चलती रेल में हत्या, बारूद के ढेर पर हरियाणा: क्या हिंदुत्ववाद है एक सियासी बीमारी?

वीडियो: महाराष्ट्र में एक चलती ट्रेन में आरपीएफ कॉन्स्टेबल द्वारा अपने वरिष्ठ अधिकारी और तीन मुस्लिमों की हत्या करने और बीते दिनों हरियाणा के नूंह में हुई सांप्रदायिक झड़पों की वजह एक ही है? इस बारे में चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद.

‘इंडिया’ गठबंधन का अतिआत्मविश्वास से बचकर ज़मीनी सच्चाइयों से वाकिफ़ रहना ज़रूरी है

कई बार एकताओं व गठबंधनों से कुछ भी हासिल नहीं होता. दल मान लेते हैं कि गठबंधन कर लेने भर से बेड़ा पार हो जाएगा. लेकिन ज़मीनी स्तर पर समर्थकों के बीच बहुत-सी ग्रंथियां होती हैं. 'इंडिया' के घटक दलों के समर्थकों के बीच भी ऐसी ग्रंथियां कम नहीं हैं. 

देश में जब भी हिंदुत्ववादी ताक़तवर हुए हैं, महिलाओं के हक़ों की लड़ाई कमज़ोर हुई है

हिंदुत्व के अनुकूलित सुधारक बाल गंगाधर तिलक वर्ण व जाति व्यवस्था को राष्ट्र निर्माण का आधार बताकर उसका बचाव तो किया ही करते थे, वैवाहिक व दांपत्य संबंधों में बालिग या नाबालिग पत्नियों के पूरी तरह अपने पतियों के अधीन रहने के हिमायती भी थे. वे महिलाओं की आधुनिक शिक्षा के विरोधी भी थे.

गुजरात: कच्छ ज़िले में स्कूल हिंदुत्ववादी समूहों का निशाना बन रहे हैं

गुजरात में हाल ही में बच्चों को ईद के समारोह में भाग लेने के लिए कहने के बाद कई स्कूलों को माफ़ी मांगनी पड़ी है. कच्छ ज़िले के एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि यह क्षेत्र में सांप्रदायिक अराजकता पैदा करने का प्रयास है.

आरएसएस ने कभी हिंसा को स्वीकार नहीं किया: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुओं को संगठित करना मुसलमानों और ईसाइयों का विरोध नहीं है. कभी-कभी किसी क्रिया पर प्रतिक्रिया होती है. कभी-कभी जैसे को तैसा जैसी प्रतिक्रिया होती है, लेकिन सही मायने में शांति और सहिष्णुता हिंदुत्व के मूल्य हैं.

मध्य प्रदेश: क्या चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस को सांप्रदायिकता से परहेज नहीं है

विशेष रिपोर्ट: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने 'बजरंग सेना' का हाथ थामा है. 'हिंदू राष्ट्र' का सपना देखने वाले इस संगठन की पहचान अब तक हिंदुत्ववादी एजेंडा आगे बढ़ाने, मुस्लिमों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलने और नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने वालों का समर्थन करने की रही है.

मुग़लकाल को पाठ्यक्रम से बाहर निकलवाकर ‘औरंगज़ेब-औरंगज़ेब’ खेलना क्या कहता है?

यह निर्णायक बात कि इस बहुभाषी-बहुधर्मी देश में सुलह, समन्वय, सामंजस्य और शांति के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है, अकबर के वक़्त यानी सोलहवीं शताब्दी में ही समझ ली गई थी, उसे आज क्यों नहीं समझा जा सकता?

चुनाव जीतने के लिए मोदी का करिश्मा और हिंदुत्व काफी नहीं: आरएसएस से जुड़ी पत्रिका

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद प्रकाशित एक अंक में आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ‘द ऑर्गनाइज़र’ ने कहा है कि भाजपा के लिए अपनी स्थिति का जायजा लेने का यह सही समय है. क्षेत्रीय स्तर पर मज़बूत नेतृत्व और प्रभावी कार्य के बिना प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा और हिंदुत्व चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.

क्या हाल ही में दिल्ली में हुई एक युवती की हत्या को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास चल रहा है?

वीडियो: 28 मई को दिल्ली के शाहबाद डेरी इलाके में सरेआम एक युवती की हत्या हुई. आरोपी साहिल को पुलिस ने अगले दिन यूपी से गिरफ़्तार किया था. अब क्षेत्र के निवासियों और कार्यकर्ताओं का दावा है कि कथित तौर पर आरएसएस से जुड़े लोगों ने इलाके में जाकर लोगों को सांप्रदायिक तरीके से भड़काने का प्रयास किया.

कर्नाटक में भाजपा की हार के चर्चे मध्य प्रदेश में क्यों हैं?

मध्य प्रदेश में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है. कर्नाटक के चुनावी नतीजों के बाद ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व और राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार को सत्ता खोने का डर सता रहा है. हालांकि, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के जातीय, सामाजिक और राजनीतिक समीकरण एक-दूसरे से पूर्णत: भिन्न हैं.

भारतीय उपमहाद्वीप में हर दूसरे रोज़ आहत हो रही भावनाओं पर बात करने का हक़ किसे है?

पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक भारतीय उपमहाद्वीप में आए दिन किसी न किसी की आहत भावनाओं की बात होती रहती है और उसकी स्वाभाविक प्रतिकिया के तौर पर उत्पाती समूहों द्वारा इसका बदला लेने के लिए की गई हिंसा की ख़बर आती रहती है, लेकिन सवाल है कि आख़िर किसकी भावनाएं आहत होती हैं?

क्या दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू जैसे कैंपस हिंदुत्व के प्रशिक्षण केंद्र में शेष हो जाएंगे

कुछ वक़्त पहले तक कहा जा रहा था कि विश्वविद्यालयों को राष्ट्रवादी भावना का प्रसार करना है. उस दौर में परिसर में राष्ट्रध्वज लगाना और वीरता दीवार बनाना ज़रूरी था. अब राष्ट्रवाद का चोला उतार फेंका गया है और बिना संकोच के हिंदुत्व का प्रचार किया जा रहा है.

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