कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि एक साल पहले एलआईसी को शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध किया गया था, तब बाज़ार पूंजीकरण 5.48 लाख करोड़ रुपये था. आज यह भारी गिरावट के साथ 3.59 लाख करोड़ रुपये हो गया है!
हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा जनवरी में जारी एक रिपोर्ट के बाद अडानी समूह से जुड़ी कंपनियों के शेयर में भारी गिरावट देखी गई. एलआईसी ने समूह की कंपनियों में इसकी हिस्सेदारी हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने से पहले बढ़ाई या बाद में, इस बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है.
जितनी आक्रामक तरीके से सत्ताधारी पार्टी की तरफ से एक कारोबारी दिग्गज की हिमायत की कोशिश की जा रही है, आख़िर वह समूह अचानक पार्टी के लिए इतने महत्वपूर्ण कैसे हो गया?
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम को अडानी समूह को बचाने के लिए निवेश करने के लिए मजबूर किया गया, जिसने लोगों की जीवन भर की बचत को ख़तरे में डाल दिया है.
बीबीसी-हिंडनबर्ग मामले को भारतीय मीडिया इस तरह पेश कर रहा है कि यह भारत के ट्विन टावरों पर किसी हमले से कम नहीं है. ये ट्विन टावर हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के सबसे बड़े उद्योगपति गौतम अडानी. इन दोनों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप हल्के नहीं हैं.
केंद्र सरकार के पास इस समय हिंदुस्तान ज़िंक लिमिटेड में 29.54 प्रतिशत हिस्सेदारी है. सरकार ने 2002 में इसका 26 प्रतिशत हिस्सा वेदांता समूह को बेच दिया था. वेदांता ने नवंबर 2003 में बाज़ार से 20 प्रतिशत और सरकार से 18.92 प्रतिशत हिस्सा और ख़रीद लिया था. इसके बाद उसकी हिस्सेदारी इसमें बढ़कर 64.92 प्रतिशत हो गई है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा नीत केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर यह सरकार ज़्यादा दिन रही, तो सारे बैंक बंद हो जाएंगे. जीवन बीमा (निगम) समाप्त हो जाएगा.
अडानी एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड ने शेयर बाज़ार को बताया कि भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी ने उसके 20,000 करोड़ के एफपीओ में एंकर निवेशक के तौर पर 300 करोड़ रुपये निवेश करके 9,15,748 शेयर ख़रीदे हैं. विपक्ष के नेता धोखाधड़ी के आरोपों के बीच एलआईसी और एसबीआई के अडानी समूह में निवेश पर सवाल उठा चुके हैं.
अमेरिकी निवेशक अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में अडानी समूह पर ‘स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया है. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद समूह के शेयरों में गिरावट देखी गई है. समूह के शेयरों में निवेश की वजह से एलआईसी और एसबीआई जैसे सरकार-नियंत्रित वित्तीय संस्थानों के बाज़ार पूंजीकरण में भी गिरावट दर्ज हुई है.
वित्त मंत्रालय ने संसद में बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार के 2014 में सत्ता में आने के बाद से विनिवेश और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की रणनीतिक बिक्री से 4.04 लाख करोड़ रुपये से अधिक जुटाए गए हैं. सबसे ज़्यादा 1.07 लाख करोड़ रुपये की राशि 59 मामलों में बिक्री पेशकश के ज़रिये जुटाई गई है.
सरकार ने आईडीबीआई बैंक में कुल 60.72 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर बैंक का निजीकरण करने के लिए संभावित निवेशकों से बोलियां आमंत्रित की हैं.
खुदरा व संस्थागत निवेशकों के लिए एलआईसी के आईपीओ को खोलते हुए सरकार का लक्ष्य अपने 3.5% शेयर बेचकर 21,000 करोड़ रुपये जुटाना है. वहीं, कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने ऑफरिंग का मूल्य काफी कम रखा है और इसे 30 करोड़ पॉलिसीधारकों के भरोसे की कीमत पर औने-पौने दाम पर बेचा जा रहा है.
वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव तुहीन कांत पांडेय ने बताया कि आईडीबीआई बैंक में बेची जाने वाली हिस्सेदारी की मात्रा प्रचार-प्रसार ख़त्म होने के बाद पता चल जाएगी. फिलहाल आईडीबीआई बैंक का प्रबंधकीय नियंत्रण एलआईसी के पास है. सरकार के पास इस बैंक की 45.48 फ़ीसदी हिस्सेदारी है, जबकि एलआईसी के पास 49.24 फ़ीसदी हिस्सा है.
वैश्विक बाजार स्थिति के चलते जहां कई अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री को कुछ समय के लिए रोक दिया गया है, वहीं भारतीय जीवन बीमा निगम के साथ ऐसा नहीं हुआ है. क्या आम भारतीयों के लिए प्रमुख बचत का ज़रिया रहे एलआईसी को इस तरह आनन-फानन बेचा जाना चाहिए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने आईडीबीआई बैंक की रणनीतिक बिक्री को मंज़ूरी दे दी. इस बैंक में केंद्र सरकार और एलआईसी की कुल हिस्सेदारी 94 प्रतिशत से ज़्यादा है. अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने इसका विरोध करते हुए कहा कि बैंक इसलिए मुश्किलों में आया, क्योंकि कुछ कॉरपोरेट घरानों ने उसके ऋण वापस न कर धोखाधड़ी की.