बस्तर की एकमात्र आदिवासी महिला पत्रकार को मौत की धमकी पर मीडिया संगठन ने चिंता जताई

छत्तीसगढ़ के बस्तर की एकमात्र आदिवासी महिला पत्रकार पुष्पा रोकड़े को 13 दिसंबर 2020 और 28 जनवरी 2021 को जान से मारने की धमकी मिली है. ये धमकियां कथित तौर पर माओवादी दक्षिण बस्तर पामेड एरिया समिति द्वारा दी गई हैं.

बिहार सरकार के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी करना अब साइबर अपराध

बिहार पुलिस ने राज्य के सचिवों से ऐसे मामले, जहां सोशल मीडिया के माध्यम से व्यक्तियों व संगठनों द्वारा सरकार पर अवांछनीय टिप्पणी की गई हो उनके संज्ञान में लाने की गुज़ारिश की है, ताकि साइबर अपराध की श्रेणी में संबंधित व्यक्ति के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाए.

मणिपुर: राजद्रोह और यूएपीए के तहत गिरफ़्तार पत्रकार रिहा, पुलिस ने कहा- केस बंद नहीं

पुलिस ने 17 जनवरी को राज्य के दो वरिष्ठ पत्रकारों- फ्रंटियर मणिपुर न्यूज़ पोर्टल के कार्यकारी संपादक पाओजेल चाओबा और प्रधान संपादक धीरेन साडोकपाम को पोर्टल पर छपे एक लेख पर एफआईआर दर्ज करते हुए हिरासत में लिया था. उन पर यूएपीए और राजद्रोह की धाराएं लगाई गई हैं.

बिहार: कानून-व्यवस्था के सवाल पर पत्रकारों से बोले नीतीश कुमार- पुलिस को हतोत्साहित न करें

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे जब उनसे बीते दिनों पटना में निजी विमान सेवा इंडिगो के स्टेशन मैनेजर की हत्या और राज्य में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल पूछे गए, जिस पर मुख्यमंत्री ने तल्ख़ होते हुए कहा कि ऐसी बातों से पुलिस हतोत्साहित होगी.

पत्रकारों को निशाना बनाकर हमलों के मामले 2020 में बढ़े: रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स

रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जान गंवाने वाले पत्रकारों में से 68 प्रतिशत की जान संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के बाहर गई. साल 2020 में पत्रकारों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करने के मामलों में वृद्धि हुई और ये 84 प्रतिशत हो गए हैं.

पत्रकारों का काम सरकारों का प्रवक्ता बनना नहीं, उनसे सवाल पूछना है

पत्रकारिता और देशभक्ति का साथ विवादास्पद है. देशभक्ति अक्सर सरकार के पक्ष का आंख मूंदकर समर्थन करती है और फिर प्रोपगेंडा में बदल जाती है. आज सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर अपना प्रोपगेंडा फैलाने की कला में पारंगत हो चुकी है और जिन पत्रकारों पर सच सामने रखने का दारोमदार था, वही इसमें सहभागी हो गए हैं.

गुजरात: पुलिस स्टेशन में स्टिंग ऑपरेशन करने के आरोप में चार पत्रकारों पर केस दर्ज

बीते 26 नवंबर को गुजरात के राजकोट शहर के एक कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से पांच मरीज़ों की मौत हो गई थी. गुजराती के दिव्य भास्कर ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि अस्पताल में आग लगने के संबंध में गिरफ़्तार तीन लोगों को वीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई गईं.

दिल्ली: मीडिया संगठनों का दावा- पुलिस पूछताछ के लिए बुलाकर पत्रकारों को घंटों इंतज़ार कराती है

प्रेस एसोसिएशन और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन भेजा है. इनका कहना है कि पूछताछ के नाम पर दिल्ली के पुलिस थानों में पुलिस द्वारा घंटों इंतज़ार कराए जाने से उनका कामकाज बुरी तरह से प्रभावित होता है.

हाथरस मामला: एडिटर्स गिल्ड ने मीडिया को रोकने के लिए यूपी सरकार की आलोचना की

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा कि मीडिया को घटनास्थलों का दौरा करने की अनुमति नहीं देना और फोन पर पत्रकारों की बातचीत को टैप करना मीडिया के कामकाज को बाधित करने के साथ उसे कमतर करना भी है.

सुशांत-कंगना का सुर्ख़ियों में बने रहना मीडिया की छद्म जनमत निर्माण की बढ़ती ताक़त की बानगी है

मीडिया के पास कुछ हद तक जनमत निर्माण की ताक़त हमेशा से थी, मगर उसकी एक सीमा थी, उनके द्वारा उठाए मुद्दे में कुछ दम होना ज़रूरी होता था. आज हाल यह है कि मीडिया में भारत-चीन सीमा विवाद से ज़्यादा तवज्जो कंगना रनौत विवाद को दी जा रही है.

मीडिया बोल: डिजिटल इंडिया में डिज़िटल-अवरोध!

वीडियो: पिछले दिनों पर्यावरण के मसलों को उठाने वाली तीन वेबसाइटों के संचालन को किसी तरह की सूचना दिए बिना बंद कर दिया गया. इसी तरह हरियाणा के कई ज़िलों में एपिडेमिक एक्ट का सहारा लेकर कुछ पत्रकारों या सामाजिक संस्थाओं के सोशल मीडिया मंचों पर पाबंदी लगा दी गई है.

कोविड संकट के बीच जान और नौकरी गंवाते पत्रकारों की सुनने वाला कौन है?

कोविड संक्रमण के ख़तरे के बीच भी देशभर के मीडियाकर्मी लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन मीडिया संस्थानों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि जोखिम उठाकर काम रहे इन पत्रकारों को किसी तरह का बीमा या आर्थिक सुरक्षा देना तो दूर, उन्हें बिना कारण बताए नौकरी से निकाला जा रहा है.

द हिंदू ने 20 पत्रकारों को निकाला, बंद हो सकता है मुंबई संस्करण

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते मीडिया में नौकरियों के जाने का सिलसिला लगातार जारी है. सोमवार को द हिंदू के मुंबई ब्यूरो के 20 पत्रकारों को एचआर विभाग की ओर से इस्तीफ़ा देने को कहा गया है.

पत्रकारिता सिर्फ एक व्यक्ति से की गई उम्मीद से नहीं सिस्टम और संसाधन से चलती है

रिपोर्टिंग की प्रथा को संस्थानों के साथ समाज ने भी ख़त्म किया, वह अपनी राजनीतिक पसंद के कारण मीडिया और जोख़िम लेकर ख़बरें करने वालों को दुश्मन की तरह गिनने लगा. कोई भी रिपोर्टर एक संवैधानिक माहौल में ही जोखिम उठाता है, जब उसे भरोसा होता है कि सरकारें जनता के डर से उस पर हाथ नहीं डालेंगी.

मीडिया में गंभीर संकट का हवाला देते प्रेस काउंसिल के सदस्य ने इस्तीफ़ा दिया

भारतीय प्रेस काउंसिल के सदस्य बीआर गुप्ता ने इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि काउंसिल पर लगातार मीडिया और मीडिया पेशेवरों को प्रोत्साहित करने की ज़िम्मेदारी थी लेकिन अब इसका लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है. साथ ही मुझे लगता है कि मैं मीडिया की स्वतंत्रता के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कर पा रहा हूं.