भगत सिंह चाहते थे कि जो क्रांतिकारी शहीद नहीं हुए, वे अपने जीवन को मिसाल बनाएं

नवंबर, 1930 में भगत सिंह ने मुल्तान जेल में बंद अपने साथी बटुकेश्वर दत्त को लिखा था कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुक़ाबला भी कर सकते हैं.

काज़ी नज़रुल इस्लाम: ‘हिंदू हैं या मुसलमान, यह सवाल कौन पूछता है?’

पुण्यतिथि विशेष: असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि में रची कविता में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह के आह्वान के बाद नज़रुल इस्लाम ‘विद्रोही कवि’ कहलाए. उपनिवेशवाद, धार्मिक कट्टरता और फासीवाद के विरोध की अगुआई करने वाली उनकी रचनाओं से ही इंडो-इस्लामिक पुनर्जागरण का आगाज़ हुआ माना जाता है.

भगत सिंह जानते थे कि असमानता व भेदभाव पर आधारित शोषण निठल्ले चिंतन से ख़त्म नहीं होंगे

विशेष: भगत सिंह चाहते थे कि स्वतंत्र भारत प्रगतिशील विचारों पर आधारित ऐसा देश बने, जिसमें सबके लिए समता व सामाजिक न्याय सुलभ हो. ऐसा तभी संभव है, जब उसके निवासी ऐसी वर्गचेतना से संपन्न हो जाएं, जो उन्हें आपस में ही लड़ने से रोके. तभी वे समझ सकेंगे कि उनके असली दुश्मन वे पूंजीपति हैं, जो उनके ख़िलाफ़ तमाम हथकंडे अपनाते रहते हैं.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी ने कहा- वह स्वतंत्र भारत को धर्मनिरपेक्ष देखना चाहते थे

स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस फाफ ने उनकी जयंती पर एक प्रेस नोट जारी करते हुए कहा है कि जो लोग नेताजी से प्यार करते हैं वे उनके अवशेषों को वापस लाकर उन्हें सबसे अच्छा सम्मान दे सकते हैं. वह अपने पिता के पार्थिव अवशेषों को जापान से भारत वापस लाने के लिए मोदी सरकार से बार-बार अनुरोध करती रही हैं.

एनएसडी ने रंग महोत्सव में उत्पल दत्त के नाटक को आमंत्रित करने के बाद मंचन से इनकार किया

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने फरवरी माह में होने वाले अपने ‘भारत रंग महोत्सव’ में विख्यात नाटककार और अभिनेता उत्पल दत्त द्वारा लिखित ‘तितुमीर’ नाटक को मंचन के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन अब आमंत्रण को वापस ले लिया है. नाटक के निर्देशक का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि नाटक के मुख्य किरदार स्वतंत्रता सेनानी ‘तितुमीर’ मुसलमान हैं.

महाराष्ट्र: सावरकर के ख़िलाफ़ टिप्पणी को लेकर राहुल गांधी पर मानहानि का केस दर्ज

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के अकोला ज़िले में हुए एक संवाददाता सम्मेलन में सावरकर की आलोचना करते हुए कहा था कि उन्होंने ब्रिटिश शासकों की मदद की और दया याचिका लिखी थी. इस तरह उन्होंने महात्मा गांधी, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अन्य नेताओं के साथ विश्वासघात किया था.

भगत सिंह: वो चिंगारी जो ज्वाला बनकर देश के कोने-कोने में फैल गई थी…

अगस्त 1929 में जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में हुई एक जनसभा में उस समय जेल में भूख हड़ताल कर रहे भगत सिंह और उनके साथियों के साहस का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘इन युवाओं की क़ुर्बानियों ने हिंदुस्तान के राजनीतिक जीवन में एक नई चेतना पैदा की है... इन बहादुर युवाओं के संघर्ष की अहमियत को समझना होगा.’

गोरखपुर: 1857 विद्रोह के नायक बंधू सिंह से जुड़ा तरकुलहा मंदिर, जहां है बलि चढ़ाने की परंपरा 

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में तरकुलहा देवी का एक प्रसिद्ध मंदिर है. जनश्रुति है कि 1857 विद्रोह के नायक डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह इसी स्थान से अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ गुरिल्ला संघर्ष छेड़े हुए थे. उन्होंने वर्तमान मंदिर के पास अंग्रेज़ों के सिर चढ़ाकर बलि की जो परंपरा शुरू की थी वह आज भी जारी है. ज़िले की सरकारी वेबसाइट के अनुसार, यह देश का इकलौता मंदिर है, जहां प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं.

स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन रोकना उचित नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

एक स्वतंत्रता सेनानी की 90 वर्षीय पत्नी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दाख़िल याचिका में महाराष्ट्र सरकार की पेंशन योजना का लाभ देने का अनुरोध किया है. महिला के पति की 56 साल पहले मौत हो गई थी. इस याचिका पर अदालत ने सरकार से जवाब मांगा है.

102 वर्षीय दोरेस्वामी को देना पड़ रहा स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण, भाजपा ने उठाया था सवाल

कर्नाटक के बीजापुर से भाजपा विधायक बीपी यत्नाल ने स्वंतत्रता सेनानी एचएस दोरेस्वामी को फर्जी स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए उनसे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के सबूत मांगे थे.

जब जेपी के जीवित रहते हुए संसद ने उन्हें श्रद्धांजलि दे दी थी…

गैरकांग्रेसवाद का सिद्धांत भले ही डाॅ. राममनोहर लोहिया ने दिया था लेकिन उसकी बिना पर कांग्रेस की केंद्र की सत्ता से पहली बेदखली 1977 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के तत्वावधान में ही संभव हुई.

राजबली यादव: जिन्होंने आज़ादी मिलने के बाद सरकार और सामंतों ​के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी रखा

पुण्यतिथि विशेष: उत्तर प्रदेश के अविभाजित फ़ैज़ाबाद ज़िले में जन्मे राजबली यादव 15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी को मुकम्मल नहीं मानते थे. आज़ादी के बाद भी उन्होंने सरकार और सामंतों के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी रखा था और कई बार जेल भी गए.

जब संघ प्रमुख के कार्यक्रम को भाव न देने पर पत्रकार श्यामा प्रसाद को नौकरी गंवानी पड़ी

पुण्यतिथि विशेष: पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्यामा प्रसाद ‘प्रदीप’ का सिद्धांत था, ‘पत्रकार को नौकरी बचाने के फेर में पड़े बिना ही काम करना चाहिए वरना पत्रकारिता छोड़ कुछ और करना चाहिए.’