छत्तीसगढ़ की एक युवा सरपंच को निर्माण कार्य में कथित देरी के आधार पर हटा दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इसे महिलाओं के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह मानते हुए बहाली का आदेश दिया है. कोर्ट ने महिला को एक लाख रुपये मुआवज़ा देने का निर्देश देते हुए जोड़ा कि सरकार ज़िम्मेदार अधिकारियों से यह राशि वसूल सकती है.
तेलुगु फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए अप्रैल 2019 में तेलंगाना सरकार द्वारा गठित एक उप-समिति ने जून 2022 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. केसीआर सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. अब हेमा समिति की रिपोर्ट सामने आने के बाद इसे सार्वजनिक करने की मांग हो रही है.
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पुदुचेरी की ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार में परिवहन मंत्री एस. चंदिरा प्रियंगा ने कहा है, 'मुझे एहसास हो रहा था कि मुझे लगातार जाति और लिंग के आधार पर पूर्वाग्रह का शिकार बनाया जा रहा है.' वे दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 और 2022-23 के बीच कर्नाटक, दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार और हरियाणा सहित दर्जनभर से अधिक राज्यों में लिंग अनुपात में गिरावट देखी गई.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि महिला किसी की जागीर नहीं है और उसकी ख़ुद की एक पहचान है. विवाहित होने के तथ्य के कारण उस पहचान को दूर नहीं करना चाहिए. सिक्किम की महिला को इस तरह की छूट से बाहर करने का कोई औचित्य नहीं है.
ऑक्सफैम की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारतीय श्रम बाज़ार में महिलाएं पुरुषों की तुलना में भागीदारी और मेहनताने- दोनों पहलुओं पर ग़ैर-बराबरी का सामना करती हैं. इसकी वजहें आर्थिक तो हैं ही, लेकिन इसका मूल समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में छिपा है.
'हाउ इंडियंस व्यू जेंडर रोल्स इन फैमिलीज़ एंड सोसाइटी' नाम की इस रिपोर्ट को नवंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच 29,999 भारतीय वयस्कों पर किए गए सर्वेक्षण के बाद प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा तैयार किया गया है. इसके अनुसार भारतीय राजनीतिक नेतृत्व में महिलाओं को देखने के इच्छुक हैं लेकिन घर और रोज़गार में लैंगिक असमानता का रवैया दिखाई देता है.
त्रिपुरा सरकार ने 2015 में एक अधिसूचना जारी कर शादीशुदा बेटियों को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी का लाभ पाने से प्रतिबंधित कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा कि विवाहित बेटी को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी के लाभ से वंचित करना संविधान की भावना के साथ-साथ लैंगिक समानता के ख़िलाफ़ है.
सुप्रीम कोर्ट पिछले साल महिलाओं को एनडीए परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने अब केंद्र सरकार से पूछा है कि उसके आदेश के बावजूद वर्ष 2022 के लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में महिला उम्मीदवारों की सीट 19 पर ही सीमित क्यों की गई है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद संघ लोक सेवा आयोग ने कहा कि उसने राष्ट्रीयता, आयु, शैक्षणिक योग्यता आदि मापदंडों पर खरी उतरने वाली अविवाहित महिला उम्मीदवारों के लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा के आवेदन की व्यवस्था करने का निर्णय किया है. पात्र महिलाएं आयोग की वेबसाइट पर 24 सितंबर से आठ अक्टूबर शाम छह बजे तक आवेदन कर सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने एनडीए प्रवेश परीक्षा में महिला उम्मीदवारों को अगले साल से शामिल करने की अनुमति के लिए केंद्र सरकार का अनुरोध अस्वीकार करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत नहीं चाहती कि महिलाओं को उनके अधिकार से वंचित किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने वकील कुश कालरा की याचिका पर सुनवाई की. इस याचिका में प्रतिष्ठित एनडीए में लैंगिक आधार पर योग्य महिलाओं को भर्ती न करने का मुद्दा उठाते हुए इसे समानता के मौलिक अधिकार का कथित तौर पर उल्लंघन बताया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा क़दम उठाते हुए पात्र महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में प्रवेश के लिए पांच सितंबर को होने वाली परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दे दी. हालांकि कहा कि परीक्षा का परिणाम याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन होगा. कोर्ट ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को अपने आदेश के मद्देनज़र एक उपयुक्त अधिसूचना निकालने और इसका उचित प्रचार करने का भी निर्देश दिया.
केरल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड में ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी के रूप में कार्यरत एक महिला ने कंपनी में सेफ्टी ऑफिसर के स्थायी पद के आवेदन के लिए जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी. अधिसूचना में सिर्फ़ पुरुषों को ही इसके लिए आवेदन की अनुमति दी गई थी. हाईकोर्ट ने इस अधिसूचना को रद्द कर दिया है.