिक्रमण व गंदगी की ‘भव्यता’ ही नज़र आती है.
राजधानियों में बैठे विश्लेषकों और वाचाल एंकरों के लिए गांव की भाषा व राजनीतिक मुहावरे पहले भी अबूझ रहे हैं और इस बार भी अबूझ रहे. वे न इन आवाजों को सुन पाए, न समझ पाए.
भाजपा ने उत्तर प्रदेश की फैजाबाद लोकसभा सीट (जिसके अंतर्गत अयोध्या आती है) पर अपने दो बार के सांसद लल्लू सिंह को ही तीसरी बार टिकट दिया है. ऐसे में राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद चर्चा में आई अयोध्या में चुनावी मुक़ाबले में नएपन की उम्मीद कर रहे लोगों को ख़ासी नाउम्मीदी हुई है.
जब भी अपने भक्तों के अहंकार की परीक्षा लेनी होती है, रामलला ऐसी नरलीला करते ही करते हैं. कभी भक्त समझ जाते हैं और कभी नहीं समझ पाते. नहीं समझ पाते तो अपना अहंकार बढ़ाते जाते हैं. फिर एक दिन अचानक रामलला उसे तोड़ देते हैं तो वे पछताते हैं. अहंकार दरअसल, रामलला का आहार है.
नवाबों का शहर फ़ैज़ाबाद, अब उस अयोध्या नगर निगम का अनाम-सा हिस्सा है, जिसके ज़्यादातर वॉर्डों के पुराने नाम भी नहीं रहने दिए गए हैं. नवाबों के काल की उसकी दूसरी कई निशानियां भी सरकारी नामबदल अभियान की शिकार हो गई हैं. हालांकि अब भी ग़ुलामी के वक़्त के तमाम नाम नज़र आते हैं, जो सरकार को नज़र नहीं आते.
बीते दिनों योगी आदित्यनाथ सरकार ने सोलह करोड़ रुपये ख़र्च कर फ़ैज़ाबाद में अवध के नवाब शुज़ाउद्दौला द्वारा बनवाए गए ऐतिहासिक महल 'दिलकुशा' के जीर्णोद्वार का ऐलान किया, तो लोग चौंके थे. हालांकि इसके बाद ‘दिलकुशा’ को ‘साकेत सदन’ का नाम देकर उसकी पहचान ख़त्म करने में कोई देरी नहीं की गई.
पुण्यतिथि विशेष: जनता को जागरूक करने वाली पत्रकारिता के लक्ष्य को लेकर 'महात्मा' हरगोविंद ने 1958 में सहकारिता का सफल प्रयोग करते हुए ‘जनमोर्चा’ का प्रकाशन शुरू किया. पांच लोगों के पंद्रह-पंद्रह रुपयों के योगदान से शुरू हुआ यह अख़बार आज भी व्यक्तिगत मालिकाने के बिना चल रहा है.
लगभग चालीस साल पहले अयोध्या में रहने वाले 'गुमनामी बाबा' को सुभाष चंद्र बोस बताए जाने की कहानी एक स्थानीय अख़बार की सनसनीखेज़ सुर्ख़ी से शुरू हुई थी. इसके बाद तो नेताजी के प्रति उमड़ी भावनाओं के अतिरेक ने लोगों को बहाकर वहां ले जा छोड़ा, जहां तर्कों की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती.
राज ठाकरे की अयोध्या यात्रा के ऐलान के बाद आदित्य ठाकरे ने भी वहां जाने की घोषणा की है और शहर में पोस्टर वॉर छेड़ते हुए 'नकली हिंदुत्ववादी' से सावधान रहने को कहा है. वहीं, कैसरगंज से भाजपा के बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने राज ठाकरे को 'कालनेमि' बताते हुए अयोध्या में न घुसने देने की धमकी दे डाली है. एक अन्य भाजपा सांसद लल्लू सिंह राज ठाकरे को 'राम के साथ मोदी की शरण में आने' की सीख
उत्तर प्रदेश के अयोध्या स्थित पंजाब नेशनल बैंक की एक शाखा में बतौर उप-शाखा प्रबंधक के पद पर कार्यरत थीं मृतक. घटनास्थल से कथित तौर पर एक सुसाइड नोट मिला है, जिसमें दो पुलिसकर्मियों को इससे लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है. मृतक राजधानी लखनऊ की रहने वाली थीं.
फ़ैज़ाबाद ज़िले को अयोध्या का नाम देने के बाद अब उसके रेलवे स्टेशन को अयोध्या कैंट करने वाली योगी सरकार को कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब भी देने चाहिए, मसलन अयोध्या ज़िले की प्रति व्यक्ति आय क्या है? क्या अयोध्या की सरकार प्रायोजित जगर-मगर उसकी ग़रीबी का विकल्प हो सकती है? विकास के नाम पर लोगों को दरबदर करने वाली सरकारी योजनाएं इस ग़रीबी को घटाएंगी या बढ़ाएंगी?
उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से कहा गया है कि भारत सरकार ने फ़ैज़ाबाद रेलवे जंक्शन का नाम अयोध्या कैंट करने के निर्णय पर सहमति दे दी है. इस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोटिफिकेशन जारी करने के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है. इससे पहले योगी सरकार ने वर्ष 2018 में फ़ैज़ाबाद जिला और मंडल का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया था.
19 दिसंबर 1927 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अशफ़ाक़उल्ला ख़ां को फ़ैज़ाबाद जेल में फांसी दी गई थी. अयोध्या में उनके शहादत स्थल पर हर साल आयोजित होने वाले सभी श्रद्धांजलि कार्यक्रमों व समारोहों पर नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर प्रदर्शन की आशंका के चलते रोक लगा दी गई है.