'जब भी कोई नया माध्यम आता है तो यही आशंका जताई जाती है कि पुराने माध्यम चलन से बाहर हो जाएंगे. लेकिन टीवी और कंप्यूटर जैसे जितने भी नए माध्यम आए, वे किताब के ही अलग-अलग रूप बने, न कि प्रतिद्वंद्वी. प्रिंट हमेशा अपनी जगह रहेगा. साहित्य की जगह हमेशा बनी रहेगी.'
हिंंदी पखवाड़े के अंतर्गत हमने हिंदी की कुछ लेखिकाओं से हिंदी साहित्य में स्त्री विमर्श को लेकर परिचर्चा की. उनके जवाब हिंंदी साहित्य में
स्त्री की उपस्थिति की मुकम्मल तस्वीर बनाते हैं, नये प्रश्न भी दे जाते हैं.
पिछले वर्षों में हिंदी पत्रकारिता अमूमन यूट्यूब और वायरल वीडियो तक सिमट गई है. ज़मीनी पत्रकार की जगह 'सेलेब्रिटी एंकर' ने ली है. क्या यूट्यूब के भड़काऊ मोनोलॉग खोजी पत्रकारिता का गला घोंट रहे हैं? हिंदी के प्रख्यात नाम वीडियो तक क्यों सिमट गए हैं? उन्होंने गद्य का रास्ता क्यों त्याग दिया है?
इस विषय पर द वायर हिंदी की परिचर्चा.
हिंदी पत्रिकाएं समसामयिक सवालों से बचती रहीं और आधुनिकतावाद का डट कर सामना करने की बजाय सांप्रदायिक पहचान के निकट आती गईं. ‘क्या उपन्यास/ कहानी/ नई कहानी/नाटक मर गया?’ जैसे सवालों पर बहसियाने या छायावाद पर मुहल्ला-छाप लड़ाई लड़ना उन्हें आसान पड़ता था, उन्होंने वही किया.
'हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान' के नारे के ज़रिये हिंदी का प्रभुत्व और दबदबा बनाने की बात बहुत हुई, लेकिन इससे हिंदी को कुछ भी ठोस नहीं मिला है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिंदी संसार की पांच बड़ी भाषाओं में एक है. पर ज्ञान, परिष्कार, विपुलता आदि के कोण से देखें तो तथ्य यह है कि हिंदी, चीनी या जापानी या कोरियाई की तरह ज्ञान-विज्ञान की भाषा नहीं है, न उस ओर अग्रसर ही है.
वीडियो: हिंदी साहित्य में आलोचना विधा में चंद स्त्रियों के नाम ही सामने आते है, साथ ही उनकी आलोचना का दायरा समकालीन लेखिकाओं को बमुश्किल ही छूता है. इसकी क्या वजह है? वरिष्ठ आलोचक डॉ. रश्मि रावत और युवा समीक्षक अदिति भारद्वाज के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.
दुनिया में शायद हिंदी अकेली भाषा है जहां सेवक पाए जाते हैं. हिंदी में शिक्षक हो, पत्रकार हो या लेखक, हिंदी की सेवा करता है, उसमें काम नहीं करता.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि 'इंडिया’ अपनी अखंडता के लिए जाना जाता है और ‘हिंदिया’ के नाम पर देश को विभाजित करने के उद्देश्य से कोई प्रयास नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार यह ग़लत धारणा थोप रही है कि केवल हिंदी ही भारत के लोगों को एकजुट कर सकती है.
हिंदी के हक़ में हिंदू क्यों अपना वक़्त ज़ाया करते हैं. मुसलमान उर्दू के तहफ़्फ़ुज़ के लिए क्यों बेक़रार हैं?
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक साक्षात्कार में कहा कि भोजपुरी और मगही बिहार की भाषा है, झारखंड की नहीं. झारखंड का बिहारीकरण क्यों किया जाए? आदिवासियों ने झारखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई क्षेत्रीय भाषाओं के दम पर लड़ी थी, भोजपुरी और मगही भाषा की बदौलत नहीं.
हिंदी दिवस के अवसर पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अनेक भाषा और बोलियां हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत हैं, परंतु ज़रूरत है कि देश की एक भाषा हो, जिसके कारण विदेशी भाषाओं को जगह न मिले.
आज हिंदी अपराध-बोध की भाषा है. इस पर यह गंभीर आरोप है कि इसने देश की अनेक बोलियों और भाषाओं का बेरहमी से सरकार की शह पर कत्ल किया है.
हिंदी दिवस पर विशेष: जितना बोझ आप बच्चों पर लाद रहे हैं डेढ़ लाख शब्दों का स्त्रीलिंग पुल्लिंग याद करने का, उतना मेहनत में बच्चा रॉकेट बना देगा.
‘लय के नाविक’ के रूप में प्रसिद्ध हिंदी के वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना से कृष्ण प्रताप सिंह की बातचीत.