भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक आयोजन के दौरान कहा कि कभी-कभी क़ानून और न्याय एक ही रास्ते पर नहीं चलते हैं. क़ानून न्याय का ज़रिया हो सकता है, तो उत्पीड़न का औज़ार भी हो सकता है. क़ानून उत्पीड़न का औज़ार न बने, बल्कि न्याय का ज़रिया बने.
नई दिल्ली में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अधिक समावेशी और सुलभ क़ानूनी पेशे की वकालत की और छात्रों से इसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने को कहा.
क़ानून मंत्री किरेन रिजीजू ने बताया है कि यूपी की फास्ट-ट्रैक अदालतों में महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के ख़िलाफ़ हुए जघन्य अपराधों के 9.33 लाख से अधिक केस लंबित हैं. देश की ऐसी अदालतों में पॉक्सो से जुड़े 60,000 से अधिक मामले लंबित हैं और इसमें भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है.
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ आरोप लगाने वाले एक अधिवक्ता को दिए जुर्माना भरने के आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि कई बार वकीलों को अनुशासित करने के लिए जुर्माना लगाया जाता है और शीर्ष अदालत को उन फैसलों में दख़ल देकर उन्हें कमज़ोर नहीं करना चाहिए.
भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए कहा कि आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था. लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है. सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी.
छत्तीसगढ़ में बलात्कार के एक आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने 12 साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने घटाकर सात साल कर दिया था. इसके बावजूद अपराधी को 10 साल 3 महीने तक ज़ेल में रखा गया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर जेल अधीक्षक ने हाईकोर्ट के फ़ैसले पर अनभिज्ञता ज़ाहिर की, जिस पर अदालत ने राज्य सरकार पर जुर्माना लगाते हुए उसे अपने अधिकारी के इस कृत्य के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर ज़िम्मेदार माना
उत्तराखंड सरकार के एक आदेश में कहा गया है कि पांच सदस्यीय समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई करेंगी, जो वर्तमान में भारत के परिसीमन आयोग की प्रमुख हैं. अन्य सदस्यों में दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने के लिए बैंक ऑफ महाराष्ट्र को फटकार लगाई और बैंक को किसानों के एकमुश्त निपटान (ओटीएस) प्रस्ताव को स्वीकार करने और उन्हें स्वीकृति पत्र जारी करने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एल. नागेश्वर राव ने कहा कि सरकार का कर्तव्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देश के सभी नागरिकों को सुनिश्चित करना है और शीर्ष अदालत नागरिकों को याद दिलाती है कि कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक अधिकारों के बारे में जब तक सार्वजनिक चर्चा नहीं होगी और जागरूकता नहीं आएगी, तब तक लोकतंत्र नहीं आएगा.
हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा आयोजित ‘धर्म संसद’ में कथित तौर पर मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों को ख़िलाफ़ खुलकर नफ़रत भरे भाषण दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया. इसके बाद छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी इसी तरह का आयोजन हुआ था.
यति नरसिंहानंद ने बताया है कि तथाकथित धर्म संसदें हर छह माह पर आयोजित की जाती रही हैं. तो फिर आगामी एक माह में तीन 'धर्म संसदें' आयोजित करने के पीछे क्या रहस्य है, वो भी दो बार उस उत्तर प्रदेश में, जहां विधानसभा चुनाव आसन्न हैं?
वीडियो: उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया था, जिसमें कथित तौर पर मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों को ख़िलाफ़ खुलकर नफ़रत भरे भाषण दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया है.
उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर के बीच आयोजित ‘धर्म संसद’ में हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ कथित तौर पर नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने के सिलसिले में 23 दिसंबर को दर्ज प्राथमिकी में जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को नामजद किया गया था. अब उसमें स्वामी धरमदास और साध्वी अन्नपूर्णा के नाम जोड़े गए हैं.
हरिद्वार में हुई तथाकथित धर्म संसद में कही गई अधिकांश बातें भारतीय क़ानूनों की धारा के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आती हैं, लेकिन अब तक इसे लेकर की गई उत्तराखंड पुलिस की कार्रवाई दिखाती है कि वह क़ानून या संविधान नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के लिए काम कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने राजधानी दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि जनजातियों को गै़र-अधिसूचित किए जाने के लगभग 73 वर्षों बाद भी आदिवासी उत्पीड़न और क्रूरता के शिकार होते हैं. भले ही एक भेदभावपूर्ण क़ानून को न्यायालय असंवैधानिक ठहरा दे या संसद निरस्त कर दे, लेकिन भेदभावपूर्ण व्यवहार फ़ौरन नहीं बदलता है.