देश के पत्रकारों पर किया गया लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे बताता है कि सर्वेक्षण में शामिल आधे से अधिक पत्रकार अपनी मीडिया की नौकरियों को पूरी तरह छोड़कर कुछ और करने के बारे में सोच रहे हैं.
रूपेश कुमार सिंह की दोबारा गिरफ़्तारी को सालभर हो गया है और इस बीच उन्हें चार नए मामलों में आरोपी बनाया गया है. बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे पर ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने पूरे एक पन्ने पर भारतीय जेलों में बंद पत्रकारों की रिहाई की मांग उठाई थी. भारत में भी ऐसी मांग उठाना ज़रूरी है.
श्वेता स्टूडियो में हिल रही हैं. इसे देखकर लोग हंस रहे हैं मगर श्वेता वीडियो में गंभीरता के साथ हिली जा रही हैं. यह नरेंद्र मोदी का आज का भारत है और उनके दौर का मीडिया है. आज के भारत का मानसिक और बौद्धिक स्तर यही हो चुका है. वर्ना गोदी मीडिया से ज़्यादा आम दर्शक इसकी आलोचना करता.
पुस्तक समीक्षा: वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह ‘डरते हुए’ शीर्षक वाले अपने काव्यसंग्रह के माध्यम से बिल्कुल अलग अंदाज़ में सामने हैं. उनकी कविताएं उनके उस पक्ष को अधिक ज़ोरदार ढंग से उजागर करती है, जो संभवत: पत्रकारीय लेखन या ‘तटस्थ’ दिखते रहने के पेशेवर आग्रहों के चलते कभी धुंधला दिखता रहा.
असम के प्रतिष्ठित पत्रकार पराग कुमार दास की स्मृति में यह पुरस्कार हर साल असम के बारे में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को दिया जाता है. द वायर की नेशनल अफेयर्स एडिटर संगीता बरुआ पिशारोती इसे पाने वाली पहली महिला हैं.
स्मृति शेष: वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह नहीं रहे. पत्रकारिता में सात दशकों की सक्रियता में उन्होंने देश-विदेश में अजातशत्रु की-सी छवि व शोहरत पाई और अपनी पत्रकारिता को इतना वस्तुनिष्ठ रखा कि उनके दिए तथ्यों की पवित्रता पर उनके विरोधी मत वाले भी संदेह नहीं जताते थे.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि प्रेस राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है. एक स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके. जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है तो किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है.
अमेरिकी विदेश विभाग की 2022 में भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर जारी एक वार्षिक रिपोर्ट में मनमानी गिरफ़्तारियों, यूएपीए के इस्तेमाल और 'बुलडोज़र न्याय' जैसी विभिन्न घटनाओं का ज़िक्र करते हुए देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है.
द कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन द्वारा कश्मीर में पत्रकारों की स्थिति पर न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे आलेख को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने 'शातिर और काल्पनिक बताते हुए दुष्प्रचार' क़रार दिया था. भसीन ने कहा कि मंत्री की प्रतिक्रिया उनकी कही बातों को सही साबित करती है.
धर्मवीर भारती की ‘मुनादी’ कविता जब भी याद आती है तो याद आता है कि इस बीच उक्त इतिहास की ऐसी पुनरावृत्ति हो गई है कि इमरजेंसी की मुनादी बिना ही देश में इमरजेंसी से भी विकट हालात पैदा कर दिए गए हैं, मौलिक अधिकारों को छीनने की घोषणा किए बिना उन्हें सरकार की अनुकंपा का मोहताज बना दिया गया है.
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन और एक लॉ फर्म के सहयोग से भारतीय पत्रकारों के लिए ‘अपने अधिकार जानें’ नामक मार्गदर्शिका जारी की है, जिसमें पत्रकारों को भारतीय क़ानून के तहत उपलब्ध अधिकारों और सुरक्षा उपायों की जानकारी प्रदान की गई है.
वीडियो: बीते दिनों बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण के बाद संस्थान के दफ़्तर पहुंचे आयकर विभाग और उद्योगपति गौतम अडानी के कारोबार को लेकर सवाल उठाने वाली हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जुड़े विवाद को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन की बातचीत.
मोदी सरकार द्वारा मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र पर किए जा रहे हमलों के बारे में काफ़ी कुछ लिखा और कहा जा चुका है, लेकिन हालिया हमला दिखाता है कि प्रेस की स्वतंत्रता 'मोदी सेना' की मर्ज़ी की ग़ुलाम हो चुकी है.
एक पत्रकारिता सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा कि निष्पक्ष आलोचना प्रत्येक व्यक्ति और पत्रकार का अधिकार है. मुझे सरकार की नीतियों और कृत्यों पर टिप्पणी करने का पूरा अधिकार है. अगर मैं ऐसा करता हूं तो यह राजद्रोह नहीं है.
वीडियो: अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद कश्मीर में पत्रकारों की क्या स्थिति है, वे किन हालात में काम कर रहे हैं, क्या वे सुरक्षित महसूस करते हैं? इन विषयों को लेकर कश्मीर के कुछ पत्रकारों से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.