हिंदी फिल्में सफलता के लिए आबादी के हर हिस्से और हर धर्म के दर्शकों पर निर्भर करती हैं. पर इस बार यहां हमारे सामने एक ऐसी फिल्म आई, जिसे सिर्फ (कट्टर) हिंदू दर्शकों की ही दरकार है.
स्मृति शेष: इब्राहीम अश्क फ़िल्मी गीतकारों से बहुत अलग थे और साहित्य की हर करवट पर नज़र रखते थे. फ़िल्मी और पेशेवर शायर कहकर उनके क़द को अक्सर ‘कमतर’ बताया गया. शायद इसलिए भी अश्क ने अपनी कई आलोचनात्मक तहरीरों में कथित साहित्यकारों की ख़ूब ख़बर ली.
गए बरस इरफ़ान के जनाज़े में शामिल न होने का मलाल लिए जब साल भर बाद मैं उनकी क़ब्र पर पहुंचा तो ज़िंदगी-मौत, सच और झूठ के अलावा मोहब्बत पर भी बात निकली. और जो निकली तो फिर दूर तलक गई.
क्लब, क्राइम, कैबरे का यह फॉर्मूला 1970 के दशक की फिल्मों तक बेहद लोकप्रिय बना रहा.
स्मृति शेष: सागर सरहदी इस एहसास के साथ जीने की कोशिश करते रहे कि दुनिया को बेहतर बनाना है. मगर अपनी बदनसीबी के सोग में इस द्वंद्व से निकल ही नहीं पाए कि साहित्य और फिल्मों के साथ निजी जीवन में भी एक समय के बाद अपनी याददाश्त को झटककर ख़ुद से नया रिश्ता जोड़ना पड़ता है.
स्मृति शेष: प्रख्यात लेखक-फिल्मकार सागर सरहदी कभी विभाजन से संगत नहीं बैठा पाए. बंबई में बस जाने के बावजूद उनके अंदर का वह शरणार्थी लगातार अपने घर, अपनी जड़ों की तलाश में ही रहा.
कभी कभी, सिलसिला जैसी फिल्मों के लेखक और बाज़ार फिल्म के निर्देशक 88 वर्षीय सागर सरहदी कुछ समय से बीमार थे.
90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए धारावाहिक ‘शांति’ से चर्चा में आए अभिनेता राजेश जैस हाल ही में ‘स्कैम 92’, ‘पाताललोक’ और ‘पंचायत’ जैसी वेब सीरीज़ में नज़र आ चुके हैं. उनसे प्रशांत वर्मा की बातचीत.
मंटो नूरजहां को लेकर कहते थे, 'मैं उसकी शक्ल-सूरत, अदाकारी का नहीं, आवाज़ का शैदाई था. इतनी साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ आवाज़, मुर्कियां इतनी वाज़िह, खरज इतना हमवार, पंचम इतना नोकीला! मैंने सोचा अगर ये चाहे तो घंटों एक सुर पर खड़ी रह सकती है, वैसे ही जैसे बाज़ीगर तने रस्से पर बग़ैर किसी लग्ज़िश के खड़े रहते हैं.'
तनिष्क का विज्ञापन इस बात का संकेत है कि सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता की भारतीय भावना जीवित है. यह समय अपने खोल में छिपने और सिर झुकाकर चलने की जगह भारत के असली मूल्यों को दिखाने वाले विज्ञापन और फिल्में बनाने और धर्मांधों को यह दिखाने का है कि नफ़रत का उनका प्रोपगेंडा कामयाब नहीं होगा.
मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से कहा गया है कि सिनेमा उद्योग देश की संस्कृति का न सिर्फ अंतर्निहित हिस्सा है, बल्कि अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा भी है जिससे लाखों लोगों की आजीविका चलती है.
साक्षात्कार: भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे का जो असर समाज पर पड़ा, उसकी पीड़ा सिनेमा के परदे पर भी नज़र आई. एमएस सथ्यू की 'गर्म हवा' विभाजन पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. इस फिल्म समेत सथ्यू से उनके विभिन्न अनुभवों पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया की बातचीत.
जगदीप ने अपने 50 साल के करिअर में क़रीब 400 फिल्मों में काम किया. 1975 में आई फिल्म शोले के सूरमा भोपाली के उनके किरदार को प्रशंसक आज भी याद करते हैं. उनका डायलॉग ‘हमारा नाम सूरमा भोपाली एसे ही नहीं है’ काफी मशहूर है.
डिजिटली प्रसारित होने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म्स आईटी मंत्रालय के तहत आते हैं. अब इन प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित होने वाले कंटेंट को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अपने दायरे में लाने का प्रस्ताव रखा है.
बासु चटर्जी को सारा आकाश, रजनीगंधा, छोटी-सी बात, उस पार, चितचोर, खट्टा मीठा, बातों बातों में, शौकीन, एक रुका हुआ फैसला और चमेली की शादी जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. दूरदर्शन पर प्रसारित चर्चित धारावाहिक ब्योमकेश बक्शी और रजनी का निर्देशन भी उन्होंने ही किया था.