विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों पर कथित हमले की अफ़वाह फैलाने के पीछे ख़ुद को पत्रकार बताने वाले यूट्यूबर मनीष कश्यप का नाम आया है. पड़ताल बताती है कि इस मामले में कई एफआईआर में नामजद मनीष इससे पहले भी कई मामलों में आरोपी हैं और उन्हें भाजपा, संघ नेताओं का समर्थन मिलता रहा है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने दावा किया है कि 2024 के आम चुनावों से पहले एकजुट विपक्ष बनाने के उनके बयानों के कारण राज्य में प्रवासी श्रमिकों पर हमले और धमकी से जुड़ीं फ़र्ज़ी ख़बरें और अफ़वाहें फैलाई गईं. उन्होंने कहा कि उत्तर भारतीय राज्यों के भाजपा सदस्यों ने बुरी नीयत से ऐसा किया.
तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों पर हमलों की अफ़वाह को पूरे देश में फैलाने वाले मुख्य रूप से भाजपा के नेता थे. एक नहीं, कई राज्यों के. इसका नुक़सान इसीलिए बहुत गहरा है कि वह देश के ही दो हिस्सों में विभाजन की साज़िश है. भाजपा के इस कृत्य को सबसे घृणित अपराधों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.
तमिलनाडु पुलिस ने कहा कि डीएमके के थिरुनिनरावुर आईटी विंग के सूर्यप्रकाश ने शिकायत दर्ज कराई है कि ओपइंडिया डॉट कॉम वेबसाइट झूठी ख़बरें फैला रही है और तमिलनाडु में रह रहे अन्य राज्यों के श्रमिकों में भय की भावना पैदा कर रही है.
वीडियो: बीते सप्ताह कई मीडिया संस्थानों ने तमिलनाडु में बिहार के प्रवासियों पर हमले की ख़बरें चलाईं. सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए थे, जिनमें श्रमिकों पर हमले का दावा किया गया. तमिलनाडु पुलिस ने इन तमाम ख़बरों और वीडियो का खंडन किया है. इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बता रहे हैं अलीशान जाफ़री.
फैक्ट-चेक: दैनिक भास्कर, टाइम्स नाउ नवभारत और टीवी 9 भारतवर्ष ने बिहार के जमुई के एक शख़्स पवन यादव की मौत को तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों पर हो रहे कथित हमलों से जोड़ा, साथ ही पुलिस के इसे आपसी झगड़ा बताए जाने के बयान को झूठा बताया. हालांकि, बाद में दैनिक भास्कर की वेबसाइट से यह ख़बर डिलीट कर दी गई.
जनता जागरूक तभी हो सकती है जब वह बाख़बर हो. पिछले 7 सालों से भारत की जनता के बड़े हिस्से तक पहुंच रखने वाले समाचार-समूहों ने जैसे तय कर लिया है कि वह उसे वो ख़बर नहीं देंगे जो उसके जनतांत्रिक नागरिक के दर्जे पर असर डालने वाली होगी. इतना ही नहीं वे सूचना को विकृत करके जनता तक पहुंचाते हैं.
वीडियो: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री लेने वाली ग़ज़ाला अहमद ने आरोप लगाया है कि उनके हिजाब पहनने के कारण एक हिंदी मीडिया पोर्टल ने उन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया था. उनका कहना है कि नौकरी के लिए उनका चयन हो चुका था, लेकिन जब मीडिया पोर्टल संस्थान को हिजाब का पता चला तो उन्हें मना कर दिया गया.
हिंदी दिवस पर विशेष: जितना बोझ आप बच्चों पर लाद रहे हैं डेढ़ लाख शब्दों का स्त्रीलिंग पुल्लिंग याद करने का, उतना मेहनत में बच्चा रॉकेट बना देगा.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने कहा कि सामान्य तौर पर मीडिया की भूमिका सरकार से सवाल पूछने की होती है. लेकिन यहां पर मीडिया ने केवल विपक्ष से सवाल पूछा. विपक्षी पार्टियों से सवाल पूछा गया कि उन्होंने 50 साल पहले कुछ क्यों नहीं किया? क्या मीडिया को यही करना होता है?
आखिर क्या बात है कि खेती-किसानी हो, अर्थव्यवस्था के दूसरे हिस्से हों, विश्वविद्यालय हों या स्कूल, हिंदी अख़बारों या चैनलों से हमें न तो सही जानकारी मिलती है, न आलोचनात्मक विश्लेषण? क्यों सारे हिंदी जनसंचार माध्यम सरकार की जय-जयकार में जुट गए हैं?
अयोध्या में 1990-92 में प्रिंट मीडिया का प्रभुत्व था, अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसे पीछे धकेलकर सांप्रदायिक पत्रकारिता का परचम उससे छीन लिया है और ख़ुद को राम मंदिर आंदोलन का अघोषित प्रवक्ता बना लिया है.
मीडिया बोल की 67वीं कड़ी में उर्मिलेश हिंदी भाषी मीडिया और हिंदी समाज पर पॉलिटिकल साइंटिस्ट सविता सिंह और जेएनयू के प्रो. विवेक कुमार से चर्चा कर रहे हैं.
‘आदर्श बहू’ ट्रेनिंग की ख़बर आने के बाद आईआईटी बीएचयू ने स्टार्ट-अप ‘यंग स्किल्ड इंडिया’ से किसी भी तरह के संबंध होने से इनकार किया है लेकिन स्थानीय अख़बारों को खंगाले तो इसे ‘आईआईटी बीएचयू का स्टार्ट-अप’ बताने वाली तमाम ख़बरें लंबे समय से छपती रही हैं.
हिंदी पत्रकारिता दिवस: कोबरापोस्ट के हालिया स्टिंग ‘आपरेशन-136’ से यह साबित होता कि अब इस पत्रकारिता को न तो देश व देशवासियों के भविष्य-निर्माण में कोई दिलचस्पी है, न ही उनके विरुद्ध किसी साज़िश का अंग बनने को लेकर कोई हिचक.