रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जान गंवाने वाले पत्रकारों में से 68 प्रतिशत की जान संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के बाहर गई. साल 2020 में पत्रकारों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करने के मामलों में वृद्धि हुई और ये 84 प्रतिशत हो गए हैं.
पत्रकारिता और देशभक्ति का साथ विवादास्पद है. देशभक्ति अक्सर सरकार के पक्ष का आंख मूंदकर समर्थन करती है और फिर प्रोपगेंडा में बदल जाती है. आज सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर अपना प्रोपगेंडा फैलाने की कला में पारंगत हो चुकी है और जिन पत्रकारों पर सच सामने रखने का दारोमदार था, वही इसमें सहभागी हो गए हैं.
बीते 26 नवंबर को गुजरात के राजकोट शहर के एक कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से पांच मरीज़ों की मौत हो गई थी. गुजराती के दिव्य भास्कर ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि अस्पताल में आग लगने के संबंध में गिरफ़्तार तीन लोगों को वीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई गईं.
प्रेस एसोसिएशन और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को ज्ञापन भेजा है. इनका कहना है कि पूछताछ के नाम पर दिल्ली के पुलिस थानों में पुलिस द्वारा घंटों इंतज़ार कराए जाने से उनका कामकाज बुरी तरह से प्रभावित होता है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपने बयान में कहा कि मीडिया को घटनास्थलों का दौरा करने की अनुमति नहीं देना और फोन पर पत्रकारों की बातचीत को टैप करना मीडिया के कामकाज को बाधित करने के साथ उसे कमतर करना भी है.
मीडिया के पास कुछ हद तक जनमत निर्माण की ताक़त हमेशा से थी, मगर उसकी एक सीमा थी, उनके द्वारा उठाए मुद्दे में कुछ दम होना ज़रूरी होता था. आज हाल यह है कि मीडिया में भारत-चीन सीमा विवाद से ज़्यादा तवज्जो कंगना रनौत विवाद को दी जा रही है.
वीडियो: पिछले दिनों पर्यावरण के मसलों को उठाने वाली तीन वेबसाइटों के संचालन को किसी तरह की सूचना दिए बिना बंद कर दिया गया. इसी तरह हरियाणा के कई ज़िलों में एपिडेमिक एक्ट का सहारा लेकर कुछ पत्रकारों या सामाजिक संस्थाओं के सोशल मीडिया मंचों पर पाबंदी लगा दी गई है.
कोविड संक्रमण के ख़तरे के बीच भी देशभर के मीडियाकर्मी लगातार काम कर रहे हैं, लेकिन मीडिया संस्थानों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि जोखिम उठाकर काम रहे इन पत्रकारों को किसी तरह का बीमा या आर्थिक सुरक्षा देना तो दूर, उन्हें बिना कारण बताए नौकरी से निकाला जा रहा है.
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते मीडिया में नौकरियों के जाने का सिलसिला लगातार जारी है. सोमवार को द हिंदू के मुंबई ब्यूरो के 20 पत्रकारों को एचआर विभाग की ओर से इस्तीफ़ा देने को कहा गया है.
रिपोर्टिंग की प्रथा को संस्थानों के साथ समाज ने भी ख़त्म किया, वह अपनी राजनीतिक पसंद के कारण मीडिया और जोख़िम लेकर ख़बरें करने वालों को दुश्मन की तरह गिनने लगा. कोई भी रिपोर्टर एक संवैधानिक माहौल में ही जोखिम उठाता है, जब उसे भरोसा होता है कि सरकारें जनता के डर से उस पर हाथ नहीं डालेंगी.
भारतीय प्रेस काउंसिल के सदस्य बीआर गुप्ता ने इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि काउंसिल पर लगातार मीडिया और मीडिया पेशेवरों को प्रोत्साहित करने की ज़िम्मेदारी थी लेकिन अब इसका लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है. साथ ही मुझे लगता है कि मैं मीडिया की स्वतंत्रता के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कर पा रहा हूं.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा है कि पुलिस का काम पत्रकार के काम में बाधा डालना नहीं है, खासतौर पर मौजूदा परिस्थितियों में, बल्कि उनके कामकाज में सहायक बनना है.
विशेष रिपोर्ट: उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की कवरेज के लिए गए एक स्थानीय चैनल के संवाददाता आकाश नापा को गोली लगी है. वे जीटीबी अस्पताल में भर्ती हैं.
नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण ने उत्तर प्रदेश पुलिस में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए पांच आईपीएस अधिकारियों के ख़िलाफ़ पोस्टिंग के बदले रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. इस संबंध में उत्तर प्रदेश शासन को भेजा गया उनका एक गोपनीय दस्तावेज़ मीडिया में लीक हो गया था.
उत्तर प्रदेश के नोएडा के एसएसपी वैभव कृष्ण द्वारा मुख्यमंत्री और डीजीपी को भेजी गई रिपोर्ट तब सार्वजनिक हो गई जब एक कथित वीडियो सेक्स चैट वायरल हो गया था. रिपोर्ट में एसएसपी ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों पर आरोप लगाया था कि वे पैसे लेकर ट्रांसफर-पोस्टिंग के साथ केसों और गिरफ्तारियों को भी प्रभावित करते थे. इस संबंध में डीजीपी ने एसएसपी से जवाब मांगा है.