मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने की मांग का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार को निशाने पर लिया है. उन्होंने कहा कि देश के किसानों को आप हरा नहीं सकते. उसके यहां ईडी, इनकम टैक्स वालों को नहीं भेज सकते. किसान लड़ेगा और एमएसपी लेकर रहेगा.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जयपुर में जाट समाज के एक कार्यक्रम को में एमएसपी क़ानून लाने का समर्थन करते हुए कहा कि धरना ख़त्म हुआ है, आंदोलन नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल के बतौर उनके कार्यकाल के चार महीने बाकी हैं, जिसके बाद वे किसानों के लिए काम करेंगे.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि किसानों ने केवल दिल्ली में अपना धरना समाप्त किया है, लेकिन तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ उनका आंदोलन अभी भी जीवित है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि देश में जिस रफ़्तार से बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ रही है उससे देश में संकट खड़ा होने वाला है.
नवंबर 2021 में केंद्र सरकार ने दिल्ली की सीमाओं पर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे किसानों पर दर्ज मामलों को वापस लेने पर सहमति व्यक्त की थी. दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने बताया कि 26 जनवरी 2021 को हुई हिंसा से जुड़े मामलों को वापस लेने का औपचारिक अनुरोध उपराज्यपाल को भेजा गया है.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग के समर्थन में पिछले साल 26 जनवरी को किसानों ने ‘ट्रैक्टर परेड’ निकाली थी, जब किसानों और पुलिस के बीच कई स्थानों पर झड़पें हुई थीं. इस दौरान बहुत से प्रदर्शनकारी ट्रैक्टर चलाते हुए लाल क़िला तक पहुंच गए थे और उन्होंने वहां एक ध्वज स्तंभ में धार्मिक झंडा लगा दिया था. इस मामले में दीप सिद्धू को नौ फरवरी 2021 को गिरफ्तार किया गया था.
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि पिछले लगभग पांच सालों से किसानों की आय दोगुनी करने की बात जोर-शोर से कही जाती रही है कि वर्ष 2022 तक इस मंज़िल को हासिल करने की सरकार की योजना है, लेकिन बजट में इस बहुप्रचारित ‘दावे’ पर चुप्पी साध ली गई है. उन्होंने कहा कि अगर देखा जाए तो नरेगा सहित तमाम मदों में कमी ही की गई है और कृषि प्रणाली में जान फूंकने जैसा कोई प्रयास नहीं दिखता है.
हरियाणा के चरखी दादरी में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि जब वे कृषि क़ानूनों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले तब 'वे बहुत घमंड में थे.' मलिक यह भी कहा कि आगे अगर सरकार किसानों के ख़िलाफ़ कोई क़दम लेगी तो वे इसका विरोध करेंगे और अपना पद छोड़ने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
इसके उलट इस साल पांच फरवरी को राज्यसभा में इस संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलनरत किसानों की मौत के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है. हालांकि दिल्ली पुलिस ने किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दो व्यक्तियों की मौत और एक के आत्महत्या करने की जानकारी दी है.
केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान बीते साल नवंबर महीने से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे थे. आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा को केंद्र सरकार द्वारा हस्ताक्षरित पत्र मिलने के बाद यह घोषणा हुई है, जिसमें किसानों के ख़िलाफ़ मामलों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर एक समिति बनाने सहित उनकी लंबित मांगों पर विचार करने के लिए सहमति व्यक्त की गई है.
उत्तर प्रदेश की घोसी सीट से सांसद रह चुके भाजपा नेता हरिनारायण राजभर ने भाकियू नेता राकेश टिकैत व आंदोलनकारी किसान नेताओं को 'उग्रवादी' क़रार देते हुए कहा कि टिकैत किसान आंदोलन के दौरान हुई 700 किसानों की मौत के दोषी हैं और उनकी संपत्ति ज़ब्त करके मृतकों के परिवारों को मुआवज़ा दिया जाना चाहिए.
पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी ने कहा कि प्रत्येक क्षेत्र में पहले के मुकाबले कम सरकारी नौकरियां हैं, लिहाज़ा युवाओं में कुंठा के भाव पैदा हो रहे हैं. पिछले दो वर्षों में सिर्फ उत्तर प्रदेश में पेपर लीक होने की वजह से 17 परीक्षाएं स्थगित की जा चुकी हैं और अभी तक इसमें शामिल किसी बड़े सिंडिकेट की पहचान नहीं की जा सकी है.
विवादित तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद कृषि संगठन मांग कर रहे हैं कि आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले 700 से अधिक किसानों को उचित मुआवज़ा प्रदान किया जाएगा, जिनका विस्तृत ब्यौरा उनके पास उपलब्ध है.
राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल ने सदन में पूछा था कि क्या आप्रवासी भारतीयों को एयरपोर्ट पर परेशान कर उन्हें वापस भेजने के मामले सामने आए हैं और क्या उनसे प्रदर्शनकारी किसानों की मदद बंद करने के लिए कहा गया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इसे संसद में पूछे जाने वाले सवालों की सूची से हटा दिया गया.
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का आंदोलन पिछले साल 26-27 नवंबर को ‘दिल्ली चलो’ कार्यक्रम के साथ शुरू हुआ था. इन क़ानूनों को सरकार ने वैसे तो वापस ले लिया है, लेकिन किसानों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा.
वीडियो: द वायर ने कृषि क़ानूनों को वापस लेने के बाद मुख्यधारा के मीडिया के यू-टर्न पर दिल्ली की टिकरी सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों से बात की. किसानों का कहना है कि जिस मीडिया ने उन्हें आतंकवादी, खालिस्तानी, देशद्रोही कहा, उन्हें उनका सामना करना पड़ेगा.