कर्नाटक: महिलाओं ने चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया, फिर भी राजनीति में जगह बनाना दूर का सपना है

कर्नाटक विधानसभा चुनावों के 1978 से अब तक के पिछले 45 वर्षों के आंकड़े दिखाते हैं कि महिलाओं की भागीदारी में मामूली वृद्धि हुई है और कुछ जीती भी हैं, लेकिन वृद्धि दर बहुत धीमी है. इस बार के चुनावों में 10 महिलाओं ने जीत दर्ज की है. इनमें से तीन भाजपा से, चार कांग्रेस से, दो जेडी (एस) से और एक निर्दलीय प्रत्याशी हैं.

‘द केरला स्टोरी’ से मुसलमान विरोधी घृणा प्रचार के लिए अन्य फ़िल्मकारों को प्रेरणा मिलेगी

फ़िल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ के बाद ‘द केरला स्टोरी’ का बनाया जाना एक सिलसिले की शुरुआत है. कम पैसों में, ख़राब अभिनय और निर्देशन के बावजूद सिर्फ़ मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा प्रचार के विषय के सहारे अच्छी कमाई हो सकती है, क्योंकि ऐसी फ़िल्मों के प्रचार में अब राज्य की मशीनरी और भाजपा का एक पूरा तंत्र काम करता है. 

‘द केरला स्टोरी’ पर बैन लगाना कोई हल नहीं है

फिल्म में स्पष्ट रूप से फ़र्ज़ी नैरेटिव और आंकड़े दिए गए हैं, और बात प्रोपगैंडा से कहीं आगे की है, लेकिन फिर भी दर्शकों के पास इसे देखकर इसके बारे में अपनी राय बनाने का विकल्प होना चाहिए.

कर्नाटक में नफ़रत का बाज़ार बंद हुआ है, मोहब्बत की दुकानें खुली हैं: राहुल गांधी

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सफलता पर मीडिया को संबोधित करते हुए पार्टी नेता राहुल गांधी ने कहा कि हमने नफ़रत, ग़लत शब्दों से ये लड़ाई नहीं लड़ी. हमने मोहब्बत से दिल खोलकर ये लड़ाई लड़ी और कर्नाटक की जनता ने हमें दिखाया कि इस देश को मोहब्बत अच्छी लगती है.

कर्नाटक में वोटिंग से पहले बांटे गए उपहार मतदाताओं ने भाजपा नेता के घर के सामने फेंके: रिपोर्ट

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की पूर्व संध्या पर केआर पेट विधानसभा में कथित तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने ग्रामीणों को लुभाने के लिए साड़ियां और चिकन बांटा. ग्रामीणों के यह लेने से इनकार के बाद कार्यकर्ता इसे उनके घर के सामने छोड़ आए. इससे नाराज़ ग्रामीणों ने इसे स्थानीय भाजपा नेता के घर के सामने फेंक दिया.

बजरंग दल के साथ अन्याय कांग्रेस ने नहीं, भाजपा ने किया है

बजरंग दल के पहले ग्लोबल लीडर नरेंद्र मोदी ने दल का गुणगान क्यों नहीं किया? वे बजरंग दल के काम क्यों नहीं गिना सके? बजरंग दल के विरोधी उसे बुरा-बुरा कहते हैं, तो मोदी और भागवत उसे अच्छा-अच्छा क्यों नहीं कह सके?

चुनाव के समय मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘फ्रीबीज़’ बांटना एक चुनौती बना हुआ है

हाल ही में कल्याणकारी नीतियों की आड़ में नकदी बांटने की प्रथा आम हो गई है, ख़ासकर चुनाव के समय. निष्पक्ष चुनाव कराने में ‘फ्रीबीज़’ बांटने को एक बड़ी चुनौती के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. अगर इस मुद्दे पर काबू नहीं पाया गया तो इससे राज्यों पर वित्तीय बोझ पड़ेगा.

कर्नाटक: प्रतिद्वंद्वी को लालच देकर नामांकन वापस कराने की कोशिश में लगे भाजपा प्रत्याशी पर केस

कर्नाटक की चामराजनगर सीट से भाजपा उम्मीदवार वी. सोमन्ना द्वारा जद (एस) प्रत्याशी मल्लिकार्जुन स्वामी को नामांकन वापस लेने के कथित प्रयासों का खुलासा सोशल मीडिया पर प्रसारित एक ऑडियो क्लिप में हुआ. इसके बदले में सोमन्ना ने ‘धन और सरकारी वाहन’ की पेशकश की थी.

कर्नाटक: पूर्व मंत्री और भाजपा नेता बोले, पार्टी को मुस्लिम वोट की ज़रूरत नहीं

अप्रैल 2022 में भाजपा नेता केएस ईश्वरप्पा को तब कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था, जब ठेकेदार संतोष पाटिल ने बेलगावी में सार्वजनिक कार्यों पर भारी कमीशन लेने का आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली थी.

टिकट न मिलने से नाराज़ कर्नाटक के पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार ने भाजपा से इस्तीफ़े की घोषणा की

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए यह दूसरा बड़ा झटका है. इससे पहले टिकट न मिलने पर पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने पार्टी से इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. विधानसभा चुनाव 10 मई को होंगे और मतगणना 13 मई को होगी. 

मोदी सरकार के पांच सालों में कितना स्वतंत्र रह पाया सुप्रीम कोर्ट

मोदी सरकार के पांच सालों के बाद सुप्रीम कोर्ट डरा हुआ, बंटा हुआ और कमज़ोर नज़र आता है, जो एक ताकतवर केंद्र सरकार को चोट पहुंचाने से बचता हुआ दिखता है.

1978 में इंदिरा ने जो किया, क्या उसे फिर दोहराया जा सकता है?

अगर 1977 भारत की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के सत्ता में आने के कारण भारतीय राजनीति का एक बड़ा पड़ाव है तो 1978 को इंदिरा गांधी के उस जुझारूपन के कारण याद रखा जाना चाहिए, जिसके बल पर उन्होंने अपनी वापसी की इबारत लिखी.

अंतरात्मा का अभाव वर्तमान भारत का सबसे बड़ा संकट है

आखिर ऐसे लोग कहां हैं, जिनका अनुकरण किया जा सके? यह एक बड़ी चुनौती है. अगर मैं यह चाहता हूं कि मेरा बच्चा एक अच्छा नागरिक बने जो सर्वश्रेष्ठ मूल्यों के लिए आवाज उठा सके, तो आखिर इस मौजूदा पीढ़ी में वे प्रेरणा-पुरुष कहां हैं, जिनकी ओर देखा जा सकता है? हम 21वीं सदी में 19वीं सदी के अनुकरणीय व्यक्तियों की मिसाल कब तक देते रहेंगे?

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