आठ महीने पहले यूपी के बरेली में नगर निगम व ज़िला प्रशासन द्वारा शहर को 'स्मार्ट' बनाने के लिए पुनर्स्थापित करने के वादे पर जवाहरलाल नेहरू की एक प्रतिमा को उसकी जगह से उखाड़ा गया, जो पिछले दिनों मिशन अस्पताल परिसर में कूड़े के ढेर में मिली.
पुण्यतिथि विशेष: डॉ. राममनोहर लोहिया के संसदीय जीवन की विडंबना पर जाएं, तो अल्पज्ञात व अचर्चित होने के बावजूद उनमें सबसे बड़ी यह है कि अपने अंतिम दिनों में वे लोकसभा में जिस कन्नौज सीट का प्रतिनिधित्व करते थे, अपने निधन के बाद आए हाईकोर्ट के फैसले में उसे हार गए थे.
गांधी भारत को धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के रूप में विकसित होते देखना चाहते थे, लेकिन हिंदू राष्ट्र का विचार इसके ख़िलाफ़ था.
कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्रहवीं क़िस्त.
राजनीतिक दल अक्सर दूसरे दलों पर वोट बैंक यानी किसी ख़ास समुदाय की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं. लेकिन वे भूल जाते हैं कि यह इल्ज़ाम लगाते वक्त वे उस जनता से रिश्ता तोड़ देते हैं जिसे वे अपने प्रतिद्वंद्वी का वोट बैंक कहकर लांछित कर रहे हैं.
कविता और जनतंत्र पर इस स्तंभ की आठवीं क़िस्त.
इस ऐतिहासिक चुनाव का श्रेय कई इंसानों और संस्थाओं को दिया जा सकता है, लेकिन किसी भी मूल्यांकन की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू और सुकुमार सेन के साथ उन दो संस्थाओं से होनी चाहिए जिनके उत्कृष्ट मूल्यों को दोनों इंसान रूपायित करते थे - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय सिविल सेवा.
हमारी हालत अब भी उस पक्षी जैसी है, जो लंबी क़ैद के बाद पिंजरे में से आज़ाद तो हो गया हो, पर उसे नहीं पता कि इस आज़ादी का करना क्या है. उसके पास पंख हैं पर ये सिर्फ उस सीमा में ही रहना चाहता है जो उसके लिए निर्धारित की गई है.
प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) ने बताया कि नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) सोसाइटी, वह संस्था जो इसी नाम के परिसर का प्रबंधन करती है, ने अपना नाम बदलकर 'प्रधानमंत्री संग्रहालय और लाइब्रेरी सोसाइटी' रख लिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में एक भाषण में पूछा था कि नेहरू उपनाम का उपयोग करने में गांधी परिवार को शर्म क्यों आती है? उनके इस बयान की आलोचना करते हुए कांग्रेस ने कहा कि अगर उन्हें भारत की संस्कृति की इतनी बुनियादी समझ भी नहीं है तो इस देश को भगवान ही बचा सकता है.
उस दौर में हमारी राजनीति इतनी पतित हुई ही नहीं थी कि नेताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मनों के रूप में देखा जाता, दुश्मन की तरह उनकी लानत-मलामत की जाती और उन्हें कमतर दिखाने या गिराने की कोशिश में ख़ुद को उनसे भी नीचे गिरा लिया जाता.
गांधी के बारे में जाता है कि वे अपने आख़िरी सालों में अकेले पड़ गए थे. वह अकेलापन, अगर था भी तो गांधी को बहुत कम समय झेलना पड़ा. असली अकेलापन नेहरू का था. वे प्रधानमंत्री थे और गांधी की तरह ही समझौताविहीन धर्मनिरपेक्ष. लेकिन उनकी सरकार हो या पार्टी, उनकी इस धर्मनिरपेक्षता के साथ शायद ही कोई उतनी दृढ़ता से खड़ा था.
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने इस देश का विभाजन किया. आज एक बार फिर देश को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश की जा रही है. ये लोग (भाजपा) एक और विभाजन चाहते हैं. उन्होंने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की उनकी ‘धर्मनिरपेक्षता’ और देश को विकास और समृद्धि की राह पर ले जाने के लिए प्रशंसा की.
वीडियो: हाल ही में जाने-माने लेखक, पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई की पहली हिंदी किताब प्रकाशित होकर आई है, जिसका नाम है, भारत के प्रधानमंत्रीः देश, दशा, दिशा. इसमें देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक की एक विवेचना पेश की गई है. इस किताब के ज़रिये रशीद किदवई से बातचीत.
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा आज़ादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है. संस्था द्वारा जारी एक तस्वीर में महात्मा गांधी, बाबा साहब आंबेडकर, सरदार पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, भगत सिंह, मदनमोहन मालवीय और विनायक दामोदर सावरकर के चित्र हैं, लेकिन नेहरू की तस्वीर ग़ायब है. राहुल गांधी ने पूछा है कि नेहरू को लोगों के दिल से कैसे निकालोगे?
पुस्तक अंश: अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद में वर्ष 1949 में मूर्ति रखने के बाद की घटनाएं यह प्रमाणित करती हैं कि कम-से-कम फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन ज़िलाधीश केकेके नायर तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत यदि मूर्ति स्थापित करने के षड्यंत्र में शामिल न भी रहे हों, तब भी मूर्ति को हटाने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी.
पुस्तक अंश: फ़ैज़ाबाद में 1948 में हुए उपचुनाव में समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव मैदान में थे. कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ देवरिया के बाबा राघव दास को अपना प्रत्याशी बनाया. चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने कहा था कि आचार्य नरेंद्र की विद्वत्ता का लोहा भले दुनिया मानती है, लेकिन वे नास्तिक हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या ऐसे व्यक्ति को कैसे स्वीकार कर पाएगी?