केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत पहले से ही जीएम फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग करता है और ‘प्रतिकूल प्रभाव की ऐसी निराधार आशंकाओं के आधार पर ऐसी तकनीक का विरोध केवल किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है’ और ‘भारतीय कृषि के लिए हानिकारक होगा’. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा.
ग़ैर-सरकारी संगठनों के एक समूह ने आरोप लगाया कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए जीएम सरसों का परीक्षण देश की नियामक व्यवस्था में निर्धारित सीमित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है. सरकार ने परीक्षण के दौरान नियमों के उल्लंघन के दावे का खंडन किया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने अपने सेवारत और पूर्व अधिकारियों को एक आदेश जारी करते हुए कहा है कि वे जीएम सरसों की पर्यावरणीय मंज़ूरी के संबंध में कोई भी राय व्यक्त न करें, न लेख लिखें. इस क़दम की आलोचना करते हुए पर्यावरणविदों, कृषि विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि जीएम सरसों के संबंध में छिपाने के लिए काफी कुछ है.
पर्यावरण मंत्रालय के तहत गठित जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने गत अक्टूबर में ट्रांसजेनिक सरसों हाइब्रिड किस्म डीएमएच-11 की पर्यावरणीय मंज़ूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या जीएम सरसों की पर्यावरण मंज़ूरी देने के पीछे कोई बाध्यकारी कारण रहा है कि ऐसा न करने से देश असफल हो जाएगा.
पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए बीज जारी करने की अनुशंसा की है. समिति के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए बीज जारी करने की अनुशंसा की है. आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय किसान संघ ने इसे ख़तरनाक़ और कैंसरकारक बताते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है.